Thursday, December 5, 2024

जानिए कौन है कश्मीर का गुज्जर बक्करवाल समुदाय,जिन्हें अलगाववादी अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते है

ऊँची नाक और लम्बी काली या सफ़ेद पगड़ी वाले गुज्जर (गुर्जर )कश्मीर की पहाडियों में आसानी से देखें जा सकते हैं अकसर जो अपने पशुओं ,घोड़ों व खूँखार कुत्तों को लिये हुए घुमक्कड़ जीवन जीते हैं।सारे गुज्जर घुमक्कड़ नहीं हैं बल्कि गुर्जरों का एक धड़ा ही घुमन्तु रूप में परंपरागत जिंदगी जी रहा है जिसे गुज्जर बकरवाल कहा जाता है।बकरवाल अर्थात बकरियों व भेड़ों के साथ यायावरी करते हुए गुज्जर जिन्हें गोजरी में बकरवाल कहा जाता है। जम्मू कश्मीर में  आधे गुज्जर स्थायी जीवन जी रहे हैं और खेती बाड़ी करते हैं।ये स्थायी गुज्जर हजारों साल से आबाद हैं यहाँ।

jammu kashmir gurjar
हिमालय के “यायावर ” pic source – google

पंडित जवाहरलाल नेहरु ने गुज्जरों को जंगल का राजा कहा था, जंगल का राजा होने के साथ एक ज़माने में गुज्जर ज़मीन के भी राजा थे। सम्राट कनिष्क,सम्राट मिहिरकुल और सम्राट मिहिरभोज की विरासत के वाहक ये गुज्जर सदियों से कश्मीर की पीर पंजाल की पहाड़ियों से लेकर शिवालिक की पर्वत श्रखलाओं तक में निडरता व बहादुरी के साथ रहते रहें हैं।कश्मीर की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक कड़ी में गुर्जर ग़ुम नहीं होते बल्कि समानांतर योगदान देते चलते हैं।

हजारो साल से आबाद है कश्मीर में गुज्जर (गुर्जर )

कश्मीर की घाटी का गुज्जर (गुर्जर ) कबीला वहाँ हज़ारों साल से आबाद है। मुख्यतः गुज्जर यहाँ  कुषाण काल में अपने राजा कनिष्क के समय से रह रहें हैं, ये वो गुज्जर हैं जो वहाँ स्थायी निवास करते हैं ख़ासकर पुंछ रजौरी में, गुज्जरों में जो पूरी तरह खानाबदोश ज़िन्दगी जीता है ख़ासकर जिन्हें गुज्जर बकरवाल कहा जाता है वो बाद में गुजरात से पलायन करके आया है,ये गुजरात पंजाब का है जो एक ज़माने में गुज्जर सत्ता का मज़बूत केंद्र था।गुजरात ( जिसमें स्यालकोट,पेशावर स्वात घाटी आदि) से ये गुज्जर कश्मीर की घाटी में आये।गुज्जरों का एक हिस्सा आधुनिक राजस्थान से भी आये जिसे उनके पलायन के समय गुर्जरराष्ट्र व गुर्जरत्रा आदि नामों से जाना जाता था।

राजस्थान के मारवाड़ इलाके से गुज्जरों का पलायन किसी भयानक सूखे या गुर्जर प्रतिहार काल के बाद राजनैतिक सत्ता के पराभव के कारण हुआ होगा।कुल मिलाकर इस प्रकार गुज्जर घाटी में आबाद हुए।

गुज्जर ( गुर्जर )बकरवालों की अपनी एक भाषा है गोजरी जो कि बहुत प्राचीन व राजस्थानी व गुजराती भाषा की जननी मानी जाती है। गुज्जरों का पहनावा भी बाकी कश्मीरियों से अलग ही है। गुज्जरियाँ अलग तरह की टोपी पहनती हैं जिस पर सुन्दर डिजाइन बने होते हैं और यह टोपी मध्य एशिया के अन्य क़बीलों से मिलती जुलती हैं।

