●The Future Of Space Exploration: Space Elevators●
रूस ने 2019 से पहले भेजे जाने वाले सोयुज स्पेस मिशन के लिए नासा के साथ करार किया है कि रूस अपने इस अंतरिक्ष अभियान में नासा के 5 अंतरिक्ष यात्रियों को लिफ्ट देकर पृथ्वी के चक्कर लगाते इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर छोड़ेगा… इसके लिए नासा ने रूस को लगभग 250 अरब रूपए का भुगतान किया है।
5 अस्ट्रॉनॉट्स की सीट की कीमत 250 अरब?
आखिर स्पेस ट्रेवल अथवा सैटेलाइट्स स्थापना इतनी महंगी क्यों है? बेशक मानवीय श्रम, हाई टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण फैक्टर्स है पर इसके अलावा जो चीज स्पेस मिशंस को सबसे ज्यादा महंगा बनाती है.. वो है…
“पृथ्वी की ग्रेविटी की सीमा को तोडना”
अक्सर लोगो को ग़लतफ़हमी रहती है कि रॉकेट्स ऊपर की ओर सीधी रेखा में गति करते है.. जो सच नही है।
वास्तव में रॉकेट्स को पृथ्वी से निकल कर सैटेलाइट्स को पृथ्वी के ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए ऊपर जाने के साथ साथ Sideways Motion अथवा गोलाकार रूप में भी गति करनी होती है। इसके लिए रॉकेट्स को एक सेकंड में मिनिमम 11.2 किलोमीटर की अभूतपूर्व स्पीड मेन्टेन करनी होती है।
Any Less Than That… और आप पृथ्वी पर गिर पड़ेंगे।
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चलिए एक काल्पनिक प्रयोग करते हैं। पृथ्वी से 36000 किलोमीटर ऊपर मौजूद जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स पृथ्वी का एक चक्कर 24 घण्टे में पूरा करते है। अर्थात.. जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ऊपर स्थिर रहते है।
अगर जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स से 36000 किलोमीटर लंबी एक रस्सी अथवा केबल लटकाई जाए.. और रस्सी का एक सिरा पृथ्वी पर मौजूद बेस स्टेशन से बाँध दिया जाए तो बेशक रस्सी टेंशन के कारण स्थिर रहेगी
चूँकि ये रस्सी पृथ्वी के साथ साथ घूम रही है इस कारण अगर आप इस रस्सी पर चढ़ना शुरू करते हैं तो Sideways Motion आपको फ्री में हासिल हो जाएगा
आपको मेहनत सिर्फ ऊपर चढ़ने के लिए करनी होगी.. जो कि एनर्जी खपत के अनुसार ज्यादा खर्चीला नही होगा।
आपको बेशक मेरी बाते विशुद्ध साइंस फिक्शन प्रतीत हो रही हो पर ऐसा कांसेप्ट वास्तविक जीवन में संभव है और वैज्ञानिक इस पर सीरियसली विचार कर रहे हैं।
इस स्ट्रक्चर को नाम भी बेहद फैंसी दिया गया है।
Space Elevators !!!!
स्पेस एलिवेटर बनाने की मुख्य बाधा इस वक़्त “रस्सी” से सम्बंधित है क्योंकी कई टन वजन सहन कर सकने में सक्षम 36000 किलोमीटर लंबी रस्सी बेहद मजबूत और बेहद फ्लेक्सिबल होनी चाहिए।
फ्लेक्सिबिलिटी में प्लास्टिक के समान पर स्ट्रेंथ में स्टील से 100 गुणा मजबूत “कार्बन नैनो ट्यूब्स” इस सम्बन्ध में एक बेहतर उपाय हो सकता है पर अपने बेहतरीन प्रयासों के बावजूद हम अभी तक मात्र एक फुट लंबे कार्बन ट्यूब का निर्माण कर पाये हैं। 36000 किलोमीटर लंबी कार्बन नैनो ट्यूब से बनी रस्सी के बारे में सोचना फिलहाल ख्याली पुलाव प्रतीत होता है।
समस्याएं और भी है। जैसे कि अंतरिक्ष में मौजूद स्पेस स्टेशन का स्वरुप क्या होगा क्योंकि रस्सी को स्टेबल रखने के लिए बेशक वो स्पेस स्टेशन करोडो किलो वजनी होना चाहिए। इतना वजनी स्पेस स्टेशन पृथ्वी से ट्रांसपोर्ट कैसे किया जाएगा? अथवा किसी धूमकेतु अथवा उल्का को पकड़ के पृथ्वी की कक्षा में बेस स्टेशन के रूप में स्थापित कर देना ज्यादा बेहतर होगा?
