कहते हैं कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इस कहावत का प्रबल उदाहरण तस्वीर में दिख रहा यह नौजवान है। इसका नाम रिवाज़ छत्री है और यह गंगटोक, सिक्किम का रहने वाला है। इन्होंने अपनी मेहनत के दमपर वो कारनामा करके दिखाया है जिसको कर दिखाने के लिए लोगों को उनकी पूरी जिंदगी खपानी पड़ती है।
बता दें, सिक्किम का यह नौजवान आशावादी होने के साथ-साथ उद्यमी विचारधारा को फॉलो करने में विश्वास करता है। अपने इन्हीं विचारों के दमपर आज रिवाज़ करोड़ों की कंपनी के मालिक बन बैठे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रिवाज शुरुआत से ही कुछ अलग करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में एक स्टार्टअप की शुरुआत की थी जो देखते ही देखते बढ़ता चला गया और आज वे करोंड़ों के मालिक बन गए।
ट्रैवलिंग का एकमात्र साधन थी बस
साल 1994 में सिक्किम के गंगटोक में जन्म लेने वाले रिवाज़ जब ग्रेजुएशन के लिए अरुणाचल प्रदेश स्थित उत्तर पूर्वी क्षेत्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पहाड़ी इलाकों में लोगों को सफर के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इन इलाकों में एक जगह से दूसरी जगह जाने का एकमात्र साधन बस ही थी। इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या ये थी कि इन इलाकों में बसों की संख्या भी अधिक नहीं थी। ऐसे में इमंरजेंसी के वक्त लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।
लोगों की इसी समस्या के मद्देनज़र रिवाज़ ने एक ऐसी कंपनी की शुरुआत करने का प्लान किया जो प्राइवेट टैक्सियों के माध्यम से लोगों को उनके गंतव्य स्थान तक आसानी से पहुंचा दे।
2013 में की थी शुरुआत
अपने इस प्लान को धरातल पर लाने के लिए रिवाज़ ने 300 रुपये से शुरुआत की थी। अपने कॉलेज के सेकेंड ईयर के दौरान उन्होंने एक डोमेन लेकर एक वेबसाइट का निर्माण किया था। बाद में उन्होंने एनई टैक्सी के नाम से एक ऐप भी लॉन्च किया जिसकी मदद से स्थानीय निवासी टैक्सी बुक कर सकते थे।
रिपोर्ट्स के अनुसार, रिवाज़ ने अपने इस कारोबार की शुरुआत साल 2013 में की थी। धीरे-धीरे उनका बिजनेस बढ़ने लगा, लोगों को सुविधा होने लगी। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर 90 लाख रुपये प्रति वर्ष है।
कठिनाइयों का सामना किया
रिवाज़ बताते हैं कि यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। उन्हें कई बार कस्टमर्स से शिकायत भी सुनने को मिली। ट्रैवल एजेंट्स उन्हें गुमराह करने की कोशिश भी करते थे। लेकिन इन सभी दिक्कतों को झेलते हुए रिवाज़ अपने कार्य में डटे रहे। उन्होंने कठिनाइयों से हार नहीं मानी जिसका नतीजा आज ये रहा कि वे तमाम उन युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं जो परिस्थितियों के आगे हार मान लेते हैं।