भारत का इतिहास हमेशा से समृद्ध रहा है। हर दौर में किसी न किसी ऐसे दिग्गज का जन्म हुआ है जिसने समाज को हर तरह से प्रेरित किया है। इसका सबसे प्रबल उदाहरण मशहूर फिल्म डॉयरेक्टर बी आर चोपड़ा रहे हैं।
उन्होंने अपनी फिल्मों से हिंदी सिनेमा को एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि बॉलीवुड की फिल्मों को लोकप्रिय बनाने में बी आर चोपड़ा और उनकी कहानियों ने अहम योगदान दिया है।
50-60 के दशक में जब ज्यादातर फिल्मों की कहानी में अमीर हीरोइन को गरीब हीरो से प्यार हो जाता था या फिर हीरो सब कुछ करने में सक्षम होता था। तब बी आर चोपड़ा ने सोशल सेंट्रिक फिल्मों का चलन शुरु किया था।
वो बी आर चोपड़ा ही थे जिन्होंने बी आर प्रोडक्शंस के बैनर तले सामाजिक मुद्दों को फिल्मों के माध्यम से उठाने की शुरुआत की थी। उन्होंने नया दौर, एक ही रास्ता जैसी फिल्मों के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को फिल्मी पर्दे पर उकेरने की कोशिश की।
फिल्म जर्नलिस्ट बलदेव राज चोपड़ा
बता दें, बीआर चोपड़ा का जन्म 22 अप्रैल 1914 को राहों, पंजाब में हुआ था। बाद में उनका परिवार लाहौर शिफ्ट हो गया। वहीं, से बलदेव राज चोपड़ा ने इंग्लिश में एमए किया और इंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट बन गए।
सिने हेराल्ड में नौकरी के दौरान उनकी मुलाकात आई.एस. जौहर से हुई थी। दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। साल 1947 में जौहर ने चोपड़ा को एक कहानी सुनाई थी। यह कहानी उन्हें काफी पसंद आई। इसके बाद चोपड़ा ने फैसला किया कि वे इसपर एक फिल्म तैयार करेंगे। उस फिल्म का नाम चांदनी चौक था। शूटिंग शुरु हुई लेकिन 15 अगस्त 1947 को देश का बंटवारा हो गया और फिल्म की शूटिंग बीच में ही रोकनी पड़ गई।
लाहौर में भी दंगे भड़क चुके थे ऐसे में बलदेव चोपड़ा अपने पूरे परिवार के साथ जान बचाकर दिल्ली आ गए। लेकिन उनके मन में फिल्म डॉयरेक्टर बनने की आग पनपती रही।
कुछ समय बाद वे सपनों की नगरी बॉम्बे पहुंचे। यहां उन्होंने एक नई कहानी से शुरुआत की। फिल्म का नाम था करवट जो बॉक्सऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हुई। प्रोड्यूसर का सारा पैसा डूब गया। ऐसे में बी आर चोपड़ा को उनका करियर शुरु होने से पहले ही खत्म होता दिख रहा था।
बलदेव से कैसे बने बीआर चोपड़ा?
