क्रान्तिभूमि मेरठ में भारत भूषण नाम की दो महान विभूति हुई हैं , एक भारत भूषण ने साहित्य में झंडे गाडे व दूसरे भारत भूषण ने हिंदी सिनेमा के शिखर को छुआ।
14 जून को जन्मदिन है फिल्मी दुनिया वाले भारत भूषण जी का। आज की नई पीढी चाहे वे दर्शक हो या बाँलीवुड से जुडे लोग भारत भूषण जी को जानते तक नहीं है। ये सिनेमा की दुनिया ही ऐसी है कि कभी आदमी यहाँ शोहरत व कामयाबी की बुलंदियाँ छूता है तो कभी गुमनामी की गलियो में घुटन भरी जिंदगी भी जीता है। यहाँ चढते सूरज को सलाम होता है , ढलते सूरज की तो कोई खबर भी नहीं लेता।
भारत भूषण को मैं बचपन से नहीं जानता था बल्कि एक बार दूरदर्शन पर ” बैजू बावरा ” मूवी आ रही थी। उन दिनो लक्स फिल्मफेयर उत्सव में रविवार को दोपहर बारह बजे एक फिल्मफेयर से सम्मानित मूवी आती थी । बाँलीवुड के सुनहरे दौर की कालजयी फिल्मो से मेरा यह पहला परिचय था। बैजू बावरा देखते हुए मेरे पिता ने कहा कि यह हीरो मेरठ का है ,भारत भूषण । अपने शहर का मेरठी हीरो सुनकर मैं चहक उठा ये तो थी भारत भूषण से जुडी हुई पहली याद। फिर अचानक कुछ सालो बाद मैंने अखबार में मेरठ कैंट में एक बंगले के बिकने की खबर पढी जिसमें गुजरे जमाने के सिनेस्टार भारत भूषण का जिक्र था क्योंकि वह बंगला उनका था जिसमें कभी वे पले बढे थे | ना देश आजाद हुआ था ना ही देश का बंटवारा,उसी दौरान चालीस के दशक में दिल में गायक बनने का सपना लिये मेरठ का एक नवयुवा सपनो के शहर बाँम्बे पहुँचा । देखने में सुंदर,सुशील तथा मासूमियत व शराफत से भरा । भारत भूषण को पहली बार जिस फिल्म में काम मिला वो थी मशहूर साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा के क्लासिकल उपन्यास पर बनी फिल्म ‘चित्रलेखा ” ।
शुरूआती कई साल फिल्मो में कोई कामयाबी नहीं मिली बस फिल्में जैसे तैसे मिलती रही। यह वह दौर था जब हिंदी सिनेमा में बँटवारे के बाद एक उथल पुथल सी मची थी , लाहौर से बहुत से कलाकार बंटवारे के कारण बाँम्बे का रुख कर रहे थे व साथ ही सिनेमा नये दौर का गवाह बनने वाला था जिसे नेहरूकाल कहा गया । भरत भूषण गायक तो बन ना सके पर हाँ अपनी कई सफल फिल्मो में गायक का किरदार बखूबी निभाया।
विजय भट्ट अकबर के जमाने के महान संगीतकार बैजू बावरा यानी बैजनाथ मिश्रा पर फिल्म बनाना चाहते थे । बैजू बावरा महाकवि तानसेन के समकालीन थे व प्रतिद्वंदी थे । विजय भट्ट इसके लिये दिलीप कुमार व मधुबाला को लेना चाहते थे पर बात बन नहीं रही थी । तब उन्होने नये चेहरो को लेने का फैसला किया ,नया संगीतकार चुना नौशाद। नौशाद साहब ने ही विजय भट्ट को निहायत शरीफ चेहरे वाले एक संघर्षरत अभिनेता का नाम सुझाया वो था भारत भूषण । विजय भट्ट ने नायिका के रूप में अपनी ही एक बाल कलाकार जो अब एक नवयौवना बन चुकी थी को चुना , वह थी मीना कुमारी ।
फिल्म रिलीज हुई 1952 को ,बस फिर क्या था आते ही फिल्म के गीत संगीत ने तहलका मचा दिया व रजत पटल पर छा गई। नौशाद को हिंदी फिल्मो के संगीत का तानसेन बना दिया, रफी साहब को बैजू बावरा, मीना कुमारी सबसे सक्षम व समर्थ अभिनेत्री बनकर उभरी व सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन बनने का सफर तय किया । लता मंगेशकर बनी सुर साम्राज्ञी। और हमारे भारत भूषण साहब हिंदी सिनेमा के एक ऐसे शाहकार अभिनेता बने जो अपने ऐतिहासिक व पौराणिक किरदारो के लिये सिनेजगत में अमर हो गये।
अगर हिंदी सिनेमा के सौ सर्वश्रेष्ठ गीतो की सूची बनेगी तो बैजू बावरा फिल्म का ” तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा , होकर रहेगा ये मिलन हमारा तुम्हारा ” गीत अग्रणी गीतो में जगह पायेगा। इस फिल्म के गीत लोगो के सिर चढकर बोले व फिल्म ने नये आयाम रच दिये। बस इस फिल्म का रिलीज होना था और भारत भूषण बन गये बाँलीवुड के एक ऐसे अदाकार जिनकी अदाकारी ने ऐतिहासिक किरदारो को जीवंत कर दिया । सिने इतिहास में भारत भूषण को ऐतिहासिक किरदारो के लिये आज भी बडी इज्जत के साथ याद किया जाता है ।
