भारतीय इतिहास में मुगलों का जिक्र लाज़मी है। आखिर मुगलों ने भारत की गद्दी पर लगभग 400 वर्षों तक राज किया है। इस दौरान सुल्तान-ए-हिंद कहे जाने वाले मुगल राजाओं ने तमाम किले, महल आदि बनवाए जिनकी वजह से भारत का नाम आज पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
इन्हीं में से एक नाम राजाओं के राजा अकबर का भी था। उनका पूरा नाम अबुल फतह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था। अकबर का नाम भारतीय इतिहास में दो चीजों के लिए जाना जाता है पहला उसके नवरत्न और दूसरा इश्क। जोधा और अकबर की मोहब्बत भारतीय इतिहास में सुनहरें अक्षरों में दर्ज है। माना जाता है कि इस शादी ने हिंदु-मुस्लिम की एकता को बढ़ावा देने का कार्य किया था।
इश्किया मिजाज़ के लिए मशहूर थे मुगल
मुगल शासकों का इश्क से गहरा नाता रहा है। इस बात की गवाही आगरा में बना ताजमहल आज भी देता है। शाहजहां और मुमताज महल की मोहब्बत की अद्भुत निशानी जो आज भी वैसी की वैसी खड़ी है। इसे देखने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।
कहते हैं शाहजहां को इश्क की तालीम अपने दादाजान से विरासत में मिली थी। उन्होंने अपने दादा अकबर के मोहब्बत के किस्सों से प्रेरित होकर मुमताज महल को दिल दे दिया था।
ऐसा ही कुछ शाहजहां के वालिद जहांगीर ने भी किया था। 25 मई 1611 को अकबर के बेटे सलीम यानी कि जहांगीर ने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर अपनी पहली मोहब्बत और शेर अफगान की विधवा मेहरुनिसा (जिसे बाद में नूरजहां के नाम से जाना गया) से निकाह कर लिया था।
अकबर के दरबार में छोटी सी नौकरी करके अपने परिवार का पेट पालने वाले मोहम्मद ग्यासबेग ने कभी सोंचा भी नहीं था कि जिस बेटी को वे पैदा होते ही मार देना चाहते थे वह कभी मल्लिका-ए-हिंदुस्तान बनेगी।
16 सालों तक नूरजहां ने किया हिंदुस्तान पर राज
बहरहाल, भारतीय इतिहास में नूरजहां का जिक्र उसकी सुंदरता और शालीनता को लेकर किया गया है। लेकिन नूरजहां के जीवन का एक ऐसा पक्ष भी है जिसके विषय में आपको जानकर हैरानी होगी।
आइये जानते हैं नूरजहां के जीवन से जुड़ा वह रहस्य।
माना जाता है नूरजहां सुंदरता और शातिरता दोनों में धनी थी। यही वजह थी 16 सालों तक जहांगीर के नाम पर मुगलिया सल्तनत पर उसने मल्लिका-ए-हिंदुस्तान बनकर राज किया था। आगे चलकर वह यह ताज अपनी बेटी लाड़ली बेगम को सौंपना चाहती थी। लाड़ली बेगम नूरजहां की पहली शादी से हुई बच्ची थी।
बेटे से कराई थी बेटी की शादी
जहांगीर से निकाह के कुछ सालों बाद नूरजहां ने शहरयार को जन्म दिया था। अपनी पहली बेटी का निकाह नूरजहां ने शहरयार से करवा दिया था जिसके बाद वह अपनी ही बेटी की सास बन गई थी। वह चाहती थी कि जहांगीर के बाद उसके बेटे शहरयार को मुगल सल्तनत का नया बादशाह बनाया जाए और उसकी बेटी लाड़ली बेगम को मल्लिका-ए-हिंदुस्तान का तख्त मिले।
शहरयार को बनाना चाहती थी हिंदुस्तान का अगला सुल्तान