जम्मू कश्मीर में एक गुर्जर (Gurjar) परिवार – pic source – google

कश्मीर में कश्मीरी पंडितों,लद्दाखियों व डोगरों के साथ गुज्जर चौथी सबसे बड़ी नस्लीय आबादी है।

कश्मीरी गुज्जरों को कश्मीरी कहने की बजाय गुज्जर ही कहते हैं और अलग मानकर चलते हैं। इसे इस उदहारण से समझिये की अगर कोई आदमी कश्मीर में भारत का पक्ष रखता है या कश्मीरी किसी से चिढ़ते हैं तो उसे वे गुज्जर कहकर हिक़ारत से खुन्नस निकलते हैं।गुज्जरों के लिए खुद को बार बार गुज्जर कहलाना ही गर्व से भरता है और उनकी ऊँची पगड़ी के साथ ही सीना भी ख़ुशी से फूल जाता है। कश्मीरियत, लद्दाकियत व जम्मूइयत के बाद यह गुज्जरियत है जिसे पहाड़ जैसा जीवन घाटी में जीना पड़ता है।

भारतीय फ़ौज की आँख और कान हैं गुज्जर जम्मू कश्मीर में।

फ़ौज के सबसे भरोसेमंद साथी हैं जो उन्हें दुर्गम से दुर्गम पहाड़ों और दर्रों की भी सूचना देते हैं जिन्हें फ़ौज भी तलाशने में नाकाम रहती है।बंटवारे व आज़ादी के वक़्त पाकिस्तान से क़बायली हमलों की जानकारी भी गुज्जर बकरवालों ने ही दी थी और उनके ख़िलाफ़ खुद भी लड़े व बाद में भारतीय फ़ौज के साथ भी लड़े।चाहे सन पैंसठ की लड़ाई हो या कारगिल का युद्ध हर बार गुज्जरों ने भारतीय फ़ौज को सूचना दी और साथ खड़े रहे।

gurjar gujjar bakkarwal

हिन्दुस्तान परस्ती के कारण आम कश्मीरी गुज्जरों से डाह रखता है, बहुत अधिक चिढ़ता है।हालात या हुक़ूमत चाहे जो रहे मगर गुज्जर बकरवालों ने कभी भी आतंकवाद या अलगाववाद का रत्ती भर भी समर्थन नहीं किया।ऑपरेशन सर्प विनाश इसका उदाहरण है जिसमें गुज्जरों ने फ़ौज के साथ मिलकर आतंकियों का सफाया किया। गुज्जर क़ौम ने अपने धार्मिक तौर तरीक़े भले ही बदलें हों मगर राष्ट्रप्रेम व राष्ट्ररक्षा का भाव नहीं।

पूरी घाटी का गुज्जर समुदाय अपने पुरखों सम्राट नागभट्ट और मिहिरभोज के हिन्द के प्रतिहार होने की परंपरा को भूले नहीं हैं बल्कि बेहद गर्व व अभिमान के साथ आज भी प्रतिहारी यानि भारत की चौकीदारी करने में सबसे आगे हैं।

पाक अधिकृत कश्मीर में भी गुज्जर सबसे बड़ी नस्लीय आबादी है।

पाकिस्तानी फ़ौज व सत्ता के ज़ुल्म व ज़्यादती के ख़िलाफ़ गुज्जरों ने लगातार आवाज़ उठाई है, परिणामस्वरूप बहुत स्व गुज्जरों को बलूचिस्तान के इलाक़ों में बसा दिया ताकि प्रतिरोध को दबा सके।
कल्हण की राजतरंगिणी जो की कश्मीर के दो हज़ार साल का क्रमवार ऐतिहासिक ब्यौरा देती है में भी पंजाब के गुज्जर राजा अलखान का वर्णन है जिसे कश्मीर के राजा पराजित कर देते हैं मगर कन्नौज के गुर्जर सम्राट के कहने पर उसे उसका राज्य वापिस कर देते हैं। कश्मीर के राजनैतिक व सत्तापटल पर गुज्जर फिर बस एक अलग थलग व बहिष्कृत क़बीले की तरह ही दिखते हैं मगर मुग़ल काल में वे मुग़ल शासकों का जबरदस्त सामना भी करते हैं मगर पराजय झेलते हैं।

