पढ़ने के लिए एकाग्रता बहुत बहुत बहुत जरूरी है.मैंने कई पेरेंट्स को देखा है बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पास बिठा लेते हैं. उनका ऐसा मानना होता है कि डर से सही उनका बच्चा कुछ देर तो पढ़ेगा. हकीकत में ऐसा होता नही .मेरा अपना अनुभव रहा है कि ऐसे वक्त में बच्चे बैठे तो रहते हैं लेकिन एकाग्रचित होकर पढ़ नही पाते.
साथ ही किशोरावस्था में मैथमैटिक्स और साईस के सब्जेक्ट को पढ़ना इतना आसान नही होता .मैथ्स के फार्मूले और साइंस की डेरिवशन्स और डायग्रामेटिक स्टडी के लिए बच्चे के मष्तिष्क में इमेजिनरी स्किल का होना अत्यावश्यक है .फिजिक्स के डेरिवेटिव प्रोब्लेम्स और मैथ्स के थ्योरम को prooved करने वाले सवाल हल करते समय फॉर्मूलों की न सिर्फ समझ जरूरी है बल्कि उनका सवाल के अनुसार सिस्टमैटिक एप्लीकेशन भी बेहद अहम् है .इससे बच्चों में विश्लेषण क्षमता का विकास होता है. यही कारण है कि ज्यादातर साइंस पढ़ने वाले छात्र रट्टू तोते नही हुआ करते .
तो कैसे एकाग्रता और कल्पनाशीलता को डेवेलप करें अपने अंदर ?
पूरे दिन भर स्कूल में फिर कोचिंग में गुजारने के बाद आमतौर पर भारतीय परिवारों में शाम होते ही उनका सेल्फ स्टडी शेड्यूल शुरू होता है.लेकिन शाम की पढ़ाई में अभिशाप साबित होता है टीवी सीरियल्स का प्राइम टाइम. घर के अभिभावकों को शायद ही ये बात पता हो कि जब वे कॉमेडी नाइट्स जैसे शो के फूहड़ जोक्स पर हो हो करके हंस रहे होते है तो उसी घर के किसी कोने में पढ़ रहे एक बच्चे का ध्यान बार बार टूट जाता है . मैथ्स और साईस के कुछ derivations इतने लंबे होते हैं कभी कभी एक सिंगल प्रॉब्लम को सॉल्व करने में एक घण्टे से भी ज्यादा लग जाते हैं .असल में ये जो सात से दस वाला समय होता है न ये सब अपने तरीके से जीना चाहते हैं . आप बच्चों की पढ़ाई चुनते हैं या हो हो करना ये इस बार पर निर्भर करती है कि आपकी अपनी प्राथमिकताएं क्या हैं . साथ ही पेरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए की बच्चों को ड्राइंग रूम में न पढ़ने दें . ये बहुत जरूरी है .
एकाग्रता हासिल कर पाने की समस्या हर स्टूडेंट्स के साथ होती है .मेरे साथ भी हुई . शाम के समय पढ़ते वक्त कई आवाजे आती हैं जिन्हें आप चाह कर भी नही टाल सकते .किचेन से प्रेसर कुकर की सीटी हो , या सब्जी चलाते वक्त चम्मच और कढ़ाई के घर्षण बल द्वारा निकली आवाज हो ,अचानक से किसी का फ़ोन आ जाता हो या फिर कोई रिस्तेदार ही आ जाता हो .कुछ नही हुआ तो कुत्ते ने बिना मतलब भौकना शुरू कर दिया .आप इनका कुछ नही कर सकते चाह के भी . पढ़ाई करते वक्त एक लगातार आवाज कभी डिस्टर्ब नही करती लेकिन चारों तरफ से कई प्रकार की थोड़ी थोड़ी देर में आने वाली आवाजें मन को विचलित कर देती हैं .
-समस्या है तो समाधान भी है !
मैंने इस समस्या का समाधान कुछ यू निकाला ..कान में ईयर फ़ोन लगाकर बहुत हलके वॉल्यूम में अपनी पसंदीदा गानो की लिस्ट प्ले कर दी.अब सिर्फ एक ही आवाज आती थी.और इससे मुझसे डिस्टर्बेंस बिलकुल नही होता था. मैथ्स और साइंस में सिर्फ आपको एक बार एकाग्रता की लय पाने की जरुरत होती है उसके बाद मैथ और साइंस सुडोको गेम की तरह एकदम इंट्रेस्टिंग बन जाता है.
लेकिन जो पेरेंट्स अपने बच्चों को स्टडी रूम नहीं प्रोवाइड कर सकते उनकी चुनौतियाँ तो और बढ़ जाती हैं .बच्चे को स्टडी रूम प्रोवाइड करने का मकसद सिर्फ उसे एक शांत वातावरण देना होता है जिसमे वो बिना व्यवधान के पढ़ सके.स्टडी रूम न दे पाने की सूरत में आप को हर हाल में ये कोशिश करनी चाहिए कि आप कम से कम बच्चे की स्टडी के लायक वातावरण तो दे ही सकें. आप उसकी यथासंभव मदद कुछ यू कर सकते हैं जैसे टीवी को बंद रखिये , आप उसके पास बैठे रहिये. आप भी कुछ पढ़ सकते हैं जैसे गीता , रामायण या कोई भी साहित्य इससे आप को भी फायदा होगा .इस प्रकार का ऐसा कोई भी कार्य जो उसे प्रोत्साहित करें .मेरी राय माने तो बच्चों में देर रात तक पढ़ने की आदत विकसित करने का यथासंभव प्रयास करें.मैंने व्यक्तिगत रूप से सुबह चार बजे वाले फॉर्मूले पर कभी विश्वास नही किया न अपने स्टूडेंट्स को ऐसे मशविरे देती हूँ .
ध्यान रखिए ! आपका बच्चा आपका भविष्य है , देश का भविष्य है, साथ ही आपका सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट भी है .इस उम्र में बच्चों को अपने भविष्य की चिंता नही होती.पढ़ना वैसे भी बहुत कम बच्चों को अच्छा लगता है .अतः पेरेंट्स होने के कारण आपकी ये जिम्मेदारी है कि उन्हें एकाग्रचित्त होने में आप उनकी मदद करें .जीतनी जल्दी वो एकाग्रता हासिल करने लगेंगे उनका मन पढ़ाई में लगने लगेगा .फिर स्टडी को वो गेम की तरह अपनी दिनचर्या का हिस्सा खुद बना लेंगे.
बाकि कल को किसने देखा है !
– गीताली सैकिया ( Geetali Saikia)