1971 : बांग्लादेश का जन्म
1971 का दौर था । पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश ने एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म लिया था। पड़ोसी मुल्क के हुक्मरान इस हार को पचा नहीं पाए। पाकिस्तानी सेना खुद को अपमानित महसूस कर रही थी ।
इस हार से बौखलाए पाकिस्तानी हुक्मरानों का मानना था कि जैसे पाकिस्तान से बांग्लादेश गलत हुआ है इसी तरह भारत से भी कुछ अलग होना चाहिए । पाकिस्तानी सेना और हुक्मरान साजिश रचने लगे कि किस तरह भारत के टुकड़े किए जाएं !
इस काम के लिए उन्हें एक ऐसे आदमी या संगठन की जरूरत थी जो भारत में रहकर भारत के टुकड़े होने में उनकी मदद कर सके । पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई इसके लिए सक्रिय रूप से काम कर रही थी । धन की व्यवस्था पाकिस्तान के हुक्मरान और सेना कर रहे थे ।
जरनैल सिंह भिंडरावाले का उदय
पाकिस्तानी सेना को पंजाब के राजनीतिक हालातों के बारे में जानकारी थी इसलिए 1971 की हार के बाद पाकिस्तान ने खालिस्तान को हवा देनी शुरू कर दी और इसके लिए मोहरा बनाया गया भिंडरावाला को !
12 फरवरी 1947 को जन्मे जरनैल सिंह भिंडरावाला का जन्म पंजाब के मोगा प्रांत में हुआ । भिंडरावाला के गुरु करतार सिंह की मौत के बाद जरनैल सिंह भिंडरावाला को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया । मात्र 30 वर्ष की उम्र में भिंडरावाला दमदमी टकसाल का अध्यक्ष बन चुका था ।
1980 के दशक का पंजाब
1981 में खालिस्तान की मांग जोर भर रही थी । इन्हें कुछ विदेशों में रहने वाले लोगो का भी वित्तीय और नैतिक समर्थन मिल रहा था । पंजाब के राजनैतिक हालात सही नहीं थे और कुछ संगठनों के इशारे पर हिंदुओं की सामूहिक हत्या होनी शुरू हो गयी । ये ऐसा दौर था जब लगातार हुई कई हत्याओं से पंजाब में हिंदू खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे ।
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल खालिस्तान की मांग को समर्थन नहीं कर रहे थे लेकिन बड़े स्तर पर हो रहे कत्लेआम और अत्याचार पर उनकी सरकार कुछ नहीं कर पा रही थी ।
बताया जाता है कि खालिस्तान की मांग करने वालों ने अपनी खुद की मुद्रा छापनी शुरू कर दी थी । हालांकि अधिकतर सिख खालिस्तान की मांग से खुद को दूर रख रहे थे और हिंदुओं के ऊपर हो रहे इस अत्याचार को गलत बता रहे थे ।
पाकिस्तान से मिले हथियार और पैसे
भिंडरावाला एक बड़ी शक्ति बन चुका था और उसका खुलकर विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी । उधर पाकिस्तान ने खालिस्तान की मांग करने वालों को सपोर्ट करने के लिए पैसे और हथियार सप्लाई करने शुरू कर दिए । खालिस्तान की मांग को और तेज करने के लिए और हिंसक रूप देने के लिए खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और बब्बर खालसा नामक उग्रवादी संगठन की शुरुआत की गई । इन संगठनों के तार भी कहीं न कही देश विरोधी शक्तियों से जुड़े हुए थे ।
दूसरी तरफ हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर शिवसेना पंजाब में अपनी पकड़ बना रही थी। बड़े पैमाने पर बाल्मीकि समाज ने शिवसेना से जुड़कर इस हिंसा का जवाब देना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से कई जगह दंगे भी भड़क गए
केंद्र की कांग्रेस सरकार वोट बैंक और अन्य राजनीतिक कारणों से इस हिंसा का खुलकर विरोध नहीं कर रही थी और ना ही कोई कार्रवाई कर पा रही थी । उधर पाकिस्तान को लग रहा था जैसे भारत को तोड़ने का उसका सपना बस पूरा होने ही वाला है । आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी और बड़ी संख्या में उग्रवादी संगठनों को पैसा और हथियार पहुंचाने शुरू कर दिए ।
लाला जगत नारायण की हत्या