हाल के कुछ सालों से गुज्जरों पर कथित गौ रक्षकों के हमले बढ़े हैं जबकि इन गौ रक्षकों से कहीं अधिक गुज्जर गौ पालन करते हैं।भारत के प्रति वफ़ादार व राष्ट्रभक्त क़ौम है।मगर नारेबाज़ी करती उस कथित राष्ट्रवादी भीड़ को कौन समझाये जो अपनी दूषित और पूर्वाग्रही मानसिकता से पीड़ित है।इस नारेबाज भीड़ ने अपने सींगों पर राष्ट्रवाद का ऐसा कवच पहना रखा है कि ये बस सींग मारते जा रहे हैं और लोग छलनी।घाटी में गुज्जरियत ही मज़बूत कड़ी है जो हमारे इस अभिन्न अंग को जोड़े हुए है, इस पर चोट मत करिए। गुज्जर बकरवाल सदियों से अपने पुरखे बाबा कनिष्क की बहुधार्मिक और समरसता की विरासत को अंगीकार किये हुए हैं।
“कश्मीर की वादियों और पहाड़ों में भी गोजरी के मधुर गीत गूंजते हैं, चेनाब नदी के किनारे गुज्जर भी गोजरी में बेंत व टप्पे गाते हैं। यहाँ की हरी भरी बर्फ़ीली वादियों में गुज्जरों के भी हँसने और बोलने की आवाज़ सुनाई देती है।

भारत भर से आवाज उठी है समुदाय की बच्ची के लिए

पिछले दिनों जो ये घटनाक्रम हुआ है उसने पुरे भारत को झकझोर कर रख दिया है कि देखों हम कहाँ आ गए हैं जब हमारे हाथों में तिरंगा और भारत माता की जय जैसे नारे बलात्कारियों के समर्थन में लगाये जा रहें हैं और हम अवाक् खड़े देख रहे हैं।उस आठ साल की बच्ची के पिता ने ठीक कहा कि मुझे लगा की मेरी दूसरी बेटी की भी हत्या कर दी गयी जब मैंने इन दरिंदों के बचाव में तिरंगा लहराता देखा,भारत माता की जय नारे सुने।बच्ची के पिता ने कहा कि हमनें मंदिर की तलाशी इसलिए नहीं ली क्योंकि वो एक पाक जगह है जहाँ ऐसे कुकृत्य नहीं होते।बच्ची को दायें बायें का नहीं पता था वो हिंदू मुस्लिम को क्या समझती।

Pic Source – Indian Express

ख़ुद पर शर्मशार होते हुए हमें इन सामूहिक अपराधों की आड़ में छिपे घिनोनी सोच के लोगों का भी विरोध करना होगा और आवाज़ उठानी होगी।ज़ुल्म, अन्याय और ज़्यादती कहीं भी हों हमें मानवीय व विवेक के आधार पर उनके खिलाफ़ मुखर होना होगा । वक़्त चुप बैठकर तमाशबीन होने का नहीं है बल्कि एक मशाल मानवता के लिए जलाने का है।

भारत भर से जो इस दरिंदगी के खिलाफ़ एकसुर व संवेदना के साथ आवाज़ उठी है वो आश्वस्त करती है, भरोसा दिलाती है कि हम अपने मज़हबी चश्मों में अभी इतने मशगूल नहीं हुए हैं कि इंसानियत से खाली हो गयें  हों।यह दिखाता है कि हम बराबर इन घृणित अपराधों और गिरोहों के खिलाफ़ बुलंद तरीके से खड़े रहेंगे। हम चुके नहीं हैं, बल्कि जागें हैं और अब सोयेंगे नहीं इन जुल्मों और दुष्कृत्यों को देखकर और ना ही मुँह फेरेंगे।

मुक़द्दम मनीष पोसवाल

ये भी पढ़िए –

”हिमालय के यायावर” – पढ़िए वतन के कितने वफादार है ये गुर्जर !

Latest news
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here