हमारे देश में हमेशा से योद्धाओं का बोलबाला रहा है। भारत की इस पवित्र मिट्टी ने ऐसे-ऐसे धुरंधरों को जन्म दिया है जिन्होंने दुश्मनों की ईंट से ईंट बजाई है।
ऐसे ही एक महान योद्धा थे महाराणा प्रताप। मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रा सेनानी माना जाता है। उनकी वीरता और पराक्रम के किस्से आज भी लोगों को मुंहजुबानी रटे हुए हैं।
कहा जाता है कि जब अकबर ने दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा जमा लिया था और हिंदुस्तान के ज्यादातर हिस्से पर अपनी हुकूमत कायम कर ली थी, उस वक्त राजस्थान में मुगलों के खिलाफ विद्रोह का विगुल फूंकने वाले अकेले राजा महाराणा प्रताप ही थे। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक मुगलिया सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़ा और मेवाड़ की रक्षा की।
1540 ई. में हुआ था जन्म
बता दें, महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ के राजा उदय सिंह द्वितीय के घर हुआ था। उनकी मां का नाम जयवंता बाई था। रानी जयवंता ने प्रताप के अलावा तीन अन्य बेटों को भी जन्म दिया था। उन दिनों मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ हुआ करती थी।
इतिहासकारों के मुताबिक, प्रताप ने बचपन में ही युद्धनीति की शिक्षा लेना प्रारंभ कर दिया था। उन्हें तलवारबाज़ी और पहलवानी का शौक छोटी उम्र में ही हो गया था। वे अपने महल में रोजाना अभ्यास किया करते थे। यह वो दौर था जब मुगलों का आतंक हिंदुस्तान पर बढ़ रहा था। इसकी चपेट में मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ भी आ गई थी।
अकबर ने किया था चित्तौड़ पर आक्रमण
साल 1567 में अकबर की सेना ने चित्तौड़ को चारों तरफ से घेर लिया था। इस दौरान राजा उदय सिंह अपने परिवार के साथ भागने में कामयाब हो गए थे। वे गोगुन्दा में जाकर बस गए और वहीं से अपना राज्य संभालने लगे।
कहा जाता है राजा उदय सिंह के इस फैसले का उनके सबसे बड़े बेटे महाराणा प्रताप ने विरोध किया था। वे मुगलों से युद्ध करना चाहते थे, लेकिन उस वक्त उनकी बात किसी ने नहीं मानी थी।
पिता की मौत के बाद मेवाड़ की गद्दी पर बैठे महाराणा प्रताप
खैर, 1572 में उदय सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद मेवाड़ की गद्दी पर महाराणा प्रताप को बैठाया गया था। इसके बाद अकबर ने संधि के लिए कई राजनयिकों को मेवाड़ भेजा लेकिन हर बार उसके हाथ निराशा ही लगी। अपने इरादों के पक्के महाराणा प्रताप ने न ही कभी मुगलों के आगे सिर झुकाया और न ही उनसे कभी हाथ मिलाया। इसका नतीजा ये रहा कि मुगलों और राजपूतों के बीच कई बार युद्ध हुए जिनमें हर बार अकबर को मुंह की खानी पड़ी।
हल्दीघाटी का युद्ध
इन्हीं में से एक युद्ध हल्दीघाटी का भी था। इतिहास के पन्नों में दर्ज यह संग्राम इस बात का सुबूत था कि हिंदुस्तान योद्धाओं का था, है और रहेगा। 18 जून 1576 को लड़ी गई इस लड़ाई में मुगलों ने भले ही मेवाड़ के अधिकांश भाग पर कब्ज़ा कर लिया था लेकिन एक बात का उन्हें एहसास हो गया था कि राजपूत वंशजों से पंगा लेना चने चबाना जितना आसान काम नहीं था।
कहा जाता है इस युद्ध में प्रताप बुरी तरह से घायल हो गए थे। उनके शरीर पर गंभीर चोंटे आईं थीं जिसकी वजह से उनकी सेना उन्हें युद्धभूमि से एक सुरक्षित स्थान पर ले आई थी।
कई महीनों तक घायल अवस्था में पड़े रहने के बाद जब प्रताप ठीक हुए तो उन्होंने एक बार फिर मुगलों के खिलाफ यलगार की। छोटी-छोटी लड़ाईयों के जरिये उन्होंने मुगलों के हाथ से साल 1582 तक अपना राज्य वापिस ले लिया था।
ये तो था महाराणा प्रताप की वीरता का प्रमाण। आइये अब जानते हैं उनके निजी जीवन से जुड़े कुछ खास रहस्य।
अजबदे को पसंद करते थे प्रताप
मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप ने बहुत छोटी उम्र में सिसोदिया वंश में जन्मीं अजबदे पंवार से शादी रचाई थी। उस वक्त प्रताप 17 वर्ष के थे जबकि अजबदे महज़ 15 साल की थीं। दोनों को एक-दूसरे को बचपन से जानते थे। यही वजह थी प्रताप के पिता राजा उदय सिंह द्वितीय ने अजबदे के पिता राव ग्रामक सिंह के समक्ष दोनों की शादी का प्रस्ताव रख दिया था।
कहा जाता है कि प्रताप अजबदे को मन ही मन पंसद करते थे। यही वजह थी कि शादी के बाद उनकी सभी पत्नियों में से अजबदे को विशेष दर्जा प्राप्त था।
इतिहासकारों के मुताबिक, महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादियां की थीं जिनसे उन्हें पांच बेटियां और 17 बेटे हुए थे। वहीं, अजबदे ने अमर सिंह को जन्म दिया था जो पिता की मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी बना।
56 वर्ष की आयु में हुआ था निधन
गौरतलब है, राजपूतों के मान और सम्मान की रक्षा करते-करते प्रताप ने अपना पूरा जीवन युद्धभूमि में व्यतीत कर दिया। उन्होंने संघर्ष को अपना साथी बनाया और मुगलों के विरुद्ध अपनी लड़ाई को जारी रखा। इसका नतीजा ये रहा कि मुगलों के सामने कभी न झुकने वाले महाराणा प्रताप का 29 जनवरी, 1597 को शारीरिक दिक्कतों की वजह से निधन हो गया था।
56 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहने वाले इस राजा की शौर्यगाथा आज भी घर-घर में सुनाई जाती है।