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रस्सी को पृथ्वी के वातावरण में रोज प्रवेश करने वाली उल्काओं के टुकड़ो से कैसे बचाया जाएगा? क्योंकि अगर खुदा ना खास्ता ये रस्सी किसी वजह से टूट गई तो परिणाम बेहद विनाशकारी होंगे
अगर ये रस्सी पृथ्वी पर मौजूद बेस स्टेशन के पास से टूटती है तो रोटेशन के मोमेंटम ट्रान्सफर के कारण अंतरिक्ष में मौजूद स्पेस स्टेशन अनियंत्रित होकर स्पेस में मुक्त सफर पर निकल जाएगा और हम हमेशा के लिए उस स्पेस स्टेशन को खो देंगे।
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अगर ये रस्सी अंतरिक्ष में मौजूद स्टेशन के पास से टूटती है तो.. पृथ्वी के साथ साथ पृथ्वी के चारो ओर घूमती ये अनियंत्रित रस्सी हमारे अन्य सैटेलाइट्स के साथ साथ भविष्य की एयरलाइन पैसेंजर उड़ानों के लिए गंभीर ख़तरा उत्पन्न कर देगी।
इस स्थिति में रस्सी को बेस स्टेशन से काट देना भी समस्या को हल नही करेगा क्योंकि रस्सी अपने मोमेंटम को बरकरार रखने के कारण पूर्व की भाँति पृथ्वी के चारो तरफ घूमती रहेगी.. और भरोसा रखिये कि इस जी का जंजाल बनी रस्सी से निजात पाने की कीमत कई मुल्को की सम्मिलित जीडीपी से ज्यादा होगी।
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अभी स्पेस में एक किलोग्राम मैटेरियल भेजने की औसतन कीमत 25000 डॉलर है पर स्पेस एलिवेटर बनने के बाद ये कीमत घट कर सिर्फ 100 डॉलर प्रति किलोग्राम रह जायेगी। लंबी दूरी पर जाने वाले स्पेस शिप्स का आधे से ज्यादा ईंधन पृथ्वी की कक्षा से निकलने मात्र में खर्च हो जाता है। स्पेस एलिवेटर्स द्वारा स्पेस क्राफ्ट को टुकड़ो में पृथ्वी से बाहर भेज कर.. इन टुकड़ो को पृथ्वी की कक्षा में असेम्बल करके स्पेस मिशन लांच लिए जा सकते हैं। जिससे राकेट फ्यूल की खपत बेहद कम हो जायेगी।
यही सब कारण है कि वैज्ञानिको का कहना है कि… “स्पेस एलिवेटर को बना सकने वाला प्रथम राष्ट्र ही सही मायनो में ब्रह्माण्ड की प्रथम इंटेरगेलैक्टिक सिविलाइज़ेशन कहलाने का हकदार होगा”
ये सोचना एक बेहतरीन एहसास है कि शायद एक ऐसा वक़्त आये जब आप एक 100 डॉलर की टिकट खरीद कर स्पेस में पहुच कर हमारी खूबसूरत पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखने का लुत्फ़ उठा पाएं !!
अभी इन स्पेस एलिवेटर्स की ऊंचाई लगभग एक लाख किलोमीटर प्रस्तावित है। इस ऊंचाई पर मौजूद स्पेस स्टेशन की गति इतनी तेज होगी कि इस स्पेस स्टेशन से बाहर रखा एक कदम.. आपको चाँद पर पहुचा सकता है।
जी हाँ !!
अगर आप इस स्पेस स्टेशन पर मौजूद है तो जाहिर है कि आपका शरीर भी स्पेस स्टेशन के समान ही गतिमान है।
अगर इस स्पेस स्टेशन से आप चंद्रमा की ओर छलांग लगा दें तो अंतरिक्ष में तैरता हुआ आपका शरीर लगभग 12 घण्टे बाद.. चंद्रमा पर लैंड करेगा !!
Simply Stepping Out From Moving End Of Space Elevator Would Give You Enough Velocity To Take You To The Moon !!
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(But Don’t Do That Until You Don’t Wana Die In Crash Landing)
-विजय सिंह ठकुराय
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