उधर, खुर्रम या शाहजहां नूरजहां के मंसूबों से अंजान दक्कन में मुगलिया सल्तनत का परचम लहरा रहा था। इतिहासकारों के मुताबिक, दक्कन की जंग जीतने के बाद जहांगीर ने शाहजहां के पराक्रम से खुश होकर उसका सिंहासन अपने बगल में लगवा लिया था। यह बात नूरजहां को कतई रास नहीं आई थी। वह चाहती थी कि उसका सगा बेटा शहरयार हिंदुस्तान का बादशाह बने। इसके लिए शाहजहां का रास्ते से हटना सबसे अहम शर्त थी।
पिता-पुत्र में डाली फूट
1620 में एक बार फिर दक्कन में युद्ध के बादल छा रहे थे। नूरजहां को महसूस हुआ कि यह वक्त अच्छा है वह शाहजहां को जहांगीर की नज़रों से दूर भेजकर शहरयार को हिंदुस्तान के तख्त पर बिठा लेगी। इसके लिए उसने जहांगीर के कान भरना शुरु किए। उन दिनों शाहजहां लाहौर में था। पिता का आदेश उस तक पहुंचा तो उसने युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया।
यही वो वक्त था जब नूरजहां पिता और पुत्र में फूट डालने में कामयाब हुई। उसने जहांगीर को शाहजहां के खिलाफ भड़काना शुरु किया। धीरे-धीरे बात इतनी बढ़ गई कि जहांगीर अपने बेटे से युद्ध के लिए लाहौर पहुंच गया था। हालांकि, बाद में दोनों के बीच संधि हो गई। इस संधि में नूरजहां ने शाहजहां के दोनों बेटों औरंगज़ेब और दारा शिकोह को आगरा दरबार में बुलवा लिया।
उधर, शाहजहां ने दक्कन में अपने धुर विरोधी मलिक अंबर, उदयपुर के राणा करण सिंह और नूरजहां के भाई असफ खान से हाथ मिला लिया। इस दौरान जहांगीर के तीसरे बेटे परवेज़ की बीमारी के कारण मौत हो गई। इस घटना से नूरजहां के हौंसले और बुलंद हो गए। उसे लगा कि अब शहरयार को सत्ता के शिखर पर काबिज़ होने से कोई नहीं रोक सकता। तभी खबर आई कि जहांगीर ने राजौरी में दम तोड़ दिया।
जहांगीर की मौत
उस वक्त शाहजहां दक्कन पर राज कर रहा था और शहरयार लाहौर पर। तभी नूरजहां ने अपने बेटे और दामाद शहरयार को लाहौर में ही हिंदुस्तान का सुल्तान-ए-हिंद घोषित करवा दिया। वहीं, इससे पहले उसने जहांगीर से ज्यादातर रियासतों को शहरयार के नाम करवा लिया था।
शाहजहां के सामने शहरयार ने टेके घुटने
शाहजहां को यह बात पसंद नहीं आई। इसके अलावा ज्यादातर सैनिक और सलाहकार भी शाहजहां को सुल्तान-ए-हिंद बनते देखने के पक्ष में थे। ऐसे में दोनों भाईयों के बीच युद्ध छिड़ गया। लाहौर से 15 किमी की दूरी पर दोनों खेमों के बीच कई दिनों तक जबरदस्त युद्ध हुआ जिसके बाद शहरयार ने नूरजहां के भाई असफ खान के सामने घुटने टेक दिए। शाहजहां ने उसे पकड़वाकर मौत की सजा सुना दी।
खत्म हुआ नूरजहां का सपना
इसी के साथ नूरजहां के सारे सपने खत्म हो गए। अब उसके पास न पति था और न ही बेटा। उधर, शाहजहां ने भी अपनी सौतेली मां को बख्श दिया। शायद उसके लिए पति और पुत्र की मौत ही सबसे बड़ी सज़ा थी।
गौरतलब है, अपने अंतिम समय में नूरजहां ने शाहजहां से मांग की थी उसे उसकी चहीती बेटी लाड़ली बेगम के पास लाहौर भेज दिया जाए। शाहजहां ने उसकी यह इच्छा पूरी की थी और उसे उसकी बेटी के पास भेज दिया था।
अकबर महान नही बल्कि एक कातिल ओर हत्यारा था जिसने चित्तौड़ किले के विजय होने के बावजूद 30 हज़ार निर्दोष आम नागरिकों का कत्ले आम करवा दिया था।मुगलो ने किसी किले का निर्माण नही करवाया बल्कि किलो में मौजूद हिन्दू देवी देवताओं के मंदिरों की मूर्तियों को खंडित किया है चित्तौड़ का किला इसका जीता जागता उदाहरण है।