नोएडा। ग्रेटर नोएडा का बिसरख गांव में रावण के पिता विश्वरवा ऋषि ने एक अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना की थी। इसी शिवलिंग की पूजा उनके पुत्र रावण ने भी की थी। भगवान शिव ने बिसरख स्थित मंदिर में रावण को दर्शन देकर बुदिमता और पराक्रमी होने का वरदान दिया था। राजस्व अधिकारी रहे खगोल विज्ञान में रूचि रखने वाले पुष्कर भटनागर (अब स्वर्गीय) ने अनुसन्धान के बाद लिखी पुस्तक ‘श्रीराम के युग का तिथि निर्धारण’ में दावा किया है कि भगवान श्रीराम ने रावण का वध 4 दिसंबर 5076 ईसापूर्व में किया था। उन्होंने यह गणना महर्षि वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ में वर्णित रामकथा की प्रमुख तिथियों के साथ दिये गये खगोलीय वर्णनों को आधुनिक खगोलीय सॉफ्टवेयर ‘प्लैनेटेरियम गोल्ड’ से गणना कर निकाली।
श्रीराम के जन्म का नक्षत्रीय विवरण
उन्होंने अपनी गणना के लिए वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में वर्णित रामजन्म के समय अयोध्या के अंतरिक्ष पर उपस्थित विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों के वर्णन को आधार माना है। उनके अनुसार भगवान श्रीराम के जन्म के सम्बन्ध में महर्षि वाल्मीकि ने (रामायण के बालकांड के सर्ग18 के श्लोक 8-10 में) लिखा है- श्रीराम के जन्म के समय- सूर्य मेष राशि में, शनि तुला में, ब्रहस्पति कर्क में, शुक्र मीन में, मंगल मकर राशि में थे। यह चांद्रवर्ष का चैत्र मास था। नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष (अर्थात अमावस्या के बाद का नौवां दिन) था। पुनर्वसु नक्षत्र के निकट चंद्रमा (मिथुन राशि में पोलक्स तारा) था कर्क लग्न (अथवा पूर्व में कर्क राशि) का उदय हो रहा था। बृहस्पति क्षितिज के ऊपर थे। अंतरिक्ष में ग्रहों की इन स्थितियों का आकलन करने के बाद पुष्कर भटनागर ने दावा किया था कि अयोध्या के अंतरिक्ष में यह स्थिति 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व थी। ऐसे में उनका मानना है कि इसी तिथि को दोपहर 12.15 बजे भगवान का जन्म हुआ।
भगवान राम की जन्मतिथि निकालने के बाद पुष्कर जी ने रामायण में दी अन्य घटनाओं के समय के खगोलीय विवरणों से उनकी तुलना कर यह आश्चर्यजनक परिणाम निकाला है कि रामजन्म से लेकर रावणवध अथवा राम की अयोध्या वापसी तक की सारी तिथियां आपस में मेल खानेवाली हैं। अपनी इस अपूर्व खोज के आधार पर उनका दावा है कि 10 जनवरी 5114 ईसापूर्व चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की नवमी (दोपहर 12.25 बजे) अयोध्या में माता कौशल्या के गर्भ से जन्मे राम का सार्वजनिक जीवन उस समय आरम्भ हुआ जब महर्षि विश्वामित्र 12 वर्ष की अवस्था में उन्हें 5102 ईसापूर्व अपने साथ अपने यज्ञ के रक्षार्थ ले गये।
वनवास
राम का 13वें वर्ष में मिथिला नरेश जनक की पुत्री सीता से विवाह हुआ। दशरथ की दूसरी पत्नी कैकेई के विरोध के चलते राम को 5 जनवरी 5089 ई.पू. को 14 वर्षों के लिए वन जाना पड़ा। राम के वियोग में उनके पिता महाराज दशरथ की 10 जनवरी 5089 ई.पू. को मृत्यु हो गयी।पंचवटी में सूर्पणखा से भेंट हुई। लक्ष्मण को उसके नाक काटने को विवश होना पड़ा। सूर्पणखा के अपमान का बदला लेने उसके सेनापति खर व दूषण आये, लेकिन राम ने 22 सितम्बर 5077 ई.पू. उनका वध कर दिया। वहीं, हनुमान ने 13 सितंबर 5076 ई.पू को लंका दहन किया। 20 सितम्बर 5076 ई.पू. राम का सेना सहित लंका की ओर प्रस्थान किया। मार्ग में 5 दिन में ‘रामसेतु’ का निर्माण कर उस पार पहुंच राम ने सेना सहित लंका पहुंचकर 12 अक्टूबर 5076 ई.पू. ‘सुवेल पर्वत’ की ओर गमन किया।
रावण वध
21 नवम्बर 5076 ई.पू. को लक्ष्मण से मेघनाद का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मेघनाद के प्रहारों से लक्ष्मण के प्राण संकट में पड़ गये। अंततः तीन दिनों बाद 24 नवम्बर 5076 ई.पू.को लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का वध कर दिया गया। अपने पुत्र व सुयोग्य सेनापति मेघनाद के वध के बाद 24 नवम्बर 5076 ई.पू. को रावण स्वयं युद्धभूमि में उतरा। युद्ध में 7 दिन रावण राम की सेना के अन्य सेनापतियों से लड़ा जबकि अंतिम तीन दिन राम व रावण के मध्य प्रत्यक्ष युद्ध हुआ। अंततः 4 दिसम्बर 5076 ई.पू. को राम के हाथों रावण का वध हुआ।