आलीशान जिंदगी और बेशुमार दौलत की कहानियां तो अपने कई सारी सुनी होंगी लेकिन जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय की जिंदगी के किस्से कुछ ज्यादा ही मशहूर रहे. कहा जाता है कि राजा माधो सिंह के पास 5 रानियां और 41 रखैलें थीं. राजा किसी ऐसी चीज का सेवन करते थे जिससे उनकी भोग विलास की इच्छा हमेशा बनी रहती थी.
पड़दायतें और पासवान-पातरें;
जयपुर की स्थापना के बाद से ही वहां पर राजाओं द्वारा जनानी ड्योढ़ी का चलन शुरू किया गया. इस जनानी ड्योढ़ी में रानियां और पड़दायतें रहतीं थीं. पड़दायतों को रखैल कहा जाता था. इसके अलावा पासवाने-पातरें भी होती थीं जिन्हें नाचने वाली कहा जाता था. हर एक राजा ने जननी ड्योढ़ी का प्रचलन रखा था लेकिन राजा माधो सिंह द्वितीय के कार्यकाल में जननी ड्योढ़ी बहुत फली-फूली।
5 रानियों के अलावा इन्होनें 41 पड़दायतें राखी थीं. पड़दायतें वो राजा से विवाह नहीं हुआ था लेकिन कुछ दस्तूर निभाए जाते थे जिससे उन्हें पड़दायत का पद मिलता था. इनका खर्च खुद महाराज उठाते थे. कहा जाता है कि किशोरवस्था में ही राजा माधो सिंह द्वितीय ने किसी एक ऐसी दवा का सेवन कर लिया था जिससे हमेशा उनके मन में भोग विलास की इच्छा बनी रहती थी.
पानी में केसर मिलाकर खेलते थे होली-
कहा जाता है कि होली वाले दिन राजा जननी ड्योढ़ी में ही रहा करते थे और अपनी रानियों और सभी पड़दायतों के साथ होली खेलते थे. इस दिन पानी के हौज में केसर घोली जाती थी और पीतल की नक्काशी वाली पिचकारियों से राजा होली करते थे. साल 1914 की होली में राजा माधो सिंह के लिए 9 पड़दायतें यानी रखैलें बनाई गईं. इसके अलावा दूसरी पड़दायतों को सोने-चांदी के आभूषण भेंट किए गए और रियासत के कर्मचारियों की पचास फीसदी वेतन वृद्धि की गई.
आधी रात उठ जाते थे भोजन करने-
माधो सिंह के बारे में ये भी कहा जाता है कि ये आधी रात भोजन करने के लिए उठ जाते थे इसलिए रसोइए हमेशा तैयार रहते थे. सिटी पैलेस के मुबारक महल के पास स्थित रसोड़े में दर्जनों हलवाई, राज मेहरा और भोजन चखने वाले चाखणों को भरमार थी. राजा माधो सिंह को कलाकंद बहुत पसंद था इसलिए उनके नाश्ते में कचोरी हनुमान और दो सेर कलाकंद परोसा जाता था. रसोई में इतने पकवान बना करते थे कि इस मासिक खर्च 28 हजार चांदी का रुपया था.
ऐसी आलीशान थी राजा माधो सिंह द्वितीय की जिंदगी। ऐसा नहीं है कि केवल माधो सिंह को पड़दायतें रखने का शौक था. इनके अलावा उदयपुर के महाराज संग्राम सिंह भी सहेलियां रखा करते थे. वहां आज भी सहेलियों की बाड़ी है. उनके पास तो कई सारी विदेश की सहेलियां भी थीं.