13 वर्षीय आदिवासी लड्की कोशीबाई की मार्मिक कहानी !(जिससे एक अंग्रेज लेखक एवम मानवशास्त्री पद्मभूषण पुरस्कार प्राप्त ” वेरियर एल्विन” ने शादी की)
ये एक आदिवासी अनपढ़ लड़की की कहानी है जो ताउम्र अपनी पहचान को तरसती रही । जीवन के आखिरी पड़ाव में अभावग्रस्त जिंदगी जी और जब 90 की उम्र में मृत्यु हुई तो उसके आदिवासी बेंगा समुदाय ने लाश को कन्धा देने से इनकार कर दिया। क्योकि उसने समुदाय के नियमो के विपरीत एक विदेशी से शादी की.. विदेशी जिसने 9 साल मे ही उसे तलाक दे दिया..
हालांकि सिर्फ 23 साल की उम्र में धोखे का शिकार हुई कोशीबाई उर्फ़ कौशल्या ने फिर से शादी नहीं की। 90 साल की उम्र तक अभावग्रस्त जिंदगी जीती रही। और अपने बचपन के रिश्ते को पूरी जिंदगी निभाया।
कौन थी कौशीबाई उर्फ़ कौशल्या
मध्यप्रदेश के पूर्वी जिले डिंडोरी के घने जंगलो मे एक गाँव है रैतवार। यहाँ आदिवासी बेंगा समुदाय निवास करता है। आजादी से दूरदराज के गाँवों में भी ईसाइयत के प्रचार के लिए लोग आते रहते थे। जिनमे विदेशी भी होते। ऐसे ही एक विदेशी डॉ वेरियर एल्विन उस गाँव रेतवार में सन 1940 मे पहुंचे .. मुख्य उद्देश्य तो उनका इसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करना था लेकिन इस समुदाय के तौर तरीके , रहन सहन ओर रीतिरिवाजो को अनोखा पाकर उन्होने इस समुदाय का अध्ययन शुरु कर दिया…
वेरियर एल्विन इस गाँव में करीब 12 साल रहे .. और इस दौरान उन्होने 26 पुस्तके लिखी .. एल्विन ने वहां एक स्कूल भी चलाया। जिसमे आस पास के आदिवासी बच्चे पढ़ने आते थे। इस दौरान आदिवासियों पर उनका शोध जारी रहा।
एल्विन बेंगा समुदाय के रीतिरिवाजों , तौर तरीको को करीब से देखते और विस्तार से लिखते। इसी बीच शोधरत एल्विन बेंगा समुदाय की एक अनपढ भोली-भाली 13 वर्षीय लडकी कौशीबाई की तरफ आकर्षित हुए।
ये लड़की कौशल्या थी जोकि एल्विन से करीब 24 साल छोटी थी ! और उनके चलाये स्कूल में पढ़ती थी।
एल्विन ने किसी तरह उसके घरवालो को मनाकर वहीँ उस गाँव में रहने के दौरान कौशल्या से आदिवासी तौर तरीको से शादी कर ली और साथ रहने लगे। इस वक्त एल्विन की उम्र 37 वर्ष थी ओर वे कौशीबाई से 24 साल बडे थे.. एल्विन कौशीबाई को अपने साथ दिल्ली एवम मुम्बई भी ले गये जहॉ एल्विन के मित्र नेहरु के यहा प्रधानमंत्री निवास मे भी कोशीबाई विशिष्ट अतिथि के रूप मे रही ..
एक बार एल्विन ओर नेहरु जी के साथ फिल्म देखते समय नेहरू जी ने पूछा कि वे अपने बच्चे का नाम क्या रखेगी तो उन्हे कोई जवाब ना सुझता देख नेहरु जी ने उनसे कहॉ कि वे अपने बच्चे का नाम जवाहर रखे…
कौशिबाई को दो संतान हुई जिसमे एक का नाम उन्होने जवाहर रखा..
