भारत की इस मिट्टी ने तमाम ऐसे वीरों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम के आगे सभी को झुकने पर मजबूर कर दिया। ऐसा ही एक नाम है योगेंद्र सिंह यादव का। 19 वर्ष की उम्र में परमवीर चक्र से नवाज़े जा चुके भारतीय सेना के वीर जवान योगेंद्र सिंह यादव ने 10 मई 1980 को बुलंदशहर के औरंगाबाद अहिरगांव में एक फौजी के घर जन्म लिया था। इनके पिता करण सिंह पहले से ही देश की सेवा में तैनात थे। उन्होंने अपने पराक्रम से 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को झुकने पर मजबूर कर दिया था। उन्होंने इन युद्धों में कुमाऊ रेजिमेंट की तरफ से लोहा मोल लिया था।
16 की उम्र में बने सैनिक
पिता की बहादुरी के किस्से सुनकर बड़े हुए योगेंद्र ने महज़ 16 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना ज्वाइन की थी। यह साल था 1996। इसके ठीक 3 साल बाद 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध छिड़ गया था।
इस दौरान योगेंद्र को टाइगर हिल के तीन सबसे ख़ास और संवेदनशील बंकरों पर कब्ज़े की जिम्मेदारी सौंपी गई। इन चोटियों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने पहले से ही कब्जा कर रखा था। वे ऊपर थे और भारतीय सैनिक नीचे।
4 जुलाई 1999 को जब आगे बढ़ी योगेंद्र की टीम
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय सेना के जवानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती इन चोटियों पर चढ़ना थी। दरअसल, ये पहाड़ियां पूरी तरह से सीधी थीं जिसकी वजह से सैनिकों को 90 डिग्री के एंगल पर चढ़ाई करने में कठिनाई हो रही थी।
4 जुलाई 1999 को योगेन्द्र अपने कमांडो प्लाटून जिसका नाम ‘घातक’ था, उसके साथ दुश्मन को ढेर करने के उद्देश्य से आगे बढ़े। इस दौरान कुछ दूरी पर पहुंचते ही पाकिस्तानी जवानों को आर्मी के कुछ सैनिकों के आने की हलचल सुनाई दी जिसके बाद उन्हें फायरिंग शुरु कर दी। इसमें कई सैनिक घायल हो गए। इसपर प्लाटून लीडर योगेंद्र ने फैसला लिया कि वे एक पाकिस्तानी सैनिकों को चकमा देने के लिए पीछे हटेंगे, जैसे ही वे चेक करने के लिए नीचे आएंगे उनपर हमला कर देंगे।
दुश्मन को दिया चकमा
इस रणनीति के तहत भारतीय सेना के जवानों ने पीछे हटना चालू किया इसे देखकर पाकिस्तानी सैनिकों में उत्साह का माहौल पैदा हो गया। उन्हें लगा कि भारतीय सैनिकों ने उनके आगे घुटने टेक दिए हैं। इस बात की पुष्टि के लिए पाकिस्तानी सैनिक जैसे ही नीचे आए भारतीय सेना के जवानों ने उनपर हमला कर दिया। इस हमले में कुछ जवान तो वहीं ढेर हो गए कुछ वापिस भाग गए और उन्होंने ऊपर जाकर भारतीय सेना के बारे में अपने साथियों को बता दिया।
इस दौरान भारतीय सैनिक तेज़ी से ऊपर की तरफ़ चढ़े और सुबह होते-होते टाइगर हिल की चोटी के नज़दीक पहुंचने में सफल हो गए।
15 गोलियां लगने के बावजूद निभाया राजधर्म
मालूम हो, इस दौरान भारतीय सैनिकों पर पाकिस्तानी जवानों ने हमला कर दिया। इस हमले में योगेंद्र को 15 गोलियां लगी थीं। उनके शरीर से खून बह रहा था। हालांकि, उनके सभी साथियों की मौत हो गई थी।
लेकिन फिर भी योगेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और पाकिस्तानी सैनिकों के वापिस जाने तक सांस रोककर लेटे रहे। जैसे ही वे सैनिक थोड़ी दूरी पर पहुंचे योगेंद्र ने अपने ट्रैक पैंट की जेब से हैंड ग्रेनेड निकालकर उसका पिन खींचा और उनकी तरफ फेंक दिया। इसके बाद जो धमाका हुआ उसमें पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए और जो एक-आध बचे उन्हें योगेंद्र ने पास पड़ी राइफल से गोली मार दी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक योगेंद्र की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि वे बेसुध होकर एक नाले में जा गिरे और लुड़कते-लुड़कते एक नदी में पहुंच गए। तभी भारतीय सैनिकों की नज़र उनपर पड़ी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
परमवीर चक्र से नवाज़े गए योगेंद्र
मालूम हो, भारतीय सेना के वीर जवानों ने अपना पराक्रम दिखाते हुए कारगिल की चोटी पर तिरंगा लहराकर पाकिस्तान को मात दी थी। गौरतलब है, योगेंद्र प्रताप सिंह की वीरता के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा परमवीर चक्र से नवाज़ा गया था। हाल ही में उन्हें ‘रैंक ऑफ हनी लेफ्टीनेंट’ से भी नवाज़ा गया है।