10 मई को शुरू हुई 1857 की क्रांति में आम जनमानस की बड़ी भूमिका रही थी । ये क्रांति वर्षो से शोषण से उपजे असंतोष के खिलाफ किसानो और मजदूरों की लड़ाई थी मेरठ में धन सिंह कोतवाल और राव कदम सिंह नागर के नेतृत्व में बिगुल बज चुका था और बगावती सैनिक, किसानो और मजदूरों की हजारो की सेना ने दिल्ली चलो के नारे के साथ दिल्ली की तरफ कूच कर दिया था ! आस पास के सभी गाँव बागी हो चुके थे । धन सिंह कोतवाल ने हजारो कैदियों को जेल से रिहा कर क्रांतिकारियों की सेना में शामिल कर लिया । अब सबके दिल में सिर्फ अंग्रेजो को खदेड़ने की चाहत थी !
इस आन्दोलन को इतिहासकारों द्वारा सबसे बड़ी सशस्त्र क्रांति भी कहा जाता है जिसमे असंतुष्ट सैनिको के अलावा अंग्रेजो के अत्याचार से पीड़ित किसान- मजदूर , हर जाति-धर्म और जमीन से जुड़े लोगो ने हथियार उठाकर लाखो की संख्या में युद्ध लड़ा । ये आन्दोलन अंग्रेजो के विरोध में किसानो मजदूरों की हिंसक प्रतिक्रिया थी । एक महीने पहले मंगल पांडे को बैरकपुर जेल में फांसी दे दी गयी थी !
मशहूर लेखक एम् .के .गांधी अपनी पुस्तक – “1857 : क्रांति व क्रांतिधरा ” में लिखते है कि
” आम लोग क्रांति के लिए तन-मन-धन से तैयार हो गये थे , विशेषकर गुर्जरों ने तो इसे अपनी जाति की क्रान्ति ही घोषित कर दिया था जिसके कारण पूरे देश में लोग अंग्रेजो के विरुद्ध खड़े हो गये थे। “
मेरठ की क्रांति
मेरठ से शुरुआत होने के कारण इसे 1857 की मेरठ की क्रांति भी कहा जाता है। मेरठ गजेटियर में भी 1857 की क्रांति और आस पास के क्रांतिकारियों के बारे में काफी जानकारी उपलब्ध है ! इस 1857 की क्रांति के बारे में मेरठ गजेटियर कहता है कि मेरठ क्षेत्र में गुर्जर और रांगड़ अंग्रेजो के सबसे बड़े दुश्मन थे और इन्होने अंग्रेजी सेना को कड़ी टक्कर दी !
मेरठ गजेटियर में पेज 167 पर लिखा है कि 10 मई 1857 की क्रांति में रात 10 बजे तक आस पास के गाँवों से हजारो की संख्या में गुर्जर लोग आ गये और उन्होंने छावनी पर हमला कर दिया । शाम 5 बजे क्रान्ति का आरम्भ होते ही आस पास के गाँवों में इसकी सूचना धन सिंह कोतवाल द्वारा पहुंचा दी गयी थी जिससे कुछ ही घंटो में हजारो की संख्या में गुर्जर इकठ्ठा हो गये और छावनी पर हमला कर दिया ।
धन सिंह कोतवाल ने आस पास के क्रांतिकारियों का साथ लेकर मेरठ स्थित केसरगंज की जेल तोडकर 800 से ज्यादा कैदियों को छुड़ा लिया और उन्हें अपनी क्रांतिकारी सेना में सम्मलित कर लिया ।
इस सशत्र 1857 की क्रांति के बारे में यूरोप के विचारक कार्ल मार्क्स ने भी लिखा और इसे यूरोप की उपनिवेशवादी नीतियों के खिलाफ किसानो और मजदूरों की सशस्त्र आवाज बताया । पूजीवाद के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नाम दिया ।
दस मई को जैसे ही मेरठ में 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई देखते ही देखते आज का दादरी (नोएडा – ग्रेटर नोएडा क्षेत्र) और बुलंदशहर भी आन्दोलन का हिस्सा बन गया और यहाँ के ग्रामीण भी अंग्रेजो को खदेड़ने के लिए क्रांतिकारियों की सेना के साथ हो लिए । दादरी क्षेत्र में युद्ध की कमान दादरी के राजा उमराव सिंह भाटी ने संभाली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नेतृत्व किया !
परीक्षित गढ़ में क्रांतिकारियों ने राव कदम सिंह नागर को अपना नेता घोषित कर दिया था । राव कदम सिंह नागर के नेतृत्व में 10 हजार सैनिको की विशाल सेना बन गयी थी !
मेरठ के आस पास के गाँवों के गुर्जरों ने भी क्रांति आरम्भ कर दी ! नजदीकी दादरी और बुलंदशहर जिले में गुर्जर क्रांतिकारियों का नेतृत्व राव उमराव सिंह भाटी और वलिदाद खां कर रहे थे! मेरठ और दिल्ली के बीच में पड़ने वाले गाँवों ने बड़े स्तर पर क्रांति की और अंग्रेजो से जमकर लोहा लिया ।
मेरठ गजेटियर पेज 173 पर लिखता है – ” कदम सिंह नागर ने स्वयं को परीक्षितगढ़ और मवाना का राजा घोषित कर दिया तथा 1803 से दबी हुई तोपों को निकालकर उसने अपने साथियों को हथियारबंद होने को कहा !”सफ़ेद पगड़ी पहन कर लड़ने वाले कदम सिंह नागर के साथ 10 हजार लड़ाके थे , वे भी सभी सफ़ेद पगड़ी पहना करते थे जिसे वे कफ़न के प्रतीक के रूप में मानते थे
बागपत क्षेत्र से बाबा शाहमल जाट और सरधना एरिया से नरपत सिंह क्रांतिकारियों के अगुआ थे ।
क्रान्ति को कुचलना शुरू हुआ और फिर हजारों शहादत !
सीकरी की शहादत
अचानक हुई इस क्रांति में अंग्रेजो को भारी जानमाल की छति पहुँच रही थी और क्रांतिकारी लगातार हमले करके अंग्रेजो को मार रहे थे । अंग्रेज जल्द से जल्द इस क्रांति को कुचलना चाहते थे इसके लिए उन्होंने आस पास के ऐसे गाँवों को निशाना बनाना शुरू कर दिया जिनमे गुर्जरों की अधिक संख्या थी ! सीकरी सहित कई गाँवों पर हमला करके तोपों से लोगो को उड़ा दिया गया । और गाँवों में जाकर आग लगानी शुरू कर दी । कई गुर्जर गाँवों में भयंकर मार काट मनाई । इन गाँवों में बच्चो और बुजुर्गो को भी नहीं छोड़ा गया
मेरठ के सीकरी गाँव में सिब्बा गुर्जर की हवेली को तहसील का रूप देकर गाँव को आजाद घोषित कर दिया गया । और गाँव के गुर्जर नौजवानों ने मरते दम तक अंग्रेजो से लोहा लेने की कसम खायी । साथ ही गद्दारों पर हमला कर उन्हें मारने लगे । अंग्रेजो ने क्रांतिकारियो को दबाने के लिए खाकी रिसाले को अत्याधुनिक हथियारों के साथ भेज दिया । क्रांतिकारियों के पास एक पुरानी तोप और छीने हुए हथियार थे , जिसके सहारे वो आखिरी सांस तक जूझते रहे और पूरे गाँव ने शहादत दे दी !
मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर एफ0 विलियमस् की 1857 क्रांति की शासन को भेजी रिपोर्ट के अनुसार गुर्जर बाहुल्य गाँव सीकरी खुर्द का संघर्ष पूरे पाँच घंटे चला और इसमें 170 क्रान्तिकारी शहीद हुए। ग्राम में स्थित महामाया देवी का मन्दिर, वहाँ खड़ा वट वृक्ष और सतियों का खेत आज भी सीकरी के शहीदों की कथा की गवाही दे रहे हैं। परन्तु 1857 क्रांति की इस शहीदी गाथा को कहने वाला कोई सरकारी या गैर-सरकारी स्मारक वहाँ नहीं हैं।
सीकरी गाँव की शहादत के लिए विस्तार में पढ़े के लिए ये लिंक पढ़े – सीकरी की शहादत
सीकरी के अलावा भी अनेकों गाँवों को निशाना बनाकर क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतारा जाने लगा ताकि क्रांति को दबाया जा सके !
हिंडन का युद्ध
दादरी – बुलंदशहर के क्रांतिकारियों की सेना ने गाज़ियाबाद , बुलंदशहर और सिकंदराबाद को अपने कब्जे में ले लिया और अंग्रेजो को खदेड़ दिया । क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी थी और अंग्रेज जल्द से जल्द इस क्रांति को कुचलना चाहते थे , जिसके लिए उन्होंने दिल्ली और मेरठ पर हमले के लिए बर्नाड के नेतृत्व में सेना बुलाई और मेरठ में रुकी हुई अंग्रेजी सेना को हिंडन पार कर दिल्ली के पास बुलाया ।
दिल्ली के बादशाह ने राजा राव उमराव सिंह भाटी से सहायता मांगी ताकि अंग्रेजी सेना को हिंडन पर रोक दिया जाए । राव उमराव सिंह भाटी ने दादरी बुलंदशहर के गाँवों के क्रांतिकारियों के साथ गाज़ियाबाद के हिंडन नदी के पुल के पास अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया ।
क्रांतिकारियों की सेना और अंग्रेजो के बीच हुए इस भयंकर युद्ध में अंग्रेजो के पास बड़ी संख्या में तोप , बंदूके , घुड़सवार और भारी मात्रा में गोला बारूद था जबकि राव उमराव सिंह भाटी की सेना के पास लूटे गये हथियार और परंपरागत हथियार लाठी बल्हम आदि थे । क्रांतिकारियों की सेना ने अंग्रेजो को मुहतोड़ जवाब दिया और भारी संख्या में अंग्रेजो को मारा । हजारो की संख्या में क्रांतिकारी भी शहीद हुए लेकिन अंग्रेजो को भागना पड़ा। और इस युद्ध में क्रांतिकारी सेना की जीत हुई ।
अंग्रेजो की प्रशिक्षित सेना को हराना आसान नहीं था लेकिन क्रांतिकारियों के मजबूत इरादों ने इसे संभव बनाया ।
इस युद्ध के बाद इस क्षेत्र में अंग्रेजी चौकियो को नष्ट कर दिया गया और बुलंदशहर तक क्रांतिकारियों का राज स्थापित हो गया । लेकिन अंग्रेज कहाँ चुप बेठने वाले थे । वे अपनी हार का बदला हर हालात में लेना चाहते थे
1857 की क्रांति में हुए हिंडन के युद्ध के बारे में विस्तार से पढने के लिए यहाँ क्लिक करे – हिंडन का युद्ध
जिसके लिए सितम्बर में एक बार फिर बड़ी सेना लेकर हमला किया । ये युद्ध कासना और सूरजपुर के बीच जिस क्षेत्र में आज सेक्टर बसे हुए है यहाँ पर हुआ । अंग्रेजो की प्रशिक्षित सेना के सामने यहाँ के क्रांतिकारी जी जान से लड़े लेकिन इस बार उनके आधुनिक हथियारों के सामने क्रांतिकारी बड़ी संख्या में शहीद हुए !
बुलंदशहर के काला आम पर फांसी
जब 84 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दे दी गयी
राव उमराव सिंह भाटी को उनके चाचा रोशन सिंह भाटी, भाई बिशन सिंह भाटी और अन्य क्रांतिकारियों के साथ पकड़ लिया गया ! और 84 क्रांतिकारियों को बुलंदशहर के काला आम चौराहे पर एक साथ फांसी दे दी गयी गुर्जर क्रांतिकारियों के मन में भय बैठाने के लिए राव उमराव सिंह भाटी को हाथी के पैरो के नीचे कुचलवा दिया गया ताकि 1857 की क्रांति को दबाया जा सके ! क्रांतिकारियों के शव कई कई दिनों तक चौराहे पर लटके रहे ताकि आम जनता में दहशत हो सके ।
राव उमराव सिंह भाटी की दादरी में लगी प्रतिमा
एक साथ दादरी क्षेत्र के जिन 84 क्रांतिकारियों को फांसी दी गयी उनमे अट्टा के इंदर सिंह , नत्थू सिंह , जुनैदपुर के दरियाव सिंह , राजपुर के सरजीत सिंह , गुनपुरा से रामबक्श , चिटहैड़ा से फत्ता नंबरदार , लुहारली के मजलिस जमीदार , रानौली के हिम्मत सिंह , नंगली समाना के हरदयाल सिंह , नंगला नैनसुख के झंडू जमीदार व मानसिंह , बील के हरदेव , रूपराम , गहलोत के दीदार सिंह , खुगवा वास के सिम्मा , रामसहाय , तिलबेघमपुर के करीम बख्श , चीती के कल्लू जमींदार , मसौता के इंदर सिंह , सैथली के मुंगनी , नंगला चमरू के वंशी प्रमुख थे । इसके अलावा; दादरी क्षेत्र के एक हजार से ज्यादा क्रांतिकारियों को काला पानी भेज दिया गया था।
1857 की क्रांति में ग्रेटर नोएडा दादरी में हुए इस ऐतिहासिक युद्ध और शहीद हुए क्रांतिकारियों के लिए कोई स्थल नहीं है जहाँ इनकी शहादत को नमन किया जा सके !
- सुनील नागर