एक खून की सज़ा फांसी, सौ खून की सज़ा भी फांसी ! ऐसा गब्बर सिंह ने एक फिल्म में कहा था, मगर जरा ये सोच कर बताइये कि अगर एक बला@त्कार की सजा दस साल की जेल हो तो सौ बला@त्कार की सजा क्या देंगे ? क्या हुआ, भावनाएं आहत हो गई ऐसे भद्दे सवाल पर ? लेकिन ऐसा तो भारत में ही हो चुका है। वो दौर सोशल मीडिया का नहीं पेड मीडिया का था, फिर पच्चीस तीस साल पुरानी ख़बरें कौन याद रखता है ? ये वो ख़बरें थी जिन्हें कांग्रेसी हुक्मरानों ने नोट और तुष्टीकरण की राजनीती के लिए दबा दिया था। नहीं हम भंवरी देवी कांड की भी बात नहीं कर रहे, हम स्कूल की बच्चियों के बला@त्कार की बात कर रहे हैं। अजमेर बला@त्कार काण्ड की ! तीस पीड़ितों की पुलिस ने पहचान कर ली थी मगर मुकदमा करने के लिए आगे आने की हिम्मत, सभी लड़कियां नहीं जुटा पाई।
सन 1992 के इस मामले को उठाने वाली स्वयंसेवी संस्था धमकियों से डरकर भाग खड़ी हुई थी और इस कांड से जुड़ी छह पीड़िताओं ने पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक आत्महत्या कर ली थी। इन भूखे भेड़ियों का तरीका भी बहुत आसान था। पहले एक बलात्कार किया और उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें खींची। फिर उस तस्वीर से पीड़िता को ब्लैकमेल किया और उसे अपनी किसी मित्र को अपराधियों के अड्डे तक लाने के लिए कहा। इस तरह दूसरा शिकार, फिर अब दो शिकारों को ब्लैकमेल कर के तीसरी को फंसाया गया, फिर चौथी और इस तरह सौ से ऊपर लड़कियों के साथ महीनों ऐसा होता रहा। अपराधी स्थानीय कांग्रेसी नेता जी थे, और फिर उन्हें रोज़ ऐसा करते देख के उनके गुर्गे, चेले-चमचे इन लड़कियों के शोषण में शामिल हुए, होते होते ड्राईवर तक भी बलात्कारों में लगा रहा।
फिल्मों में बला@त्कारियों का खुद को पागल साबित कर के छूटना देखा है क्या ? फारूक चिश्ती जो कि यूथ कांग्रेस के नेता था, वो इस मामले के मुख्य आरोपियों में से एक था। मुकदमा शुरू होने पर उसे सिजोफ्रेनिया (एक किस्म की मानसिक बीमारी) हो गया और उसे छोड़ दिया गया। पुरुषोत्तम नाम का एक नौकर-चमचा जो इस मामले में आरोपी बनाया गया था, उसे 1992 के इस मामले से 94 में बेल मिल गई। जेल से छूटने पर उसने आत्महत्या कर ली। अगर सोच रहे हैं कि इतने दिनों तक ये यौन शोषण चलता रहा और किसी को खबर नहीं हुई, तो याद दिला दें कि वो दौर डिजिटल कैमरे का नहीं था। कैमरे की नेगेटिव को स्टूडियो में डेवलप करवाना पड़ता था। नवयुवतियों की नंगी तस्वीरों के लालच में वहीँ से तस्वीरें लीक होना शुरू हुई और जल्द ही पूरे शहर में एक बड़े स्कूल की कई छात्राओं की तस्वीरें घूमने लगी।
