भारतीय संस्कृति मे विवाह एक संस्कार है जो कि प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है कि वह अपना एक जीवन साथी चुने, जिसके साथ सम्पूर्ण जीवन खुशी से व्यतीत करें लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नही होता या हर कोई इतना खुशनसीब नही होता कि जिसके साथ विवाह करे उसी के साथ खुशी -खुशी सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करे ।
भारत मे अलग-अलग धर्मों के लोग निवास करते हैं ।भारत का एक संविधान है लेकिन फिर भी वैवाहिक मामलों मे हिन्दुओं के लिए हिन्दू विधि औऱ मुस्लिमों के लिए मुस्लिम विधि लागू होती है ।हिन्दू विधि के स्रोत: श्रति ,स्मृति,भाष्य (टीकायें ) न्यायिक निर्णय ,विधायन ,न्याय ,साम्य व सदविवेक तथा प्रथाएं हैं ।
- संविधान लागू होने के बाद हिन्दुओं के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 लागू किया गया ।हिन्दू विधि के अनुसार विवाह एक संस्कार है ।अधिनियम की धारा 5(3) के अनुसार शादी के लिए वर की आयु 21 वर्ष और वधु की आयु 18 वर्ष होना चाहिए।धारा 7(2) के अनुसार जब वर-वधु संयुक्त रूप से अग्नि के समक्ष सप्तपदी अर्थात सात पद पूरा कर लेता है तो विवाह पूरा और बाध्यकारी हो जाता है ।हिन्दू विधि के अनुसार विवाह प्रतिषिद्ध नातेदारी और सपिण्ड पक्षकारों मे वर्जित है।
- अधिनियम की धारा- 8 के अनुसार हिन्दू विवाह रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है । धारा -13 के अनुसार कोई हिन्दू इस आधार पर तलाक ले सकता है कि पति या पत्नी मे से किसी ने भी अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छया मैथून किया है ,विवाह के पश्चात अर्जीदार के साथ क्रूरता का बर्ताव किया है ,कम से कम दो वर्ष तक अभित्याग किया है,दूसरे धर्म को ग्रहण कर लिया है ,असाध्य रूप से विकृतचित है ।हिन्दू विधि के अनुसार पति-पत्नी पारस्परिक सहमति से भी विवाह -विच्छेद इस आधार पर कर सकते हैं कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से अलग -अलग रह रहे हैं औऱ वे एक साथ नहीं रह सकते हैं ।हिन्दू विधि में शादी की तारीख से एक वर्ष होने तक तलाक की कोई याचिका न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं की जाती ।
- हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा -18 के अनुसार यदि कोई पुरुष 21 वर्ष और स्त्री 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले विवाह करते हैं तो 2 वर्ष के कठोर कारावास व एक लाख रूपये के जुर्माने से दण्डित किया जायेगा। हिन्दू विधि मे दिव् विवाह दंडनीय है । दंड प्रकिया संहिता की धारा 125 के अनुसार हिन्दू महिला को भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है।
- मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह एक संविदा (contract ) है । मुस्लिम विधि के स्रोत कुरान ,सुन्ना या अहदिस ,इज्मा ,क्यास ,प्रथाएं ,न्यायिक निर्णय और विधायन हैं ।मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह की आयु 15 वर्ष है ,सुन्नी पुरूष का किसी गैर मुस्लिम ,यहूदी तथा ईसाई महिला से विवाह वैध है जबकि शिया पुरूष को किसी गैर मुस्लिम लडकी से विवाह करने करने का अधिकार नही है औऱ शिया पुरूष किसी स्त्री से ‘मुता ‘ विवाह नहीं कर सकता ।
- मुस्लिम विधि के अनुसार एक पुरूष चार स्त्रियों से निकाह कर सकता है । मुस्लिम विधि मे तलाक पत्नी की अनुपस्थिति मे दिया जा सकता है । तलाक की वैधता के लिए पत्नी को सूचना देना भी आवश्यक नहीं है । तलाक लिखित या मौखिक भी दिया जा सकता है ।तलाक देने के मन्तव्य को पति संकेतों द्वारा व्यक्त कर सकता है।
- तलाक के दो प्रकार होते है -(1)तलाक-उल -सुन्नत( 2)तलाक-उल-विद्द ।तलाक-उल -सुन्नत दो प्रकार का होता है -1) तलाक अहसन 2) तलाक हसन । तलाक का सबसे अच्छा तरीका तलाक अहसन है इसमे केवल एक बार तलाक उच्चारित करना पडता है ।तलाक हसन मे तलाक का तीन बार उच्चारित करना पडता है । तीन ‘तुहर ‘मे तीन उच्चारण करना पडता है।
- मोहम्मद अहमद खां बनाम शाहबानो बेगम मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी को दंड प्रकिया संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत भरण पोषण की मांग इद्दत के बाद भी पति से कर सकती है । इस निर्णय का मुस्लिम कट्टरपंथीयों द्वारा विरोध किए जाने पर भारतीय संसद ने मुस्लिम स्त्री (विवाह विच्छेद पर अधिकार संरक्षण ) अधिनियम, 1986 पारित किया जिसमें प्रावधान किया गया कि तलाकशुदा मुस्लिम स्त्री इद्दत की अवधि मे अपने पति से एवं इद्दत के बाद अपने नजदीकी रिश्तेदारों ,संतानों एवं माता-पिता से भरण पोषण की मांग कर सकती है ।यदि कथित व्यक्ति भरण पोषण करने मे असमर्थ है तो वह राज्य वक्फ बोर्ड से भरण पोषण की मांग कर सकती है ।
-अजयपाल नागर