गंगादीन मेहतर : 1857 की क्रांति का गुमनाम नायक
गंगू मेहतर उर्फ गंगादीन पहलवान बिठूर की सेना में नगाड़ा बजाते थे , जब अंग्रेजो से नाना साहब का युद्ध हुआ तो गंगू बाबा ने नगाड़ा छोड़कर तलवार उठा ली।
गंगू पहलवान ( Gangadeen Mehtar ) उर्फ़ गंगू मेहतर का जन्म कानपुर में हुआ था इनके पुरखे कानपुर के एक गांव अकबरपुरा के रहने वाले थे। पर गांव में कुछ उच्च वर्ग के लोगो द्वारा जातिगत अपमान के कारण इनके परिजन चुन्नी गंज इलाके में आकर बस गए।
गंगू बाबा को पहलवानी का शौक था ,और ये नामी पहलवान हो गए । इसलिए इन्हें गंगादीन पहलवान भी कहा जाता है। लंबे चौड़े डील डोल वाले गंगादीन नाना साहब की सेना में भर्ती हुए और सेना में नगाड़ा बजाने का काम करने लगे।
अंग्रेजो से युद्ध छिड़ा तो नगाड़ा छोड़कर राष्ट्र की रक्षा के लिए तलवार उठा ली । 1857 के युद्ध कानपुर में सत्ती चौरा नाम की जगह पर एक बड़ी घटना हुई थी जिसमे इन्होंने 200 अंग्रेज सैनिको को मार डाला । अंग्रेजो ने इल्जाम लगाया था कि इन्होंने उनकी महिलाओं और बच्चों को भी कत्ल किया था। लेकिन ये सब उनके प्रोपोगेंडा का हिस्सा था।
सत्ती चौरा कांड
मेरठ के बाद कानपुर में भी विद्रोह की जवाला भड़कने से अंग्रेज घबरा गए थे और उन्होंने कानपुर छोड़ने का निर्णय लिया । 14 मई 1857 को सैकड़ो अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिवार सत्ती चौरा घाट पर इकट्ठा हुए थे । सहमति बन गयी थी कि अंग्रेज यहाँ से चले जायेंगे । हजारो की संख्या में लोग वहां इकठा हुए थे ।
तात्या टोपे , बाजीराव और अजीजमल वही मौजूद थे जबकि नाना राव पेशवा 2 किलोमीटर दूर थे । अचानक एक अंग्रेज अधिकारी ने गोली चला दी जिसमे कई क्रांतिकारियों की जान चली गयी । जिसके बाद क्रांतिकारी भड़क उठे और 450 अंग्रेजो को वहीं घाट पर ही मार डाला गया । अंग्रेजो ने यहां भी समझौते के बाद विश्वास घात किया था जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा ।
गंगादीन मेहतर की गिरफ्तारी
इस घटना से अंग्रेजी सरकार सहम गयी थी । उन्होंने गंगू बाबा को पकड़ने के लिए जी जान लगा दी । अंग्रेजी सेना उनके पीछे पड़ी थी और गंगू बाबा घोड़े पर चढ़कर युद्ध कर रहे थे। पर किसी तरह अंग्रेज सेना गंगदीन मेहतर को जिंदा पकड़ने में कामयाब हो गयी ।
इस युद्ध मे गंगादीन पहलवान पकड़े गए । उनके पैरों और गले मे बेड़ियां डालकर और घोड़े से बांधकर पूरे शहर में घुमाया गया । अंग्रेज बाकी क्रांतिकारियों में खौफ डालना चाहते थे । उन्होंने गंगू बाबा को कालकोठरी में रखा । अंग्रेजो ने गंगू बाबा पर बहुत जुल्म किये और प्रताड़ित किया ।
8 सितंबर 1859 को गंगू बाबा को कानपुर में बीच चौराहे पर फांसी पर लटका दिया गया।
गंगू बाबा का कहना था –
” भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी कि गंध है, एक दिन यह मुल्क आजाद होगा.”
कानपुर के चुन्नीगंज में जहां ये पले बढे और शहादत को प्राप्त हुए ,वहां इनकी प्रतिमा लगाई गई है और इनकी स्मृति में हर वर्ष मेला लगता है. लेकिन अफसोस कि जातिगत दुर्भावनाओं के कारण दलित और पिछड़े क्रांतिकारियों को सरकारों ने वो सम्मान नही दिया जिसके वो हकदार थे।
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