हथियारों और पैसों के दम पर पंजाब को दंगो की प्रयोगशाला बना दिया गया। इसी बीच 9 अप्रैल 1981 को लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई लाला जगत नारायण पंजाब केसरी के प्रधान संपादक थे और खालिस्तान की मांग के खिलाफ मुखर होकर बोल रहे थे। वह हिंदुओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं का लगातार विरोध कर रहे थे । लाला जगत नारायण ने हिंदुओं और सिखों के बीच भाईचारा बनाने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन भिंडरावाले और उनका संगठन लालाजी से नाखुश था ।
लाला जगत नारायण की हत्या का इल्जाम भिंडरवाले पर लगा। भिंडरावाला के खिलाफ वारंट जारी हुए । भिंडरावाला ने 20 सितंबर 1981 को एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित कर सरेंडर कर दिया ।
भिंडरावाले की रिहाई और सरकार की विफलता
केंद्र सरकार ने इस मामले में लीपापोती करते हुए देश के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री ज्ञानी जेल सिंह से संसद में बयान दिलवाया कि लाला जगत नारायण की हत्या में भिंडरावाला के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला जिसके बाद 15 अक्टूबर को जरनैल सिंह भिंडरावाले को रिहा कर दिया गया ।
इस घटनाक्रम ने जनरल भिंडरावाले को हीरो बना दिया। पाकिस्तान के रहनुमाओं ने इसे अपनी जीत माना।
दरअसल कॉंग्रेस के तत्कालीन बड़े नेताओं का मानना था कि भिंडरावाले के रूप में उन्हें अकाली दल की काट मिल गयी है । भिंडरावाला के सर पर संजय गांधी के हाथ ने उसे पंजाब का अघोषित मुखिया बना दिया । वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक ” बियॉन्ड द लाइन्स इन ऑटोबायोग्राफी” में भी इस बात का जिक्र किया है कि कॉंग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने भिंडरावाले को पैसे देने की बात मानी थी ।
लेकिन इंदिरा गांधी सहित कॉंग्रेस के अन्य नेताओं को भी ये अनुमान नही था कि भिंडरावाले उनके लिए एक बड़ी गलती साबित होगा ।
कुछ ही दिनों में भिंडरावाले अब इंदिरा को आंख दिखाने लगा था । सरकार के लिए यह बड़ी विफलता थी । भिंडरावाले की बढ़ती ताकत का अनुमान अब सभी को हो रहा था। अब जरनैल सिंह भिंडरावाला खुद को एक बड़ी शक्ति के रूप में प्रचारित करने लगा । वही देश विरोधी ताकतों ने भिंडरावाला की हर तरह से मदद करनी शुरू कर दी। भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया और आईएसआई द्वारा पहुंचाई गई ऑटोमेटिक गन और हथियार इकट्ठे कर लिए गए। अब जरनैल सिंह भिंडरावाले सरकार से टकराने की सपने देखने लगा । पाकिस्तान को भारत तोड़ने के अपने इरादे सफल होते दिख रहे थे लेकिन इसी बीच इंदिरा गांधी को अपनी गलती का एहसास हो गया कि उसने भिंडरावाला को छूट देकर एक बडी गलती को जन्म दे दिया है ।
आपरेशन ब्लू स्टार
जरनैल सिंह भिंडरवाले अब इंदिरा गांधी के लिये सरदर्द बन चुका था । इंदिरा गांधी हर हाल में स्वर्ण मंदिर को भिंडरावाला और उसके अनुयायियों से मुक्त कराना चाहती थी । पहले इंदिरा गांधी ऑपरेशन सन डाउन के तहत 200 कमांडोज़ को ट्रेनिंग दिला चुकी थी लेकिन किन्ही कारणों से इसे अमल में नही लाया जा सका ।
स्थिति बिगड़ती देख इंदिरा गांधी ने सख्त कदम उठाते हुए जनरल कुलदीप सिंह बरार के नेतृत्व में ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई । 1 जून 1984 को हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश किया । 5 और 6 जून तक बड़ी संख्या में भिंडरावाले सहित उग्रवादियों को मार दिया गया और स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा दिया गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार का मकसद उग्रवादियों को खत्म कर पाकिस्तान के इरादों को तोड़ना और पंजाब में शांति स्थापित करना था। लेकिन खालिस्तान समर्थकों ने इसे अपमान माना और इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी ।