बिहार के दशरथ मांझी को भला कौन नहीं जानता। वही मांझी जिन्होंने अपनी पत्नी की याद में 40 फीट उंचे पहाड़ को काटकर लंबी-चौड़ी सड़क बना दी थी। जिसके बाद गांव में रहने वाले लोगों को इससे काफी सुविधा होने लगी। ठीक इसी तरह राजस्थान के बूंदी जिले से बाबा बजरंग दास का नाम सामने आय़ा है। बाबा ने लोगों की समस्याओं को जड़ से खत्म करते हुए लंबे-चौंड़े पहाड़ को काटकर 40 किमी की दूरी कम कर दी है। बाबा के इस कृत्य के बाद उन्हें माउंटेनमैन के नाम से जाना जाने लगा है।
बाबा द्वारा किए गए इस अद्भुत कारनामे से 40 किमी की दूरी महज़ 3 किमी ही रह गई है। इस मार्ग पर कुल 300 मीटर तक ही सड़क का निर्माण हो सका है जबकि बाकी का रास्ता अभी कच्चा है। हालांकि, गांववालों के लिए इतना ही रास्ता किसी चमत्कार से कम नहीं है।
बूंदी के संत ने किया कमाल
बात करें, पहाड़ काटकर बनाए गए मार्ग की तो जयपुर से करीब 210 किमी की दूरी पर एक जिला पड़ता है जिसका नाम है बूंदी। इस जिले के गंडोली गांव के निवासी बाबा बजरंग दास पूर्ण रुप से सन्यासी हैं। उनके हज़ारों की संख्या में भक्त हैं। ये सभी भक्त बाबा के दर्शन और उपदेश मात्र के लिए एक ज़माने में घने जंगलों और पहाड़ों का सीना चीरकर पहुंचते थे। भक्तों की इसी समस्या के मद्देनज़र बाबा ने मीलों लंबे रास्ते को चंद घंटों का कर दिया। यह कारनामा बाबा बजरंग दास ने अपने अनुयायियों की मदद से किया।
लोगों की दिक्कतों को दूर करने के लिए उठाया बीड़ा
समाज कल्याण की भावना से किए गए इस नेक कार्य के पीछे की वजह पर रौशनी डालते हुए बाबा बजरंग दास ने बताया कि, यह कार्य उन्होंने साल 1985 में ही प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने बताया कि गांव के लोगों को दवाइयां लाने और इलाज के लिए लोगों को पहाड़ी पार करनी पड़ती थी, लोग यहां के फिसलन भरे रास्तों से गुजरते थे, इससे लोगों की जान खतरे में पड़ती थी। बाबा ने बताया कि इस सबके बीच मवेशियों की भी मौत हो जाती थी। हालांकि, गांव वालों के सामने दो ही रास्ते हैं, एक या तो 4 किमी पहाड़ियों की ट्रैकिंग करना या 40 किमी की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द मंडराना।
भक्त का घोड़ा खोने पर दुखी हुए बाबा, बना डाली सड़क
अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बाबा बताते हैं 80 के दशक में यहां गाड़ियां नहीं आती थीं। पूरा सफर बैलगाड़ियों से तय होता था। उन्होंने बताया कि एक बार उनका एक भक्त अपने घोड़े पर सवार होकर आश्रम पहुंचा था। रात के वक्त वह घोड़ा कहीं चला गया और काफी ढूंढ़ने के बावजूद वह नहीं मिला। इस घटना के बाद बाबा ने फैसला किया कि वे इस समस्या को जड़ से ही खत्म कर देंगे। बाबा ने कहा कि तब मैंने फैसला किया कि मैं पहाड़ियों पर सड़क बनाऊंगा। मैंने 1985 में काम शुरू कर दिया। मेरे पास मजदूरों को लगाने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन धीरे-धीरे स्वयंसेवक इस काम से जुड़ने लगे और लोगों ने 2 रुपए से लेकर 10 रुपए तक की राशि दान में दी। हम अनुदान के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाते रहे लेकिन हमने सरकार से एक रुपए की मदद नहीं ली।
काम अभी अधूरा है- बाबा बजरंग दास
उन्होंने बताया कि साल 2000 में जब सूखा आया तो कई मजदूर रोजगार पाने के लिए मेरे साथ इस काम में लग गए। सड़क बनी तो लेकिन यह उतनी लंबी नहीं बन पाई जितनी लंबी मैं चाहता था। बाबा ने कहा, मेरे प्रॉजेक्ट का एक पार्ट अधूरा रह गया और मुझे हैरानी होगी अगर यह पूरा हो जाए तो।