Tuesday, September 17, 2024

चौधरी चरण सिंह,जिन्होंने सत्ता का रुख शहर से गाँव की तरफ मोड़ दिया!

चौधरी चरण सिंह जी की पुण्यतिथि पर विशेष –

कोई जीना ही जिंदगी समझा,और फ़साना बन गया कोई
अपनी हस्ती मिटाकर ए-अंजुम,अपनी हस्ती बना गया कोई.

सुलक्षणा ‘अंजुम’ द्वारा कही गयी उपरोक्त पंक्तियाँ अक्षरशः सही प्रतीत होती हैं किसानों के मसीहा, स्वाधीनता सेनानी भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी पर . २३ दिसंबर १९०२ को किसान परिवार में जन्मे चौधरी साहब इस प्रकार आकाश में नक्षत्र की भांति दमकेंगें ये शायद किसी को पता नहीं था किन्तु ये चौधरी साहब के कर्म व् भाग्य की विशेषता थी कि वे एक साधारण किसान रहने के स्थान पर देश के किसानों की आवाज़ बने |

चौधरी चरण सिंह chaudhary charan singh
pic source – chaudhary charan singh Archives

आज देश की राजनीति जातियों के घेरे में सिमट कर रह गयी है और इस जातिगत राजनीति और धर्म सम्प्रदायों पर आधारित राजनीति ने चौधरी चरण सिंह के किसान मजदूर तथा गाँव की कमर तोड़ दी है .चौधरी साहब जातिवाद के घोर विरोधी थे .वे इसके विरोध में किसी भी सीमा तक जा सकते थे ,यह उनके सन १९६७ के मुख्यमंत्रित्व काल के समय जारीआदेश से प्रमाणित होता है .उन्होंने शासकीय आदेश पारित किया कि”जो संस्थाएं किसी जाति विशेष के नाम पर चल रही हैं ,उनका शासकीय अनुदान बंद कर दिया जायेगा .”नतीजतन इस आदेश के तत्काल बाद ही कॉलेजों के नाम के आगे से जाति सूचक शब्द हटा दिए गए.

Chaudhary charan singh family
परिजनो के साथ चौधरी चरण सिंह

आज भारतीय राजनीति जोड़ तोड़ की नीति पर चल रही है वे इसके सख्त विरोधी थे उन्होंने अपनी बात कहने में कभी लाग लपेट से काम नहीं लिया.उनकी बढती लोकप्रियता देख उनके विरोधी बुरी तरह घबरा गए थे और उनके खिलाफ जातिवादी होने ,कभी हरिजन विरोधी होने ,कभी मुस्लिम विरोधी होने आदि का आरोप लगाने लगे थे ,किन्तु चौधरी साहब को न विचलित होना था न हुए .उन्होंने शोषित पीड़ित तबकों तथा किसानों की भलाई के लिए संघर्ष जारी रखा .उनके इसी संघर्ष का प्रतिफल है कि आज लगभग सभी राजनीतिक दल किसानों ,पिछड़ों व् दलितों को न केवल साथ लेकर चलने की बात करते हैं बल्कि उनके साथ होने में गर्व महसूस करते हैं.

चौधरी चरण सिंह chaudhary charan singh
pic source – pravakta

चौधरी साहब ग्राम्य विकास के लिए कुटीर एवं लघु उद्योगों को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते थे और अर्थव्यवस्था के विकेंद्रीकरण की बात कहते थे .सन १९८२ में लिखे अपने एक लेख में उन्होंने स्पष्ट रूप में लिखा था -”गरीबी से बचकर समृद्धि की ओर बढ़ने का एक मात्र मार्ग गाँव तथा खेतों से होकर गुजरता है .”उन्हें गाँव किसानों व् कमजोर वर्गों से अटूट प्रेम था .इसी कारण उन्हें ”दलितों का मसीहा ”भी कहा गया .उनकी सबसे बड़ी चिंता ये थी कि लोगों में व्याप्त गरीबी को किस प्रकार दूर किया जाये .दरअसल डॉ.राम मनोहर लोहिया के बाद चौधरी साहब देश की राजनीति में अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने पिछड़ी जातियों में राजनीति में हिस्सेदारी का एहसास जगाया .उन्हें सत्ता के नए शक्ति केंद्र के रूप में उभारा .उनके मन में तो इनके लिए केवल एक ही भावना विराजमान थी और वह केवल यूँ थी –

”अभी तक सो रहे हैं जो उन्हें आवाज़ तो दे दूँ ,
बिलखते बादलों को मैं कड़कती गाज़ तो दे दूँ .
जनम भर जो गए जोते ,जनम भर जो गए पीसे ,
उन्हें मैं तख़्त तो दे दूँ,उन्हें मैं ताज तो दे दूँ .”

