“मैंने जबसे होश संभाला है खिलौनों की जगह मौत से खेलता आया हूं” – कुर्बानी फिल्म का ये डायलाग तो याद होगा ! इस डायलाग से दिलो पर छा जाने वाले थे विनोद खन्ना !
सत्तर साल की उम्र में कैंसर से लडते हुए बाँलीवुड के सत्तर के दशक के दिग्गज अभिनेता विनोद खन्ना ने आखिरी साँस ली। विनोद खन्ना बाँलीवुड के उन गिने चुने बेहतरीन बेजोड अभिनेताओ में से एक हैं जिन्होने अपने कैरियर की शुरूआत तो खलनायकी से की मगर कुछ ही सालो बाद डैसिंग हीरो के रूप में खुद को मजबूती से स्थापित किया।वे बाँलीवुड के असली माचोमैन हीरो थे जिनके शानदार व्यक्तिगत का हर कोई कायल था। गुलजार साहब की मेरे अपने से लेकर दबंग के सीधे सादे बाप तक वे अपनी बेहतरीन अदाकारी से सदा ही हम लोगो को अपना दीवाना बनाते रहे। उनका चले जाना सच में भारतीय सिनेजगत का करिश्माई कलाकार खो जाना है इस फलक पर मगर जब जब उनकी फिल्मे आँखो के आगे से गुजरेगी तो यकीन मानिए दिल में एक टंकार से होगी ,हूक सी उठेगी।सन 1946 ई० 7 अक्टूबर को अविभाजित भारत के पंजाब के पेशावर में एक कारोबारी परिवार में जन्में बंटवारे के बाद भारत चले आये । जहाँ उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बाँर्डिंग स्कूल में हुई। विनोद खन्ना बचपन में बहुत शर्मीले स्वभाव के थे पर आगे चलकर यह शर्मीला बच्चा ही बाँलीवुड का असली माचोमैन कहलाया जिसके कद काठी व रंग रूप ने दर्शको का मन मोह लिया।
विनोद खन्ना का जीवन व कैरियर दोनो ही बेहद उतार चढाव भरे रहे मगर वे भी रील व रियल दोनो में ही जूझते हुए आगे बढे। जवानी के शुरूआती दिनो में ही मुगल ए आजम मूवी देखकर व अपने गृहनगर पेशावर के ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के अभिनय के दीवाने होकर गबरू विनोद खन्ना ने भी फिल्मो में कैरियर बनाने की ठान ली। उनके पिता इस फैसले के सख्त खिलाफ थे मगर वे भी बेटे की जिद के आगे झुके व दो साल का वक्त दिया कि जो चाहो करो। विनोद खन्ना को पहला ब्रेक सुनील दत्त ने ‘मन का मीत ‘ फिल्म में विलेन के तौर पर दिया जिसमें वे अपने भाई को नायक के रूप में उतार रहे थे। भाई तो चले नहीं मगर विनोद खन्ना देखते ही देखते भारतीय सिनेपटल पर सबसे खूबसूरत खलनायक व बाद में एक धाकड व डैशिंग हीरो के रूप में छा गये सत्तर के दशक के शुरूआती सालो में वे विलेन के तौर पर मेरा गाँव ,मेरा देश जैसी मूवी से घर घर लोकप्रिय हो उठे जिसमें पहली बार एक इतने सुंदर लडके को डकैत के किरदार में देखा गया। बाद में गुलजार साहब ने विनोद खन्ना की अभिनय क्षमता को देखते हुए उन्हें ‘ मेरे अपने ‘ फिल्म में बतौर नायक लांच किया। बस फिर क्या था सत्तर के दशक में अमिताभ बच्चन के सबसे मजबूत प्रतिद्विंदियो में विनोद खन्ना को गिना जाने लगा।
