क्या सैटेलाइट्स भारत पाक बॉर्डर की निगरानी कर सकते हैं
●Earth’s Live Streaming By Satellites●
शाम के गहराते धुंधलके में… और सुबह के फूटते उजाले में… अपनी छत पर खड़े हो कर आसमान को ध्यान से देखने की कोशिश कीजियेगा
चूँकि पृथ्वी गोल है इसलिए शाम को सूरज डूब जाने के बाद भी… कुछ मिनटो तक… हमसे ऊपर मौजूद चीजो के लिए सूरज मौजूद होता है (Vice Versa For Morning..)
इसलिए.. सुबह और शाम के वक़्त… आसमान में सूर्य की किरणों से प्रकाशित, चमकती हुई और पृथ्वी के चक्कर लगाती हुई… कुछ मानव निर्मित मशीनों को देखा जा सकता है
जिन मशीनों को देखने पर… “टूटता हुआ तारा” अथवा “UFO” देखने का भ्रम हो जाता है
वास्तव में ये शूटिंग स्टार्स.. और कुछ नही… बल्कि “Man Made Satellites” हैं !!!
ये सैटेलाइट्स प्रतीक है… पृथ्वी पर मानव बुद्धिमता की फतह के !!!
अक्सर लोगो को भ्रम हो जाता है कि… ये सैटेलाइट्स पृथ्वी के ऊपर से जमीन को स्कैन कर पृथ्वी की 24/7 वीडियो फुटेज उपलब्ध कराते हैं। आज की पोस्ट इसी विषय पर अपने मित्र प्रदीप शुक्ला के आदेश पर लिखी गई है।
सैटेलाइट्स दो प्रकार के होते हैं!
1: जियोस्टशनरी सेटेलाइट – ये पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समानांतर लगभग 35000 km ऊपर अंतरिक्ष में मौजूद होते है… इन सैटेलाइट्स का रोटेशन पीरियड… पृथ्वी के रोटेशन के साथ सिंक्रोनॉइज़ होने के कारण… लगभग 24 घंटे का होता है… इन सैटेलाइट्स में मौजूद टेलिस्कोप इतने शक्तिशाली नही होते.. जो हमें पृथ्वी की जमीन की फोटो दिखा सकें। बेसिकली इन सैटेलाइट्स का प्रयोग मौसम और कम्युनिकेशन के लिए होता है।
2: लो ऑर्बिट सैटेलाइट्स- ये सॅटॅलाइट पृथ्वी से सिर्फ 100-700 km की ऊंचाई पर मौजूद होते है।
इस अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर पृथ्वी की ग्रेविटी शक्तिशाली होने के कारण, पृथ्वी की ओर गिरने से बचने के लिए इन सैटेलाइट्स को तेज स्पीड मेन्टेन करनी पड़ती है।
बहुत तेज गति के कारण ये सैटेलाइट्स पृथ्वी का एक चक्कर लगभग 90 मिनट में लगा लेते है। जिस कारण ये सैटेलाइट्स एक दिन में एक बार नहीं… बल्कि 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त का दर्शन करते हैं।
पिछले कुछ समय में मिलिट्री और कमर्शियल उद्देश्यों से कई सैटेलाइट्स ऐसे छोड़े गए है…
(जैसे Worldview-3 Satellite) जिनके शक्तिशाली कैमरा.. जमीन पर मौजूद 30 cm तक की वस्तु को साफ़ साफ पकड़ सकते हैं
लेकिन…
चूँकि वर्ल्ड व्यू सॅटॅलाइट एक सेकंड में लगभग 8 km की स्पीड से गति कर रहा है… इसलिए कैमरा की लिमिटेशन के कारण… सभी सैटेलाइट्स एक समय में…पृथ्वी के एक सीमित हिस्से को ही स्कैन कर सकते हैं (See Image)
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और चूँकि… पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूम रही है… इसलिए लगभग 97 मिनट बाद जब वर्ल्ड व्यू… पृथ्वी का चक्कर लगा कर अपनी शुरूआती लोकेशन पर वापस आता है… तब तक पृथ्वी के घूम जाने के कारण वर्ल्ड व्यू हमेशा एक नयी लोकेशन पर पहुचता है…
इसलिए वर्ल्ड व्यू को… अपनी शुरुआती लोकेशन पर पहुचने में लगभग एक दिन का समय लग जाता है… जब तक कि पृथ्वी अपना एक चक्कर पूर्ण ना कर ले
(See middle image for satellite’s orbit map)
यही कारण है… कि गूगल अर्थ को खोलने पर… आप जिसे लाइव सॅटॅलाइट फुटेज समझ रहे होते हैं। वो वास्तव में हवाई जहाजो और drones के द्वारा एरियल फोटोग्राफी द्वारा शूट की गई फोटोज होती हैं
जिन्हें गूगल… विभिन्न सैटेलाइट्स और कॉमर्शियल कंपनीज से खरीदता और Reconcile कर के अपने सॉफ्टवेयर में इस प्रकार अपडेट करता है… कि आपको Zoom करने पर “Satellite Footage” का भ्रम होता है…
अब चूँकि सैटेलाइट्स और एरियल फोटोग्राफी द्वारा फोटो शूट करने, फिर फोटो खरीदने और अपडेट करने में समय लगता है
इसलिए…. गूगल अर्थ में मौजूद सभी फोटो… वास्तव में “महीनो अथवा वर्षो” पुरानी होती हैं !!