इसी बीच उनकी मुलाकात उनके अजीज़ मित्र और फिल्म प्रोड्यूसर शादीलाल हांडा से हुई। उन्होंने चोपड़ा को फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया। चोपड़ा ने उन्हें कहानी सुनाई जो कि हांडा को काफी पसंद आई। वे फिल्म में पैसा लगाने के लिए तैयार हो गए। बस फिर क्या था बीआर चोपड़ा ने अपने करियर की पहली सुपरहिट फिल्म डॉयरेक्ट की जिसका नाम था अफसाना। इस फिल्म में दादा मुनि यानी कि अशोक कुमार मुख्य भूमिका में थे।
दर्शकों को फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई थी। फिल्म ने बॉक्सऑफिस पर सारे रिकॉर्ड्स तोड़ दिए थे। यहीं से बहीआर चोपड़ा का करियर चमक उठा। उन्होंने एक के बाद एक फिल्म बनाकर अपने साथ-साथ नए-नए लोगों को इंडस्ट्री में पैर जमाने का मौका दिया।
आशा भोंसले को दिया था मौका
इन्हीं में से एक थीं आशा भोंसले। फिल्म नया दौर से बॉलीवुड की फिल्मों में गायिका के तौर पर एंट्री करने वाली आशा भोंसले का करियर स्थापित करने में बीआर चोपड़ा ने बहुत मदद की थी। दिलीप कुमार और वैजयंती माला स्टाररर यह फिल्म उस ज़माने की सुपरहिट फिल्मों में से एक थी। इसका गाना उड़े जब-जब जुल्फें तेरी..हिट हुआ साबित हुआ था। इसके बाद आशा भोंसले ने कभी पलटकर नहीं देखा। उन्होंने ‘वक़्त’ ‘गुमराह’, ‘हमराज’, ‘आदमी और इंसान’ जैसी फिल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर दर्शकों के दिल में अपनी जगह स्थापित की।
रफी साहब से हो गई थी चोपड़ा की बहस
बीआर प्रोडक्शंस की ज्यादातर फिल्मों में मोहम्मद रफी साहब अपनी आवाज़ दिया करते थे। लेकिन फिल्म नया दौर के दौरान एक ऐसा वाकिया हुआ था जिसने दोनों की दोस्ती में दरार पैदा कर दी थी। कहा जाता है कि बीआर चोपड़ा नहीं चाहते थे कि रफी साहब किसी और की फिल्म में गाना गाएं। ये बात रफी साहब को हज़म नहीं हुई थी। उन्होंने बीआर चोपड़ा को सीधे तौर पर इनकार कर दिया था।
जानकारी के अनुसार, इसके बाद कई सालों तक दोनों ने साथ में काम नहीं किया। हालांकि, चोपड़ा साहब के छोटे भाई यश चोपड़ा ने फिल्म वक्त बनाई थी। इस फिल्म में रफी साहब को गाने का मौका दिया गया था। कहा जाता है कि बीआर चोपड़ा को रफी साहब के लिए मनाने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि उनके भाई यश चोपड़ा ही थे।
किशोर कुमार ने रख दी थी हैरतंगेज़ शर्त
ऐसा ही एक और किस्सा किशोर कुमार से भी जुड़ा है। दरअसल, किशोर कुमार मशहूर फिल्म अभिनेता अशोक कुमार या दादा मुनि के छोटे भाई थे। बीआर चोपड़ा और दादा मुनि काफी अच्छे दोस्त थे। दोनों ने साथ में कई फिल्मों में काम किया था। एक नई फिल्म की कहानी लेकर चोपड़ा अशोक कुमार के घर पहुंचे थे। उन्होंने एक्टर को कहानी सुनाई और वे तैयार हो गए। चोपड़ा साहब ने अशोक कुमार से आग्रह किया कि वे अपने भाई किशोर कुमार को भी इस फिल्म में काम करने के लिए मना लें। इसपर एक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे किशोर से जाकर मिल लें बात बन जाएगी।
शर्त सुनकर भड़क गए थे बीआर चोपड़ा
चोपड़ा साहब अगले ही दिन किशोर कुमार के घर पहुंच गए। उन्होंने सिंगर को सारी कहानी बताई जिसके बाद किशोर कुमार उनकी फिल्म में काम करने के लिए तैयार भी हो गए। लेकिन सिंगर ने चोपड़ा साहब के सामने ऐसी शर्त रख दी जिसके सुनकर वे हक्के-बक्के रह गए थे। कहा जाता है कि किशोर कुमार ने बीआर चोपड़ा से कह दिया था कि फिल्म के सेट पर वे सारा टाइम धोती और कुर्ता पहनकर रहेंगे। इसके अलावा फिल्म डॉयरेक्ट करते हुए उन्हें पान भी खाना होगा। यह बात किशोर कुमार जानते थे कि बीआर चोपड़ा न ही धोती पहनेंगे और न ही पान खाएंगे। बाद में जब अशोक कुमार को उनके भाई की इस हरकत का पता चला था वे काफी नाराज़ हुए थे जिसके बाद तीनों ने साथ मिलकर एक फिल्म में काम किया था।
1998 में मिला उत्कृष्ट सम्मान
गौरतलब है, बीआर चोपड़ा ने हिंदी सिनेमा को बुलंदियों तक पहुंचाने में बहुत अहम योगदान दिया। उन्होंने अपनी फिल्मों से समाज को एक आयना दिखाने की कोशिश की। उनके इसी प्रयास के लिए साल 1998 में बीआर चोपड़ा को फिल्म जगत के उच्चतम सम्मान दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नावाज़ा गया था।