अरब आक्रान्ताओ का हमला
Arab Invasion in India in hindi
इस्लाम के वजूद में आने के कुछ सालों बाद से ही अरब आक्रान्ताओ में धर्म विस्तार की होड़ मची हुई थी । इसके लिए वे रक्तरंजित इतिहास लिखने को तैयार थे। अरबो ने दुनियाभर में जितने भी हमले किये वे बर्बरता की नई कहानियां लिख रहे थे । लूटपाट और साम्राज्य विस्तार के साथ साथ जबरन धर्म परिवर्तन के लक्ष्य के साथ उनका निशाना भारत भूमि भी बनी।
वे जहां भी जाते 2 ही विकल्प रखते – या तो उनका धर्म स्वीकार करके उनकी आधीनता स्वीकार करे या फिर मौत के घाट उतरने को तैयार रहे।
विश्व की अनेकों संस्कृति, धरोहरें , पूजा स्थल, धर्म स्थल अरबो की इस खूनी सनक का शिकार बनी । अरबो के खूनी पंजे जब भारत भूमि की तरफ बढ़े तो सिंध के रूप में उन्हें पहली विजय मिली।जिससे उनका मनोबल बढ़ा और वे सम्पूर्ण भारत पर विजय पाने को आतुर हो उठे । जिसके लिए उन्होंने क्रूर सेनापति अब्दुल-रहमान-जुनैद-अलगारी और अमरु को सिंध का सुबेदार बनाकर भेजा।
ये छोटी रियासतों को जीतकर जब नागभट्ट प्रथम की धरती की तरफ बढ़े तो नागभट्ट प्रथम ने जबरदस्त प्रतिकार किया । नागभट्ट की सेना ने उनको गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया। और अरबो को जान बचाकर भागना पड़ा । लेकिन नागभट्ट जानते थे कि ये आक्रांता फिर लौटेंगे ।
जानिए नागभट्ट प्रथम के बारे में Information about Nagabhata I

नागभट्ट प्रथम कौन था – Who Was Nagabhata I in Hindi
नागभट्ट प्रथम गुर्जर-प्रतिहार वंश ( Gurjar Pratihara Dynasty ) के प्रथम राजा और गुर्जर-प्रतिहार वंश के संस्थापक थे । अरबो के आक्रमणों का मुकाबला करने और उन्हें बुरी तरह काट काट कर खदेड़ने के कारण इन्हें आदिवराह की उपाधि दी गयी । जिस तरह धरती को मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार (Varah avatar) लेकर धरती की रक्षा की , उसी तरह इन्होंने भी भारत भूमि की अरब आक्रान्ताओ और मलेच्छो से रक्षा की थी । नागभट्ट प्रथम का शासन काल 730 ई. से 756 ई. तक था इन्होंने अरबो को पीछे हटाकर गुजरात, राजस्थान, मालवा काठियावाड़ सहित बहुत बड़े भूभाग पर अधिकार कर लिया था। भारत के एक बड़े भूभाग पर इनका शासन था , नागभट्ट प्रथम की राजधानी कन्नौज थी । मलेच्छो का अंत करने के कारण नागभट्ट प्रथम ने नारायण की उपाधि धारण की ।
गुर्जर प्रतिहार शासकों के सिक्कों पर आदिवराह की तस्वीर बनी हुई है । ये सिक्के आज भी कई जगह मिलते है। नागभट्ट प्रथम ने अरब विरोधी संघ बनाया था जिसमे भारत के कई हिस्सों पर शासन कर रहे राजा शामिल थे और इनके कई सामंत थे ।

अरब विरोधी संघ और राजस्थान के युद्ध
नागभट्ट प्रथम ने अरब आक्रांताओं को खदेड़ने के लिए अरब विरोधी संघ तैयार किया । इस संघ ने जो अरबो से लगातार संघर्ष किये उन्हें इतिहास में राजस्थान के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है ।अरबो ने गुजरात,मालवा और राजस्थान के प्रदेशों पर हमला बोल दिया। उस समय वहा नागभट के अधीन बहुत सी छोटी रियासतें राज्य करती थी। चालूक्या वंश, भीनमाल के चाप/चपराणा, वल्लभी के मैत्रक ( बुटार या बटार) , भडौच के गुर्जर, चित्तोर शासक बप्पा रावल , सहित कई सामंत और छोटे राजा थे।
जब नागभट्ट प्रथम की सेना ने अरबो को जमीन में गाड़ना शुरू किया
मारवाड़ के आसपास सन 736 ई. में अरब आक्रान्ताओ ने हमला किया तो नागभट्ट प्रथम और उनके सामंत जयभट्ट चपराना, सामंत बप्पा रावल ने इसका नेतृत्व किया । इस भीषण संग्राम में दिन ढलने से पहले ही अरबो की आधी सेना काट कर फेंक दी गयी ।

