अक्सर लोग किसी की शारीरिक कमियों के चलते उसे कमज़ोर समझ लेते हैं। उसका मज़ाक उड़ाते हैं और उसे परेशान करते हैं। नैतिकता के तौर पर किसी भी व्यक्ति को उसकी शारीरिक अपंगता के चलते परेशान करना या सताना निंदनीय है। हालांकि, लोग इस बात को दरकिनार करते हुए उस व्यक्ति की मखौल बनाते हैं।
आज हम आपको ऐसे ही व्यक्ति के विषय में बताने जा रहे हैं जिन्होंने समाज से तंग आकर अपनी कमियों पर विजय पाने का प्रण कर लिया। इनका नाम है विरेंदर सिंह। प्यार से लोग इन्हें गूंगा पहलवान के नाम से भी जानते हैं।
हरियाणा में जन्मे विरेंदर
विरेंदर सिंह का जन्म हरियाणा के सासरोली गांव में हुआ था। वैसे तो इनके पिता और चाचा पहलवानी करते थे लेकिन इनका मूल कार्य खेती-बाड़ी ही था। विरेंदर पैदाइशी मूक और बधिर थे। गांव में लोग उनकी इसकी अपंगता का मज़ाक उड़ाते थे, उन्हें चिढ़ाते थे। जिस बात से तंग आकर एक दिन उनके परिजनों ने उन्हें सीआईएसएफ के अखाड़े में भेज दिया।
दिल्ली में लिया प्रशिक्षण
यहां से विरेंदर के पहलवानी का सफर शुरु हुआ। उन्होंने दिल्ली के प्रसिद्ध गुरु हनुमान अखाड़ा और गुरु छत्रसाल स्टेडियम से कुश्ती का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद शुरु हुआ उनकी सफलता का दौर। साल 2002 में विश्व कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर अपनी पहचान स्थापित की।
‘गूंगा पहलवान’ ने रचा इतिहास
इसके बाद वर्ष 2005 में उन्होंने मेलबर्न में हुए समर डेफ्लिम्पिक्स में भी स्वर्ण पदक हांसिल किया।
इसके अलावा उन्होंने विश्व बधिर कुश्ती चैंपियनशिप में रजत पदक हांसिल किया। साल 2013 के ग्रीष्मकालीन डीफ्लिम्पिक्स में उनका प्रदर्शन शानदार रहा और एक बार फिर वह स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब हुए। इसके बाद उन्होंने ईरान के तेहरान में 2016 विश्व बधिर कुश्ती चैंपियनशिप और सैमसन में 2017 ग्रीष्मकालीन डीफ्लिम्पिक्स में स्वर्ण पदक जीता।
इन उपलब्धियों के साथ उनका नाम पूरे देश में विख्यात हो गया। विरेंदर ने अपनी कमज़ोरी को अपनी ताकत में तब्दील करके इतिहास रच दिया और गूंगा पहलवान के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
पद्मश्री से नवाज़े गए विरेंदर
उनके कठिन परिश्रम और पराक्रम की कद्र करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हाल ही में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़े जाने के बावजूद विरेंदर खुश नहीं हैं। उन्होंने राज्य की खट्टर सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है।
बता दें, हाल ही में पद्मश्री विरेंदर सिंह अपने ही राज्य के मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरना प्रदर्शन करने पहुंच गए थे। उनका आरोप था कि मूक-बधिर होने की वजह से सरकार उन्हें उतना सम्मान नहीं दे रही है जो नॉर्मल खिलाड़ियों को दिया जाता है।
हरियाणा सरकार पर लगाया भेदभाव का आरोप
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वीरेंदर के भाई रामबीर सिंह ने बताया कि जब खिलाड़ी ने साल 2016 में हुए डेफ वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और 2017 के डेफ ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता तब राज्य की सरकार ने उन्हें 8 करोंड़ रुपये और ए ग्रेड की नौकरी देने की घोषणा की थी। हालांकि, साल 2018 में उन्हें बिना बताए और सम्मान के 1 करोंड़ 20 लाख रुपये उनके खाते में भेज दिये गए।
रामबीर ने बताया कि विरेंदर पिछले चार सालों से न्याय की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उन्हें उनके हक का रुपया और सम्मान नहीं मिल पा रहा है। यही कारण है कि पद्मश्री से सम्मानित मूक-बधिर खिलाड़ी को मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरने पर बैठना पड़ा है।