Thursday, March 20, 2025

मुहम्मद रफ़ी की वो दास्ता, जब रफी का गीत सुन रो पड़े थें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू

मुहम्मद रफ़ी उन गायकों में से थें जिन्हें लोगों का बेपनाह प्यार मिला इनके गाए हुए गीतों ने मानों इतिहास रच दिया.  मुहम्मद रफ़ी को हिंदी सिनेमा का तानसेन कहा जाता है. रफी साहब सही मायने में गायक थें उनकी आवाज में वो जादू था जो लोगों को मदमस्त कर देता था. चाहे जिस तरह के गाने हो रोमांटिक सॉन्ग, सैड सॉन्ग , देश भक्ति , भजन चाहे जिस तरह के गाने हो रफी सारे गानों को बखूबी गाते थें. रफ़ी ने 14 भारतीय भाषाओं के साथ अंग्रेजी में भी दो गाने गाये थें.

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मुहम्मद रफ़ी को गायकी में थी महारत 

मुहम्मद रफी हिंदी सिनेमा के दिग्गज गायक थें, इन्हें कौन नहीं जानता, मुहम्मद रफ़ी को सबसे पहले जिसने ब्रेक दिया था वो थें संगीतकार नौशाद  70 के दशक में नौशाद ने एक रेडिओ इंटरव्यू में कहा था. ‘मैंने बड़े से बड़े दिग्गज गायक को सुरो से भटकते हुए देखा है, एक इकलौते मुहम्मद रफ़ी हैं जिन्हें सुरों से भटकते कभी नहीं देखा’.

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गीत सुन रो पड़े थें जवाहर लाल नेहरु 

जीस वक़्त भारत विभाजन के सदमे से उभर ही रहा था उस समय महात्मा गाँधी की गोली मार कर हत्या कर दी गई. इस अवसर पर मुहम्मद रफ़ी के गाए गीत ‘ सुनों सुनों ये दुनिया वालों बापू के अमर कहानी को,’ . इस गीत को सुनने के लिए उस वक़्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रफी को खास तौर पर दिल्ली में अपने निवास स्थान पर बुलाया था. इस गीत को सुनकर नेहरू के आँखों में आंसू आ गया था. इस गीत को बहुत सराहना मिली. लोगों ने इस गाने को बहुत प्यार दिया.  इसके बाद से रफ़ी की जिंदगी पहले जैसी नहीं रही. आजादी की पहली वर्षगांठ  पर नेहरू ने रफी को एक चांदी का मैडल भेंट किया था.

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गीतकार नौशाद ने दी तानसेन की संज्ञा

भले ही रफ़ी को गुजरे 42 साल हो गए हो , लेकिन उनके गाने आज भी जिंदा हैं. रफ़ी को इस दुनिया से गए चार दशक हो गए लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उनके जैसा गायक नहीं आया. आज भी अपने चाहने वालों को दिलों पर राज करते हैं. 24 दिसंबर 1924 को जन्में मुहम्मद रफ़ी ने 17 साल की उम्र में पंजाबी फिल्म “गुल बलोच ” के लिए गाना रिकॉर्ड किया था. उसके बाद अपनी किस्मत आजमाने रफ़ी ने बम्बई की तरफ रुख किया.  हिंदी सिनेमा में इन्हें पहला ब्रेक देने वाले संगीतकार नौशाद थे. 1946 में आई “अनमोल घड़ी” वो फिल्म थी जिसके गाने ने रफ़ी की किस्मत पलट दी. नौशाद की संगीत से सजी गीत “तेरा खिलौना टूटा” से मोहम्मद रफ़ी को वो शोहरत मिली जिसे बारे में शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा. संगीतकार नौशाद और मुहम्मद की जोड़ी बन गई. और इस जोड़ी ने एक के बाद एक हिट गाने दिए. जैसे “दिल दिया दर्द लिया”, “दास्तान” , “गंगा जमुना”, “आदमी”, “मदर इंडिया” , “मुगल-ए-आज़म”, “दीदार” ,”अमर”, “कोहिनूर” जैसी कई फिल्मों में अपने संगीत और गायकी की जरिए नौशाद और रफी ने लोगों का दिल जीत लिया.  रफ़ी की गायकी के जादू को देखते हुए नौशाद ने मुहम्मद रफ़ी को भारत के नए तानसेन की संज्ञा दी थी.

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तुम मुझे भुला ना पाओगे” 

अंत में रफ़ी साहब की वो दास्ता ‘ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे, जब भी कभी सुनोगे तुम गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे ‘ ये सच हैं आज भी मुहम्मद रफ़ी सबके दिलों में अपने गीत के जरिए जिंदा हैं और लोग उनके गीतों को सुन गुनगुनाने लगते हैं.

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