एक दौर ऐसा भी आया जब अमिताभ बच्चन की आंधी में भी विनोद खन्ना लोकप्रियता में पीछे नहीं रहे । मगर समय की कहानी है कि अस्सी के दशक की शुरूआत में ही विनोद खन्ना को पारिवारिक मुश्किलो का सामना करना पडा व घर में हुई कई त्रासदियो ने उन्हें आचार्य रजनीश ओशो की शरण में भेज दिया जहाँ वे कई सालो तक रहे। अपने कैरियर के पीक पर जाकर ये महान कलाकार अध्यात्म की दुनिया में चला गया। उन्होने अपनी मर्सिडीज तक बेच दी व ओशोधाम में शान्ति व सुकून की तलाश में माली तक का काम किया।
बाद में पाँच छ सालो बाद ये फिर से फिल्मीदुनिया में लौटे व दूसरी पारी की शुरूआत की। इनकी दूसरी पारी भी बेेहद जबरदस्त रही व दयावान ,चाँदनी , सूरज , फरिश्ता ,बंटवारा जैसी कई हिट फिल्मे दी।
विनोद खन्ना की पहली शादी गीतांजली से 1971में हुई जिनसे उन्हें अक्षय खन्ना व राहुल खन्ना दो लडके हुए, दोनो ही अभिनेता हैं।
दूसरी शादी ओशो के यहाँ से लौटने पर कविता से की जिनसे भी दो बच्चे एक लडका व लडकी है । विनोद खन्ना ने खलनायकी से शुरूआत करके नायकी का एक लंबा सफर तय किया , ऐसे कम ही लोग होते हैं जो अपने कैरियर के चरम पर होते हुए ग्लैमर व चकाचौंध की दुनिया छोडकर कहीं अध्यात्म में रमते हैं मगर यह इस अभिनेता का साहस था।
नब्बे के दशक में विनोद खन्ना ने भाजपा का दामन थामा व दो बार गुरदासपुर पंजाब से सांसद बने । राजग की वाजपेयी नेतृत्व वाली सरकार में वे केन्द्रीय संस्कृति व पर्यटन मन्त्री रहे व बाद में अति महत्वपूर्ण विदेश मन्त्रालय में राज्य मन्त्री बने। उन्होने अभिनेता होने के साथ साथ राजनेता का किरदार भी बखूबी निभाया। वे सही मायनो में एक दिग्गज लीजेंडरी अभिनेता थे जिन्होने जीवन के उतार चढावो।के बावजूद जीवन से हार नहीं मानी।
विनोद खन्ना व फिरोज खान दोनो की दोस्ती बहुत गहरी थी व दोनो ने कई हिट व यादगार फिल्में दी ,आज दोनो ही इस दुनिया में नहीं है । फिल्मो का यह सितारा आज भले ही हमारे बीच ना हो मगर उनकी यादगार व बेमिशाल अदाकारी से सजी फिल्में सदा उनकी याद दिलाती रहेंगी। आज यह फिल्मीदुनिया का सितारा दूर कहीं आसमान में सितारा बनकर टिमटिमा रहा है।
विनोद खन्ना की उल्लेखनीय फिल्मो में मेरे अपने ,मेरा गाँव मेरा देश, पूरब और पश्चिम, मुकददर का सिकंदर, परवरिश , अमर अकबर एंथनी , कुर्बानी, द बर्निंग ट्रेन , लहू के दो रंग, हेराफेरी, खून पशीना, हाथ की सफाई ,दयावान , चाँदनी,कुदरत , बंटवारा, कच्चे धागे ,अचानक आदि हैं।
जीवन के कई पडावो से गुजरता हुआ यह सदाबहार माचौमैन हमारे दिलो पर एक छाप छोड गया है । क्या पडाव थे उनके जीवन में बंटवारे से पहले जन्म लेना पेशावर में, फिर बंटवारे के बाद यहाँ आना , खलनायकी करते हुए बतौर हीरो छा जाना ,फिर सन्यास लेना व मायालोक से बाहर चले जाना फिर लौटना व फिर से खोया मुकाम हासिल करना। राजनीति में आकर केन्द्रीय मन्त्री तक बनना ,चार बार सांसद । वाकई इस लीजेंडरी अभिनेता ने जीवन के कई मंचो पर अपना किरदार जोरदार निभाया।
– मनीष पोसवाल