मिर्जा गालिब ,बैजू बावरा, भक्त कबीर , चैतन्य महाप्रभु , ‘चित्रलेखा , राम दर्शन ,जन्माष्टमी, आनंद मठ जैसी ऐतिहासिक व पौराणिक फिल्मो ने उन्हें ऐतिहासिक किरदारो का महारथी बना दिया । 1950 से 1960 के तक वे हिंदी सिनेमा की त्रिमूर्ति दिलीप ,राज व देव के समकक्ष एक अलग धारा के अभिनेता बने व अशोक ,प्रदीप ,सहगल जैसे अभिनेताओ से हटकर नयी पहचान गढी। तकरीबन डेढ सौ फिल्मो में अभिनय किया भरत भूषण ने जिनमें पचास के करीब सफल रहीं व एक दर्जन से अधिक सुपरहिट रही।
सिनेमा का प्रसिद्ध फिल्मफेयर अवार्ड तब शुरू ही हुआ था जो पहली बार दिलीप कुमार को मिला और अगले साल ही दूसरा फिल्मफेयर भारत भूषण के हाथो में चैतन्य महाप्रभु के लिये आया। जिस शराफत व सरलता के साथ वे पर्दे पर दिखे ,जिस मासूमियत व अदायगी के साथ वे लोगो के दिलो में उतरे ,उसने उन्हें सदाबहार व शाहकार अभिनेता बना दिया । भारत भूषण को महंगी व लग्जरी कारो का शौक था व बंगलो में रहने के आदी थे। एक शाही जीवन जीने वाला यह महान कलाकार वक्त की ठोकर व बाँलीवुड की बेरुखी के चलते बाद में मुंबई की चाल में रहने पर भी मजबूर हुआ।
1960 में आयी “ बरसात की रात ” जिसके गाने जिंदगी भर न भूलेगी वो बरसात की रात में जब दर्शको ने भीगे आँचल में व उसे निचोडते हुए सौंदर्य के स्मारक,बाँलीवुड की सबसे सुंदर नायिका मधुबाला को देखा तो वाकई आज तक नहीं भूले । भरत भूषण व मधुबाला के अभिनय से सजी इस मूवी ने टिकट खिडकी पर पैसो की बरसात कर दी । मधुबाला की बला की खूबसूरती ने तहलका मचा दिया व लोगो के दिलो दिमाग पर मधुबाला की दीवानगी के बादल सदा छाये रहे ।
इस फिल्म के निर्माता भी भारत भूषण ही थे। भारत भूषण के लिये यह फिल्म आर्थिक मुनाफे की खान बनी व उनके आलीशान व शानो शौकत की जिंदगी के लिये खूब कमाई की। जब कुछ अच्छा होता है तो बुरा भी होता है । इस फिल्म की सफलता ने जहाँ भारत भूषण को खुशी दी पर पत्नी के डिलीवरी के दौरान हुई मौत ने एक बडा दुख भी दिया। पत्नी शारदा दो छोटी बच्चियों को छोडकर असमय ही विदा ले गयी और छोड गयी एक शारिरिक व मानसिक विकलांग बच्ची को । भारत भूषण ने अगले साल ही बरसात की रात की सह कलाकार रत्ना से शादी कर ली।
साठ के दशक में लगातार कई फिल्मो की असफलताओ ने भारत भूषण को आर्थिक किल्लतो में फंसा दिया क्योंकि उनके द्वारा निर्माण की गयी कई फिल्मे लगातार धाराशायी होती गई। बढते कर्जे के चलते उन्हें अपना शानदार बंगला अपने दोस्त राजेन्द्र कुमार को बेचना पडा । यह वो ही बंगला है जो बाद में राजेन्द्र कुमार ने मजबूरी में राजेश खन्ना को बेचा। फिल्मो में काम कम मिल रहा था , जवान बेटी का बोझ , उसकी मानसिक दशा ने भारत भूषण को अंदर तक तोड दिया । उनकी पत्नी रत्ना फिल्मो व सीरियलो में छोटे छोटे रोल करके घर का गुजारा कर रही थी ।
भारत भूषण अब बाँलीवुड में गुमनाम हो चले थे। पत्नी रत्ना कैसे कैसे करके घर का खर्चा चला रही थी ऊपर से भारत भूषण बीमार हो गये। रत्ना ने अपने सुहाग को बचाने के कई जगह हाथ फैलाये पर मायूसी हाथ लगी ,आखिर 27 जनवरी 1992 को भारत भूषण ने अपनी आखिरी साँस ली ।
मौत की खबर सुनकर आस-पास के लोगो ने कफन का जुगाड किया । भारत भूषण ने जहाँ कामयाबी का शिखर चूमा ,शाही व ठाठ बाट की जिंदगी जी वहीं अपनी ढलती उम्र में गरीबी के कडवे घूँट भी भरे। अपनी ज्यादातर फिल्मो में उन्होने जिस दुखी व मायूस संगीतकार व गायक का किरदार अदा किया वह सदा के लिये अमर कर दिया । उनके निभाये ऐतिहासिक व पौराणिक किरदारो को उन्होने पर्दे पर खुद ही जीकर दिखाया। वे ना ही मेथड एक्टर थे ,ना ही रोमांटिक या एक्शन हीरो मगर वे ऐतिहासिक अभिनेता बने व सिनेपटल पर खुद को बेजोड साबित किया ।
मनीष पोसवाल