साइकिल का पंचर बनाते हुए की पढ़ाई, आज बन चुका है आईएएस अफसर ( IAS Varun Baranwal Success Story )
आपने हृतिक रोशन की फ़िल्म ‘सुपर 30’ का वो संवाद सुना ही होगा, “बच्चों को प्रतिभा दिए हैं, लेकिन साधन नही। चीटिंग नही तो क्या आशीर्वाद है।” भारत जैसे देश में सैकड़ों गरीब बच्चों के पास प्रतिभा तो है लेकिन साधन नही। अपनी उसी प्रतिभा के दम पर कुछ बच्चे विश्व के सबसे बड़े परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं। वे बस अपने जुनून में होते हैं कि यूपीएससी क्लियर करना है।
आज हम आपको एक ऐसे ही जुनूनी शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो गरीब परिवार से आते हैं। उन्होंने सायकल की पंचर बनाकर पढ़ाई की और आईएएस बनकर पूरे परिवार का नाम रोशन किया।
बचपन में हट गया सर से पिता का हाथ
महाराष्ट्र राज्य से आने वाले वरुण बरनवाल ( IAS Varun Baranwal ) के पिता ठाणे के बोइसार क्षेत्र में एक छोटी सी पंचर दुकान चलाते थे। जहां वे साईकल के अन्य खराबी सुधारने के साथ पंचर भी बनाते थे। वरुण बचपन से पढ़ाई में होशियार थे। वे अपनी कक्षा में हमेशा ऊँचे पायदान पर रहते थे। एक दिन वरुण के पिता की तबियत बिगड़ी और वे स्वर्ग सिधार गए। छोटी सी उम्र में वरुण के कंधों पर घर की ज़मीदारी आ गई। पिता की मृत्यु के तीन दिवस बाद ही उसके बोर्ड के एग्जाम शुरू होने वाले थे। उसने खुद को समझाया और बोर्ड पेपर की अच्छी तैयारी की और टॉपर भी रहे।
इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस देने के लिए बेचनी पड़ी पैतृक संपत्ति
पिता की मृत्यु के बाद वरुण बरनवाल पंचर की दुकान भी संभालते और पढ़ाई भी मन लगाकर करते। उनके पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर और अध्यापकों ने उसकी पढ़ाई और ट्यूशंस के लिए सहायता किया। वे जान चुके थे कि वरुण में वो ललक है, वह सपने को पूरा करके दिखायेगा। उसने मन लगाकर पढ़ाई की। यहां तक कि वरुण को इंजीनियरिंग कॉलेज की महंगी फीस देने के लिए पैतृक संपत्ति के कुछ हिस्सों को बेचना पड़ा। वरुण ने कॉलेज के फर्स्ट ईयर में टॉप किया और उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई।
पुस्तक न खरीद पाने पर एनजीओ से माँगी मदद
इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद वरुण को एमएनसी (MNC) मिल गयी। कुछ दिनों तक वे वहां काम करते रहे लेकिन उन्हें लगा कि वे इस नौकरी के लिए नही बने हैं। वरुण ने खुद को यूपीएससी की तैयारी के लिए तैयार किया। डगर लंबी थी लेकिन वरुण ने जो ठान लिया था, वो उन्होंने कर के दिखाया। जब सिविल परीक्षा की पढ़ाई के लिए पुस्तक खरीदने के पैसे नही होते थे तो उन्होंने एक एनजीओ (NGO) से सहायता मांगी लेकिन अपने सपने के साथ समझौता नही किया।
आज वरुण ने सबको दिखाया कि सपने पूरे करने के लिए बहानों से दूरी बनाकर संघर्ष से घना रिश्ता बनाना पड़ता है। मेहनत का फल हमेशा मीठा ही होता है। भले आपके पास साधन हो या न हो।लेकिन आपकी ज़िद आपको हमेशा विजयी बनाती है।