Moral Of The Story: सभी सैटेलाइट्स पृथ्वी पर मौजूद किसी स्थान विशेष को सिर्फ एक सेकंड के लिए ही स्कैन कर सकते हैं। दोबारा उस जगह को स्कैन करने के लिए सॅटॅलाइट को पूरे 24 घंटे रुकना पडेगा !!!
वर्ल्ड व्यू सॅटॅलाइट एक दिन में… पृथ्वी का लगभग 680000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा कवर कर के स्कैन कर सकता है।
चूँकि पृथ्वी का टोटल एरिया 51 करोड़ किलोमीटर है। इसलिए वर्ल्डव्यू जैसे मात्र 750 सैटेलाइट्स पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर के समूची पृथ्वी की कवरेज की जा सकती है।
पर इस कवरेज में.. किसी भी स्थान को दिन में सिर्फ एक बार देखा जा सकेगा
अगर आप पृथ्वी के हर हिस्से की 24/7 इंस्टेंट कवरेज चाहते हैं तो आपको कम से कम 6 करोड़ सैटेलाइट्स पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने पड़ेंगे !!!
एक टिपिकल सॅटॅलाइट की लॉन्चिंग पर लगभग एक अरब डॉलर का खर्च आ जाता है। इसलिए इतनी विशाल मात्रा में सैटेलाइट्स का प्रक्षेपण दूर की कौड़ी ही प्रतीत होती है। अभी तक पृथ्वी पर जासूसी करने के लिए उपलब्ध सैटेलाइट्स की संख्या बमुश्किल दहाई का अंक छु पाती है!!
हजारो किलोमीटर में फैले हुए भारत पाक जैसे संवेदनशील बॉर्डर क्षेत्र.. जहाँ दुर्गम परिस्थितियों जैसे पहाड़, दलदल, नदियो आदि की मौजूदगी के कारण तार लगाना अथवा मानव पहरेदारी संभव नही है… वहां सैटेलाइट्स द्वारा कंट्रोल्ड “लेजर वाल” अच्छा विकल्प हो सकता है।
लेजर वाल.. प्रकाश की किरणों की बनी एक दीवार होती है। इस दीवार में प्रवाहित प्रकाश कण यानी फोटॉन के प्रवाह को अगर कोई अवरुद्ध करता है… तो सॅटॅलाइट ऑपरेटेड ऑटोमैटिक अलार्म बज कर कण्ट्रोल रूम को सूचित कर देता हैं।
इस समय भारत सरकार द्वारा इंडो पाक बॉर्डर पर लगभग 12 लेजर वाल चालु है और 40 से अधिक लेजर वाल शीघ्र चालु हो जाने की उम्मीद है।
इसके अतिरिक्त… बॉर्डर की लाइव फुटेज निगरानी के लिए अरबो डॉलर के सॅटॅलाइट छोड़ने की बजाय… “Drones” द्वारा हवा में निगरानी और लाइव वीडियो स्ट्रीम अधिक कारगर और सस्ती तकनीक हैं।
Conclusion: 24by7 live footage of Earth is not going to be possible anytime soon…
But if you are too desperate to watch it happening ??
Go..Try Hollywood Movies !!
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And As Always
Thanks For Reading !!!
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विजय सिंह ठकुराय “झकझकिया”