नागभट्ट और उनके सामंतो ने जैसे साक्षात भोलेनाथ तांडव करते हो , की तरह अरबी मलेच्छो को काटना शुरू कर दिया । वीर हिन्दू योद्धाओं की सेना जिधर जाती अरबो में हाहाकार मच जाता । एक से बढ़कर एक बलशाली उन आक्रान्ताओ को जमीन में गाड़ना शुरू कर दिया । धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए हिन्दू योद्धाओं ने मौत का वो खेल खेला की अरबो को साक्षात मौत सामने दिखने लगी । वे अपने धर्म को जबरन फैलाने आये थे लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंदू योद्धा उनकी ये दुर्गति करेंगे उन्होंने सोचा भी नही था।
अरबो का बर्बर सेनापति जुनैद हमले में घायल होकर भाग निकला , गंभीर घावों से उसी रात उसकी मौत हो गयी । अरब में उनके बड़े सेनापति की इस दुर्दशा पर हाहाकार मच गया ।
सिंध पर फिर से विजय पताका
इस युद्ध मे अरबो को खदेड़ने के बाद गुर्जर प्रतिहार सम्राट नागभट्ट प्रथम के आदेश पर उनके सामंतों ने सिंध प्रदेश जिसपर अरबों ने कब्जा कर रखा था ,पर हमला किया और सिंध पर विजय पताका लहराई ।
सिंध पर विजय पताका लहराने के बाद नागभट्ट ने सिंध नदी को पार करके ईरान तक को अपने शासन में शामिल कर लिया । ईरान के सुल्तान हेबतखान की बेटी से बप्पा रावल ने विवाह कर लिया और सन्यास ले लिया ।
बौखलाए अरब मलेच्छो का दूसरा हमला
इस युद्ध मे बुरी तरह हारने के बाद अरब आक्रांता बौखला गए थे। पूरे विश्व मे हाहाकार मचाने वाले अरबो के लिए ये एक शर्मनाक स्थिति थी । जिसके लिए वे दोबारा प्रतिशोध की भावना से जुट गए ।
इस बार अरबो ने अपनी शक्ति बढ़ाकर कई देशों के सुल्तानों और उनके सेनानायकों को इकठ्ठा किया । इनमे ईरान , ईराक और अफ्रीका के कई देश शामिल थे । इस बार अरबी सेना का नेतृत्व सेनापति तामीम कर रहा था । जोकि बेहद क्रूर और कट्टरपंथी माना जाता था ।
नागभट्ट को इसकी जानकारी थी कि हारे हुए अरब मलेच्छ अभी शांत नही बैठेंगे और वे प्रतिकार जरूर करेंगे । इसलिए वे दक्षिण में हो रहे युद्धों को छोड़कर वापिस उज्जैन आये । अपने पुराने साथियो को इकठ्ठा किया और इस महासंग्राम की तैयारी में जुट गए।
नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में अरबो से युद्ध
नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में एक बार फिर संघ तैयार हुआ । संघ में भडौच के चाप वंश /चपराणा वंश के हिंदू रक्षक शूरवीर जयभट्ट चपराणा (720 ई. -750 ई.) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
चपोत्कट या चपराणा /चावडा वंश गुर्जरो का वह हिस्सा था जो युद्धभूमि में चपो यानी तीरकमानो में सर्वश्रेष्ठ था । यह चपोत्कट सेना के सबसे श्रेष्ठ व महत्वपूर्ण धनुर्धर यौद्धा थे जिनके बल पर दुश्मन की विशाल सेनाओ को भी पराजित किया जा सकता था क्योंकि इनके तीर दूर तक अचूक थे। ये घुटनों पर खडे होकर ,पीछे मुडकर ,एक हाथ से या कहें कि हर प्रकार से तीर चलाने में सक्षम थे। चपोत्कट/चपराणा राजवंश ने सबसे पहले भीनमाल में राज्य स्थापित किया जिसमें महाराजा व्याघ्रमुख हुए जिनसे कन्नौज का वर्धनवंश भी भय खाता था।

