हमारे देश में राजा महाराजाओं की बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं. उनके साथ-साथ उनके रहने की जगह किलों की कहनाइयाँ भी खूब सुनाई जाती हैं. अलग-अलग किलों की कहानियां भी अलग है. ऐसी ही एक कहानी है एक किले की जिसे भेदने के लिए शेरशाह सूरी ने सिक्कों गलवाकर तोपे बनवाई थी. यह किला भेदना आसान नहीं था.
कहानी रायसेन के किले की-
यह कहानी रायसेन के किले की है जिसका निर्माण 1200 ईस्वीं में हुआ था और यह भोपाल के पास स्थित है. बलुआ पत्थर से बने इस किले के चारों तरफ चट्टानों से बनी हुई दीवारें हैं. शेरशाह सूरी ने कई बार इस पर आक्रमण का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो पाया।
बात है साल 1543 की जब यहाँ पर पूरणमल नाम के शासन किया करते थे. उस वक्त इस किले के नाम कई जगह पर मशहूर था और शेरशाह सूरी को इस बात की जानकारी मिली तो उसने हमला कर दिया।
हमले में हुआ विफल-
कई दिनों तक इस किले को घेरकर बैठे रहने के बाद भी शेरशाह सूरी को सफलता नहीं मिली तो वो परेशान हो गया. अंत में उसने चांदी के सिक्को को गलाकर तोपें बनवाई जिससे आक्रमण किया गया. आक्रमण करने के बाद कैफ समय तक युद्ध चला लेकिन अंततः यह किला शेरशाह सूरी ने भेद लिया। अभेद कहा जाने वाला किला अब शेरशाह सूरी के कब्जे में था.
रानी का काटा सिर-
इस किले में रहने वाली रानी अर्थात महाराज पूरणमल की पत्नी बहुत सुंदर थीं. उनकी सुंदरता के किस्से जगह-जगह मशहूर थे और हर कोई उन्हें एक झलक देखना चाहता था. रानी की सुंदरता पर राजा भी बहुत फ़िदा थे.
कहा जाता है कि जब शेरशाह सूरी ने यहाँ हमला किया और उसे जीत हासिल हो गई तब राजा ने खुद अपने हाथों से रानी का गला काटकर उसे मौत के घाट उतर दिया। ऐसा राजा ने इसलिए किया क्योंकि वो नहीं चाहते थे की रानी किसी और के हाथ लगें और कोई उनके साथ गलत हरकत करे.
राजा के पास था पारस का पत्थर-
यहाँ के राजा के पास एक पारस का पत्थर था. यह वही पत्थर होता है जिसे किसी भी चीज में टच करने से वो सोने की हो जाती थी. राजा के पास यह पत्थर है इस बात की जानकारी शेरशाह सूरी को भी थी और पूरे देश में इस बात की अफवाह फ़ैल चुकी थी.
कहा जाता है कि जब राजा के किले में शेरशाह ने हमला किया तब राजा ने इस पत्थर को किले में ही कहीं छिपा दिया। इसके बाद आज तक कोई भी इस पत्थर को नहीं ढूंढ सका. कहते हैं जो भी इसे ढूंढने जाता है वो अपना मानसिक संतुलन खो देता है.