प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो क़ॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सोमवार को मैसूर विश्वविद्यालय के शताब्दी दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि मैसूर यूनिवर्सिटी, प्राचीन भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था और भविष्य के भारत की अपेक्षाओं और क्षमताओं का प्रमुख केंद्र है। इस यूनिवर्सिटी ने “राजर्षि” नालवाडी कृष्णराज वडेयार और एम विश्वेश्वरैया के विजन और संकल्पों को साकार किया है। हमारे यहां शिक्षा और दीक्षा, युवा जीवन के दो अहम पड़ाव माने जाते हैं। ये हज़ारों वर्षों से हमारे यहां एक परंपरा रही है। जब हम दीक्षा की बात करते हैं, तो ये सिर्फ डिग्री प्राप्त करने का ही अवसर नहीं है। आज का ये दिन जीवन के अगले पड़ाव के लिए नए संकल्प लेने की प्रेरणा देता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते 5-6 साल में 7 नए आईआईएम स्थापित किए गए जबकि उससे पहले देश में 13 आईआईएम ही थे। इसी तरह करीब 6 दशक तक देश में सिर्फ 7 एम्स सेवाएं दे रहे थे। साल 2014 के बाद इससे दोगुने यानी 15 एम्स स्थापित हो चुके हैं या फिर शुरू होने की प्रक्रिया में हैं। आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी साल 2014 से पहले तक देश में 16 आईआईटी थे। बीते 6 साल में औसतन हर साल एक नई आईआईटी खोला गया है। इसमें से एक कर्नाटक के धारवाड़ में भी खुला है। 2014 तक भारत में 9 आईआईटी थे। इसके बाद के 5 सालों में 16 आईआईआईटी बनाये गए हैं।
उन्होंने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के बारे में बताया कि नई शिक्षा नीति प्री नर्सरी से लेकर पीएचडी तक देश के पूरे शिक्षा तंत्र में बुनियादी बदलाव लाने वाला एक बहुत बड़ा अभियान है। हमारे देश के सामर्थ्यवान युवाओं को और ज्यादा प्रतियोगी बनाने के लिए बहुआयामी नजरिये से देखे जाने पर केन्द्रित किया जा रहा है। बीते 5-6 सालों से उच्च शिक्षा में हो रहे प्रयास सिर्फ नए शिक्षण संस्थान खोलने तक ही सीमित नहीं है। इन संस्थाओं में प्रशासनिक बदलाव से लेकर जेंडर और सामाजिक सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भी काम किया गया है। ऐसे संस्थानों को ज्यादा स्वायत्तता भी दी जा रही है।
अब आप एक फॉर्मल यूनिवर्सिटी कैंपस से निकलकर, रियल लाइफ यूनिवर्सिटी के विराट कैंपस में जा रहे हैं। ये एक ऐसा कैंपस होगा, जहां डिग्री के साथ ही आपकी क्षमता और काम आएगी, जो ज्ञान आपने हासिल किया है, उसकी उपयोगिता काम आएगी।