आज के समय में नीरज चोपड़ा एक जाना माना नाम बन चुके है. क्योंकि उन्होंने टोक्यो ओलम्पिक भाला फेंक में सफलता हासिल कर भारत को गोल्ड मैडल दिलवाया है. ऐसे में जब से वो विनर बनें है. लोग उनकी सफलता का राज जानना चाहते है. जैसे वो क्या खाते है, अपना टाइम कैसे मैनेज करते है या उनकी लाइफ के कौन से गोल्डन स्टेटमेंट है. आज के इस खास लेख में नीरज चोपड़ा के 5 ऐसे नियमों के बारे में बताने जा रहे है. जिन्हें फॉलो करके वो आज बुलंदियों को छू रहे है.
मजबूत दावेदारों से डरना नहीं है-नीरज चोपड़ा
नीरज चोपड़ा का कहना है कि जब मैदान में तब आपके सामने कितने भी बड़े प्रतिद्वंदी हो आपको उनसे डरने की जरूरत नहीं है. बल्कि आप ठंडे दिमाग से अपनी क्षमताओं और टेक्निक का इस्तेमाल करके उन्हें पीछे छोड़ सकते है. अपने इसी उसूल के चलते नीरज ने जेवलिन थ्रोअर योहान्स वेटर को पछाड़ कर गोल्ड मैडल हासिल कर लिया था.
भाषा का दबाब नहीं
अक्सर देखा गया है कि लोग अपनी भाषा के स्तर पर ही अपनी काबलियत को तय कर लेते है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. क्योंकि कोई भी भाषा सिर्फ एक बोली या लिखावट होती है, ज्ञान नहीं. अगर कोई इंसान कोई भाषा अच्छे से नहीं बोल पा रहा या उसे उस भाषा का ज्ञान नहीं है तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि वो कोई दूसरी भाषा जानता है. बात करें नीरज चोपड़ा की तो वो पानीपत के छोटे से गाँव खंडरा के रहने वाले है और वो इंग्लिश भी नहीं बोलते. लेकिन आज के समय में वो हर भारतीय युवा के लिए एक आइडियल बन चुके है.
कम्फर्ट जोन से बाहर आये
जब नीरज चोपड़ा बहुत मोटे थे. तब वो कुर्ता पहनकर बाहर जाते थे. लेकिन फिर भी लोग उनका मजाक उड़ाते थे. ऐसे ही एक दिन उन्हें ये बात चुभ गयी. जिसके बाद उन्होंने अपने कम्फर्ट जोन को छोड़कर एक्सरसाइज पर ध्यान दिया. जिसकी बदौलत आज वो एक गोल्ड मैडेलिस्ट बन चुके है.
कुछ नया करने की उत्सुकता
भारत के लिए ये पहला मौका है जब भारत के किसी एथिलिट ने जेवलिन में गोल्ड मैडल हासिल किया हो. क्योंकि अब तक भारत के एथिलिट्स ने हॉकी, कुश्ती, शूटिंग, बॉक्सिंग, वेट लिफ्टिंग जैसे खेलों में मैडल हासिल किये. जबकि नीरज ने भारत को पहली बार में ही जेवलिन में गोल्ड मैडल दिला दिया. हालाँकि ऐसा नहीं है कि वो इसी खेल में आगे बढना चाहते थे या इसकी तैयारी कर रहे थे. बल्कि वो तो वेट लिफ्टिंग, बास्केट बॉल जैसे खेलों के लिए खुद को तैयार कर रहे थे. लेकिन अचानक ही उन्होंने जेवलिन को हाथ में पकड़ा जिसका न तो उनकी फैमिली से दुर दूर तक कोई नाता था, न ही नीरज से. फिर भी नीरज चोपड़ा ने इसे आजमाया और नतीजा हम सब के सामने है.
फेलियर
2012 में बास्केट बॉल खेलते समय नीरज के हाथ में फ्रेक्चर हो गया था. जिसमें उनका 2 साल का समय बर्बाद हो गया. लेकिन फिर भी उन्होंने अपने इस फेलियर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. न ही जेवलिन से समझौता किया. जिसकी बदौलत वो कई मौकों में मैडल्स जीत चुके है. फिर चाहे कॉमनवेल्थ गेम हो या टोक्यो ओलम्पिक.
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