एल्विन मध्यप्रदेश मे करीब 12 साल रहे। इन 12 सालो में अपने शोध के दौरान बेंगा आदिवासी समुदाय के रहन-सहन , अंधविश्वास ओर अन्य परम्पराओ पर काफी पुस्तके लिखी जिनमे ”the Baigas” बहुत प्रसिद्ध है .. इस दौरान उन्होने बेंगा समुदाय के यौन व्यवहार पर भी काफी लिखा जो पुस्तकों के रूप में प्रकाशित हुआ। काफी तस्वीरें भी प्रकाशित हुई। कोशीबाई का इसमें बहुत सहयोग रहा।
बाद में सरकारों ने आदिवासियों और जनजातियों के लिए जो कानून बनाये जो योजनाए बनाई उनमे एल्विन के शोधकार्य को भी आधार बनाया गया
23 साल की उम्र में छोड़ा
एल्विन इस वक्त खूब नाम कमा रहे थे और देश व विदेश में उनका नाम प्रसिद्द होता जा रहा रहा था। लेकिन वक्त ने शायद कोशीबाई के जीवन में दुःख लिखे थे। शादी के 9 -10 साल में कोशी 2 बच्चो की माँ बन चुकी थी और अचानक एक दिन एल्विन उन्हें अकेला छोड़कर दिल्ली आ गए। जिसके बाद वो कभी वापिस नहीं लौटे।
मात्र 13 साल की उम्र मे शादी करने वाली कोशी अब 23 वर्ष की थी..ऊपर से अनपढ ओर भोली कोशीबाई वो भला क्या बिगाड़ती। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने एल्विन को 1964 मे शिलॉग भेज दिया.. बताते है कि कोलकाता हाईकोर्ट ने बिना कोशीबाई को सुने ही तलाक मंजूर भी कर दिया और 25 रुपये मासिक गुजारा भत्ता मंजूर कर दिया। हालांकि ये कोशीबाई को लम्बे समय तक नहीं मिला।
एल्विन ने इन सालो में अपने शोधकार्य, पुस्तकों एवम तस्वीरो से दुनियॉभर में ख्याति पाई.उन्हें आदिवासियों का मसीहा बताया गया। वहीँ कोशीबाई की जिंदगी बदतर होती गयी। बताया जाता है कि एल्विन ने 2 ओर आदिवासी लडकियो से शादी की जिनमे एक लीला थी जोकि एक सरपंच की बेटी थी ओर फिर उन्हे भी छोड दिया
बताया जाता है कि एल्विन गांधी जी और नेहरू के काफी करीबी थे। महात्मा गांधी एल्विन को अपना पुत्र बोलते थे. ,जवाहर लाल नेहरु ओर जमनालाल बजाज जैसे महान हस्तियों से एल्विन की दोस्ती रही। एल्विन को उनके लेखन एवम शोधकार्य पर प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला ओर भारत सरकार की तरफ से एल्विन को नागालेंड का राज्यपाल भी बनाया गया। लेकिन कोशीबाई के जीवन की चिंता किसी ने नहीं की। एल्विन कभी कोशी के पास वापिस नही लौटे। आदिवासियों की नग्न तस्वीरें दुनियाभर में पसंद की गयी। गांधी जी और नेहरू भी कोसिबाई की हालत पर कभी नहीं बोले।
पति की मौत का पता 15 वर्ष बाद चला
1964 मे एल्विन का देहांत हो गया। आदिवासी समुदाय की कोशीबाई को इस बात का 15 साल बाद पता चल पाया। तब कौसीबाई की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब थी। गरीबी और इलाज न मिलने से कोशीबाई के दोनों बेटो का भी निधन हो गया। बडा बेटा ज्वाहर मेकेनिक का काम करता था..बेटो के बाद उनकी पत्नियों की जिम्मेदारी भी कोशीबाई पर आ गयी। कोशी ने अपने गुस्से को कभी जाहिर नहीं किया। आखिरी समय तक झोपडी में जीवन गुजारती कोशी को दुःख था कि एल्विन इस तरह उन्हें छोड़कर क्यों गए
2006 मे बीबीसी ने उसकी बुरी दशा के बारे मे लिखा.. मिट्टी की बनी झोपडी मे रहने वाली कोशी एल्विन की तश्वीर दिखाते हुए भावुक हो जाती है .. एल्विन के साथ मुबई की यात्रा एवम दिल्ली मे नेहरु ,एल्विन के साथ सिनेमा जाने की बात बताते हुए उसकी आंखो मे चमक आ जाती थी अंतिम दिनों में कोशी की हालत ठीक से चलने लायक भी नही थी .
बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू मे कोशी ने बताया था कि उसकी उम्र 13 साल थी जब उसने एल्विन के बनाये स्कूल मे दाखिला लिया.. साफ रंग ओर उचे कद की कोशल्या को एल्विन कोशी पुकारते थे.. बेहद हसमुख स्व्भाव की होने के कारण कोशी सभी की प्रिय थी .. एल्विन ने शादी का प्रस्ताव कोशी के माता पिता के सामने रखा.. शुरु मे इस रिस्ते को लेकर घरवाले खुश नही थे.. कभी शादी के बाद बम्बई ( अब मुम्बई) मे नौकरो से भरे घर मे कोशी रही तो बाद मे ठीक से खाना भी नसीब नही हुआ .. . देश आजाद होने के बाद एल्विन ने भारतीय नागरिकता ले ली थी
एल्विन ने अपने शोधकार्यो से खूब नाम कमाया लेकिन अच्छे पति साबित नहीं हुए
गुमनामी में छोड़ी दुनिया ,अंतिम समय में सिर्फ 10 लोगो ने दिया कंधा ,
जिंदगी के आखिरी समय तक कौशीबाई मेहनत मजदूरी करके अपने बेटो की विधवाओं और उनके बच्चो का पालन पोषण करती रही। 22 दिसम्बर 2010 को जब कोशीबाई का देहांत हो गया। उन्हें कंधा देने वाले चंद लोग ही वहा उपस्थित थे ..तब देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि ये कभी प्रधानमंत्री निवास की विशिष्ट मेहमान रह चुकी है। और विभिन्न पुस्तकों , पत्र पत्रिकाओं का हिस्सा रह चुकी है।
उनका अपना आदिवासी समुदाय अंत तक इस बात से नाराज था कि उन्होने अपने समुदाय को छोडकर विदेशी से शादी की .
अंतिम समय तक कोशी खुद को छला महसूस करती रही। आदिवासी समुदाय की नंगी तस्वीरो को देखकर उन्हे लगता था कि उनका सिर्फ शोध करने में प्रयोग किया गया। जिससे उन्होंने खूब इनाम बटोरे , पैसे कमाए लेकिन कोशी ताउम्र गरीब की गरीब ही रही।
भले ही एल्विन ने कोशीबाई को कच्ची उम्र में छोड़ दिया लेकिन कोशी ने ताउम्र उन्हें पति माना और दुबारा शादी नहीं की।
कच्ची उम्र मे दूर होने का दंश झेल चुकी कोशी ने बता दिया कि बेशक ये आदिवासी समुदाय आज भी शहरो ओर अच्छी जगह रहने वालो के लिये अनपढ ओर अज्ञानी हो पर रिश्तो को निभाने के इनके भी अपने तौर ओर तरीके है.. शायद हम कथित सभ्य ओर शिक्षित लोगो से बेहतर
हम शोध करते है तो ये प्रेम !
शायद जंगलो के इंसान अभी भी माटी के बने है
स्रोत – विभिन्न वेबसाइट एवं ब्लॉग
बहुत बेहतरीन लेख लिखी है आपने महोदय!