Thursday, March 20, 2025

हाइफा का युद्ध: 7 समंदर पार बिना मॉडर्न हथियार के भारतीय सैनिकों ने 1 घंटे में हाइफा को कराया था आजाद

आप अक्सर पढ़ते होंगे की इजराइल से हमारे देश के संबंध बहुत अच्छे हैं. यह दोस्ती आज नहीं बल्कि बहुत लम्बे समय से चली आ रही है जब भारतीय सैनिकों ने इजराइल के हाइफा शहर को आजाद करवाया था.

 

haifa route

जोधपुर,मैसूर और हैदराबाद के सैनिक थे शामिल-

ये बात है 23 सितंबर 1918 कि जब भारत में अंग्रेजों का राज था. इजराइल को आजाद कराने के लिए ब्रिटिश सेना लगातार जर्मनी और तुर्की की सेना से युद्ध कर रही थी. ऐसे में भारत में शासन कर रहे अंग्रेजों ने ब्रिटिश सेना की सहायता हेतु भारतीय सैनिकों के एक दल को इजराइल भेजा। तुर्की, ऑस्ट्रिया और जर्मनी की संयुक्त साधन सम्पन्न शक्तिशाली सेना के विरुद्ध भारतीय सैन्य दल का नेतृत्व जोधपुर के मेजर दलपत सिंह शेखावत ने किया था, जो इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। अदम्य साहस और सैन्य रणनीति का प्रदर्शन करके वाले मेजर दलपत सिंह शेखावत को हाइफा के नायक के रूप में जाना जाता है।

 

indian soldiers on hyfa war

वापिस लौटने से किया था मना-

इजराइल पहुंचने के बाद जब ब्रिगेडियर जनरल एडीए किंग को तुर्की और जर्मनी की सेना के बारे में पता चला तो उन्होंने भारतीय सेना को वापिस लौटने को कहा. दरअसल सामने वाली सेनाएं आधुनिक हथियारों से लेस थीं ऐसे में ये लड़ाई तलवार के दम पर नहीं लड़ी जा सकती थी. वापिस लौटने कि बात को सुनने के बाद भारतीय सेना ने साफ़ तौर पर लौटने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘हम अपने देश में किस मुंह से जाएंगे। अपने देश की जनता को कैसे बताएंगे कि शत्रु के डर से मैदान छोड़ दिया। युद्ध के मैदान में पीठ दिखाकर भागना उचित नहीं माना जाता। इसलिए हम तो लड़कर यहीं वीरगति प्राप्त करना पसंद करेंगे।’

 

soldier on hyfa city

सुबह 5 बजे निकले भारतीय सैनिक-

अपने प्लान के मुताबिक सुबह 23 सितंबर 1918 को 5 बजे भारतीय सैनिक हाइफा की तरफ रवाना हुए. माउंट कार्मल पर्वत श्रृंखला और किशोन नदी से लगे हुए मार्गों को पार करते हुए सुबह 10 बजे हमारे सैनिक हाइफा पहुंच गए. वहां पहुंचते ही सैनिक माउंट कार्मल पर तैनात बंदूकधारी सेना के निशाने पर आ गए लेकिन अपनी सूझबूझ से आगे बढ़ते हुए मैसूर लांसर्स की एक स्क्वाड्रन शेरवुड रेंजर्स के स्क्वाड्रन के समर्थन से दक्षिण की ओर से माउंट कार्मल पर चढ़ी। इसके बाद हमला करते हुए भारतीय सैनिकों ने दो तोपों और मशीनगनों पर कब्ज़ा कर लिया। तभी 2 बजे ‘बी’ बैटरी एचएसी के समर्थन से जोधपुर लांसर्स ने हाइफा पर हमला किया।

 

मशीनगनों के प्रहार को झेलते हुए भारतीय सैनिकों ने तुर्की और जर्मनी को सेना को परास्त कर दिया। शाम 5 बजे हाइफा पर भारतीय सेना का कब्ज़ा हो चुका था. हमनें हाइफा तो जीत लिया लेकिन हमारे 900 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. हाइफा जीतने की सूचना जैसे की देश से बाहर रह रहे इजराइली नागरिकों को मिली तो वो ख़ुशी से झूम उठे.

 

आज इजराइल हमारा मित्र है और हमारे देश को बहुत अधिक सम्मान देता है इसका श्रेय हमारे उन वीर सैनिकों को जाता है. इजराइल में आज भी हाइफा दिवस मनाया जाता है जहाँ शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है. तो ये थी हाइफा के युद्ध की कहानी जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. तो आप भी पढ़िए और अपने दोस्तों को पढ़ाने के लिए इस आर्टिकल को शेयर कीजिए जिससे बाकी लोग भी भारतीय सैनिकों की इस वीरगाथा को जान सकें।

Ambresh Dwivedi
Ambresh Dwivedi
Writer, news personality
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