80 के दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसान आंदोलनों का केंद्र बना हुआ था। सरकारों की नीतियों के खिलाफ लगातार किसान आंदोलन कर रहे थे। इन आंदोलनों की कमान एक ठेठ बुजुर्ग किसान स्व चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने संभाली हुई थी । महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और किसान उन्हें मसीहा मानते थे।जो किसानों की समस्याओं के लिए किसी से भी भिड़ जाते।
करमुखेड़ी बिजलीघर पर चल रहा था किसान आंदोलन
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करमुखेड़ी बिजलीघर पर किसान आंदोलन में गोली चल गई और 2 किसानों की मौत हो गयी । किसान आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया और लाखो की संख्या में किसान महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में जमा हो गए। इस आंदोलन की गूंज ना सिर्फ देश मे बल्कि विदेशों में भी सुनाई दी । विदेशी मीडिया भी इसे कवर करने पहुँची ।
महेंद्र सिंह टिकैत रातोंरात किसानों के भगवान बन चुके थे । किसानों में रोष था लेकिन वे शांति के साथ जमे बैठे थे। किसानों की ताकत का एहसास सरकार कर चुकी थी ।
11 अगस्त 1987 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह सिसौली में इसी क्रम में चल रही एक पंचायत में पहुँचे । किसान जहां भी पंचायत करते उनके पास गुड़गुड़ाने के लिए हुक्का जरुर होता । खाने पीने का इंतेजाम भी गांववाले आपस मे मिलकर कर लेते । पीने के लिए पानी करवों ( घड़ा) में होता और एक आदमी घड़ा हाथ मे उठाकर पानी गिराता जिसे मुँह को हाथ लगाकर किसान पानी पीते। इसे देहात में ” ओक से पानी पीना ” बोला जाता है।
मुख्यमंत्री ने माँगा पानी
मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को प्यास लगी तो उन्होंने किसानो से पानी मांगा । किसानों ने उन्हें भी करवा ( घड़ा) उठाकर ओक से पानी पिला दिया । वीर बहादुर सिंह को ये खुद का अपमान लगा । जबकि किसानों के लिये इस तरह पानी पीना साधारण बात थी और यहाँ की रीतिरिवाजों में ये साधारणतः शामिल है।
उस घटना के बाद मुख्यमंत्री नाराज होकर वहां से चले गए । सरकार और किसानों में दूरियां और बढ़ गयी । बाद में केंद्र सरकार को इसमे हस्तक्षेप करना पड़ा और राजीव गांधी सरकार ने राजेश पायलट को इस किसान आंदोलन में भेजा।
राजेश पायलट खुद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान परिवार से थे और किसानों की समस्याओं से वाकिफ थे। लाखों की संख्या में मौजूद किसानों के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे राजेश पायलट आंदोलन में पहुंचे। किसानों की समस्याओं को सुना तब जाकर किसानों में मांगो को लेकर सहमति बन गयी ।