पुलिस तक मामला पहुंचा तो पीड़िताओं को धमकाने और उनका सामाजिक बहिष्कार करने की भी शुरुआत हो गई। तस्वीरों से पुलिस ने तीस से ज्यादा पीड़िताओं की पहचान कर ली। लेकिन लगातार आ रही राजनैतिक रसूख वालों की धमकियों के आगे जहाँ मुक़दमे की शुरुआत करवाने वाला स्वयंसेवी संगठन “अजमेर महिला समूह” अपने कदम पीछे खीच चुका था, वहां आम लोग क्या टिकते ? बारह मुकदमा करवाने वालों में से दस लड़कियों ने मुक़दमे वापिस ले लिए। सिर्फ दो ने मुकदमा जारी रखा। मामले के अट्ठारह आरोपियों में से छह को पुलिस कभी गिरफ्तार नहीं कर पाई। फारुक चिश्ती, पागलपन के बहाने छूट गया और कई बेल पर बाहर आने के बाद फिर कभी पुलिस के हाथ नहीं आये। गायब-लापता-फरार बलात्कारियों में से एक 2012 में पुलिस के हत्थे चढ़ा। पच्चीस हज़ार का इनामी बदमाश, सलीम नफ़ीस चिश्ती, अज़मेर के ही खालिद मोहल्ले से गिरफ्तार किया गया।
सलीम नफीस चिश्ती को 2012 में ही बेल मिली और उसके बाद से वो फिर से लापता है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और 2004 में जस्टिस एन.संतोष हेगड़े और जस्टिस बी.पी.सिंह की बेंच को लगा कि इतने बला@त्कारों के लिए दस साल की सजा तो काफी है ! अजमेर बला@त्कार काण्ड के अपराधी चिश्तियों में से कोई भी अब जेल में नहीं है।
अजमेर बला-त्कार काण्ड एक नजर में
वर्ष 1992 में अजमेर बला-त्कार कांड उस समय का सबसे कांड था | रसूखदार दोस्तों के समूह ने पहले तो स्कूल की कुछ लडकियों को धोखे से अपने चंगुल में फसाया और फिर उनका बला-त्कार किया | उसके बाद वो उन्ही लडकियों की सहेलियों को बुलाते और जबरन उनके साथ गलत कर अश्लील तस्वीरें खींच लेते | इस सब के पश्चात जब उन्हें समाज और परिवार का साथ नहीं मिला तो उनमें से 6 पीड़ित लड़कियों ने आत्मह@त्या कर ली | इस काण्ड में 8 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया औ न्यायालय द्वारा दोषियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी, पर कुछ समय पश्चात् न्यायालय द्वारा उनकी सज़ा घटाकर 10वर्ष कर दी गयी|
केस से रिलेटेड कुछ बातें
1. 1992 में पूरे स्कैंडल का भांडा फूटा. लड़कियों ने आरोपियों की पहचान की और आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया.
2. 1994 में आरोपियों में से एक आरोपी ने सुसाइड कर ली.
3. केस का पहला फैसला छः साल बाद आया जिसमे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने आठ लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई.
4. इसी बीच आरोपी फारूक चिस्ती ने दिमागी संतुलन खोने का बहाना बनाया जिससे केस को लटकाया जा सके
5. कुछ दिन बाद कोर्ट ने चार आरोपियों की सजा कम करके दस साल के लिए जेल भेज दिया
6. सजा कम होने बाद राजस्थान गवर्मेंट नें सुप्रीम कोर्ट में इस दस साल की सजा के खिलाफ अपील लगा दी. जेल में बंद चार आरोपियों ने दस साल की जजमेंट को सुप्रीम कोर्ट चैलेंज किया .
7. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान गवर्नमेंट और आरोपियों दोनों की फाइल्स को ख़ारिज कर दिया.
8. इस केस का एक आरोपी 25 हजार का इनामी सलीम नफीस चिश्ती उन्नीस साल बाद 2012 में पकड़ा गया. बेल पर छुट कर आने के बाद से उसके बारे में कोई खबर नहीं है.
उसके बाद से इस केस के बारे में कोई नई खबर नहीं है कि क्या हुआ उन रेपिस्ट्स का. सलीम कहां है. फारूक की दिमागी हालत ठीक हुई कि नहीं. अजमेर बला@त्कार काण्ड के अपराधी चिश्तियों में से कोई भी अब जेल में नहीं है।
– आनंद कुमार