नागभट्ट के सामंत वीर बप्पा रावल सन्यास ले चुके थे और उनके बेटे खुमान रावल चित्तोड पर राज्य कर रहे थे। हिन्दू योद्धा नागभट्ट ने अपने सामंत वीर खुमान रावल को उनके पिता की वीरता याद दिलाई और बताया कि कैसे सबने मिलकर राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए अरबो को धूल चटाई थी । नागभट्ट ने फिर से वैसे ही संघ बनाने और संयुक्त युद्ध का आह्वान किया । सारे साथी फिर से इस महासंग्राम के लिए उठ खड़े हुए । महागुर्जर सेना का गठन हुआ । परमारों और सोलंकियों ने भी इस महासंघ में हिस्सा लिया ।
नागभट्ट के नेतृत्व में हर हर महादेव और जय गुर्जरेश के नारे के साथ वीर हिन्दू योद्धा अरबो को काटने के लिए उतावले थे। यहां नागभट्ट ने चतुराई से वो निर्णय लिया जिसने इस युद्ध मे उनकी जीत निश्चित कर दी ।
अरबो को युद्ध के लिए सिंध नदी पार करनी थी । इससे पहले की अरब आक्रांता सिंध नदी पार करते नागभट्ट ने उनके आक्रमण का इंतेजार करने के बजाय उनपर हमला करने और उन्हें वहीं जाकर काटने का निर्णय लिया
वीर योद्धा नागभट्ट ने अरबो के आक्रमण का इंतेजार न करके युद्ध से 7 दिन पहले ही अपनी बड़ी सेना के साथ अरबो पर हमला बोल दिया। अरब अचानक हुए इस हमले से बौखला गये । नागभट्ट की गुर्जर सेना के साथ अरबो का महासंग्राम हुआ । और अरबो को बुरी तरह काटा जाने लगा । कुछ ही घंटों में अरबो की बड़ी सेना गाजर मूली की तरह काट कर फेंक दी गयी ।
नागभट्ट और उनके वीर योद्धाओं के सामने सेनापति तामीम कब तक ठहरता । सूर्यास्त से पहले ही सेनापति तामीम का सर हिन्दू योद्धाओं की तलवारों पर झूल रहा था और धड़ जमीन पर पड़ा था ।
सेनापति की मौत के साथ ही बची खुची अरब सेना में भगदड़ मच गई । हिन्दू वीर योद्धाओं ने उनको दौड़ा दौड़ा कर मारा । युद्व भूमि मलेच्छो के रक्त से नहा गयी थी । अरब जगत के खलीफा हिन्दू योद्धाओ का संग्राम देखकर खौफ खा गए ।
अरबो ने अपनी जान बचाने के लिये अल महफूज नाम की जगह बसाई । जिसके बारे में कई अरब लेखकों ने भी लिखा है कि गुर्जरो ने उनके लिए थोड़ी भी जगह नही छोड़ी , अपनी जान की रक्षा के लिए यही सिर्फ एक ऐसी जगह थी जहां अरब छिप सकते थे और नागभट्ट से अपनी जान की रक्षा कर सकते थे ।अरबो के “फुतुहूल्बल्दान” नामक ग्रन्थ में अरबों की इस हार का वर्णन है।
गुर्जर-प्रतिहार शासकों ने 300 सालों तक अरबों को भारत मे घुसने नही दिया
गुर्जर प्रतिहार शासकों और अरबो के बीच युद्धों की श्रृंखला लगातार चलती रही । लगभग 300 वर्षो तक गुर्जर प्रतिहार शासकों ने अरब आक्रान्ताओ के हमलों से भारत भूमि की रक्षा की । युद्ध की इन श्रृंखलाओं को ” राजस्थान के युद्ध ” के नाम से भी जाना जाता है। सम्राट मिहिरभोज भी इसी गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों की पीढ़ी में से थे उन्होंने भी अरबो का सफाया किया ।

अरब आक्रान्ताओ का एक ही मकसद था , ज्यादा से ज्यादा लूटपाट करना और जबरन धर्म परिवर्तन । ये आक्रांता अपने इन उद्देश्यों के लिये लगातार भारत पर हमला करते रहे । गुर्जर प्रतिहार शासकों ने 300 सालो तक अरबो के हमले झेले और उन्हें भारत मे घुसने नही दिया । अरब आक्रान्ताओ के अंदर इतना खौफ बैठा दिया कि वे वराह के नाम से भी चिढ़ने लगे । गुर्जर -प्रतिहार वंश के पतन के बाद ही मुस्लिम शासक भारत मे घुसने में कामयाब हो पाए ।
गुर्जर प्रतिहार राजवंश ग्वालियर शिलालेख में भी मिलता है जिक्र
गुर्जर प्रतिहार वंश की स्नाथापना नागभट्ट प्रथम ने की थी , नागभट्ट प्रथम ( Nagabhata I ) के आगे की पीढ़ी यानि गुर्जर-प्रतिहार वंश के ही शासक सम्राट मिहिरभोज के ग्वालियर शिलालेखों पर भी नागभट्ट प्रथम के बारे में जानकारी मिलती है। गुर्जर प्रतिहार शासक सम्राट मिहिर भोज इस वंश के सबसे प्रतापी सम्राट हुए थे जिन से अरबी और तुर्क कांपते थे | उनके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए लेख पर क्लिक करके पढ़े
ये थे असली बाहुबली हिन्दू सम्राट मिहिर भोज, जिसके नाम से थर थर कापते थे अरबी और तुर्क !
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