जुलाई १९७९ में प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद चौधरी साहब ने कहा था –

”इस देश के राजनेताओं को याद रखना चाहिए कि ……इससे अधिक देशभक्तिपूर्ण उद्देश्य और नहीं हो सकता कि वे यह सुनिश्चित करें कि कोई भी बच्चा भूखे पेट नहीं सोयेगा ,किसी भी परिवार को अपने अगले दिन की रोटी की चिंता नहीं होगी तथा कुपोषण के कारण किसी भी भारतीय के भविष्य और उसकी क्षमताओं के विकास को अवरुद्ध नहीं होने दिया जायेगा .”

राज्य सभा की भूतपूर्व उपसभापति नजमा हेपतुल्लाह के अनुसार –

”तारीख जब अपना सफ़र शुरू करती है तो किसी ऐसे इन्सान को अपने लिए चुन लेती है जिसमे वक़्त से आँख मिलाने की जुर्रत व् हिम्मत हो .हिंदुस्तान की तारीख़ को ये फख्र हासिल है कि उसने यहाँ ऐसे इंसानों को जन्म दिया जिन्होंने अपने हौसलों और इरादों से वक़्त की मुश्किल धार को मोड़ दिया .चौधरी चरण सिंह एक ऐसे ही हिम्मती इन्सान थे .उन्होंने खेतों व् खलिहानों से अपनी जिंदगी शुरू की और उसे तमाम हिंदुस्तान की जिंदगी बना दिया..

चौधरी चरण सिंह chaudhary charan singh
पत्नी श्रीमती गायत्री देवी के साथ चौधरी साहब pic source – chaudhary charan singh archives

उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्य:

1. 1928 में किसान के मुकदमों के फैसले करवाकर उनको आपस में लड़ने के बजाय आपसी बातचीत द्वारा सुलझाने का साकार प्रयास किया.
2. सन् 1939 में ऋण विमोचक विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की निलामी बचवायी और सरकारी ऋणों से मुक्ति दिलायी.
3. आपने 1939 में ही किसान की सन्तान केा सरकारी नौकरियों में 50 फिसदी आरक्षण दिलाने का लेख लिखा था, परन्तु तथाकथित राष्ट्रवादी कांग्रेसियों के विरोध के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई
4. सन् 1939 में अपाने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु “भूमि उपयोग बिल” का मसौदा तैयार किया.
5. आजादी के बाद किसानों की आवाज को बुलन्द किया :

आजादी के बाद वे समाज के किसानों की आवाज को जोर शोर से उठाने लगे. स्वतन्त्रता के पश्चात् वह राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गए. चौधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था. एक जुलाई 1952 को यूपी में चौधरी चरण सिंह के बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला. उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया. किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया.

चौधरी चरण सिंह chaudhary charan singh
यूपी मुख्यमंत्री चुने जाने के समय की तस्वीर ! pic source – chaudhary charan singh Archieves

चौधरी चरण सिंह गरीबों के आवाज उठाने के चलते एक साधारण कांग्रेसी कार्यकर्ता से जनाधार वाले नेता बन चुके थे, जिसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री भी बनाया गया. पहली बार वे 3 अप्रैल 1967 को यूपी का मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने किसानों और कुटीर उद्योग के विकास के लिए अनेक योजनाएं पारित की, जिससे लोगों को काफी लाभ हुआ. एक साल के बाद 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फरवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति पर जोर दिया और उर्वरकों पर से बिक्री कर उठा लिया. अपने कार्यकाल में उन्होंने सीलिंग से प्राप्त जमीनों को भूमिहीनों, गरीबों और हरिजनों में बांट दिया. गुंडा विरोधी अभियान चलाकर यूपी में उन्होंने कानून का राज चलाया.

चौधरी चरण सिंह chaudhary charan singh

जब वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की. चौधरी चरण सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान उर्वरकों और डीजल के दामों में कमी की और कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया. काम के बदले उन्होंने अनाज योजना को लागू किया. विलासिता की सामग्री पर चौधरी चरण सिंह ने भारी कर लगाए.

चौधरी चरण सिंह ने अपने योग्यता और प्रशासनिक क्षमता के बदौलत देश का प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया हालांकि उनका प्रधानमंत्री का कार्यकाल अल्प समय के लिए ही रहा. अगर वे प्रधानमंत्री का एक सत्र भी पूरा करते तो इसमें संदेह नहीं कि आज किसानों की स्थिति कुछ और बयां करती. 29 मई 1987 को जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया. चौधरी चरण सिंह तो इस दुनिया को छोड़कर चले गए लेकिन लोगों के जेहन में उनका राजनीतिक प्रभाव पहले ही की तरह बरकरार है |

मंजीत सिंह फौगाट “मुसाफिर”

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