Sunday, December 15, 2024

आटा चक्की चलाने वाले का बेटा बना न्यूक्लियर साइंटिस्ट, देशभर से हुआ था 30 छात्रों का चयन

मन में सच्ची लगन और कुछ कर दिखने की सच्ची निष्ठा हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता. वो कहते है न, ढूंढने पर तो भगवान भी मिल जाते है. ऐसी ही एक बात को सच कर दिखाया है हरियाणा के हिसार में रहने वाले अशोक कुमार ने. भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में अपनी जगह बनाने वाले अशोक कुमार के पिता हरियाणा में एक आटा चक्की चलाते है.

मध्यवर्गी परिवार से आते है अशोक कुमार

एक मध्यवर्गी परिवार में जब कोई 20-30 हज़ार की नौकरी भी पा लेता है तो पूरा परिवार जश्न में डूब जाता है, वहीँ जब उसी परिवार से कोई ऊँचा पद हांसिल कर लेता है तो जलसा होता है. ऐसे ही जिस परिवार की रोज़ी रोटी मात्र एक आटा चक्की से चलाया जाता हो उस परिवार में अशोक कुमार ने भाभा एटॉमिक सेंटर में न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनकर अपने परिवार का और पिता का नाम रोशन किया है.

अशोल के पिता ने ज़ाहिर की ख़ुशी

अशोक कुमार की सफलता के बाद उनके पिता ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा ‘अशोक शुरू से ही पढ़ाई में होनहार रहा है. पैसे के अभाव चलते अशोक को गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाया और अपनी प्रतिभा की बदौलत अशोक आगे बढ़ा है’. अशोक अपने तीनो भाई बहनो में सबसे बड़े हैं और वे अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता पिता को देते है. अशोक ने बताया की वे बचपन से ही अब्दुल कलाम से बेहद प्रभावित हुआ करते थे. और उन्ही की तरह एक काबिल साइंटिस्ट बनना चाहते थे.

पढ़ने के लिए छोड़ दिया था घर

जानकारी के अनुसार अशोक ने अपनी पढाई के लिए काफी संघर्ष किया था, पढ़ाई के लिए उन्होंने अपना गांव घर बार सब त्याग दिया था. इसी के लिए वे लगभग 2 साल तक अपने घर से दूर रहे थे. काफी कम सहूलियत होने के बावजूद उन्होंने अपनी पढाई में कोई कमी नहीं छोड़ी और आज इस मुकाम पर है.

‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी स्कीम’ से मिली थी मदद

मेहनत के साथ साथ अशोक कुमार की मदद सरकार की ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी स्कीम’ काफी की थी. योजना 2014 में शुरू की गयी थी. आर्थिक रूप से कमज़ोर अशोक कुमार के परिवार को इस योजना का बड़ा लाभ हुआ था की आज उस घर का बीटा इस मुकाम को हांसिल कर पाया.

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