सुबह त्रयाक्ष को स्कूल भेजते वक़्त मेरी आँखों में सितारे होते हैं. न चाहते हुए भी उस वक़्त उठना पड़ता है जब नींद सबसे ज्यादा गहरी होती है. आँखें मलते बच्चे को तैयार करके स्कूल शायद मुझ जैसी सारी माँओं की दिन की पहली ड्यूटी होती है. जिस प्यार से हम अपने बच्चों को सुबह स्कूल भेजते हैं, उसी प्यार से उनके आने का इंतज़ार भी करते हैं?
प्रदुमन के घर के लोग भी इसी तरह उसका इंतज़ार कर रहे होंगे, पर गुडगाँव के रयान इंटरनेशनल स्कूल में पढने वाला प्रदुमन अब कभी वापस नहीं आएगा. सात साल का छोटा सा बच्चा टॉयलेट में पड़ा हुआ मिला, जिंदगी के लिए तडपता हुआ. लिखते हुए शब्द नहीं मिल रहे हैं, गला ऊपर तक भर आया है पर सवाल करना ज़रूरी, इसलिए लिख रही हूँ.
क्या इसी दिन के लिए प्रदुमन को स्कूल भेजा गया था? सात साल के बच्चे से किसकी दुश्मनी हो सकती है और क्यों? मेरे बेटे से बमुश्किल दो साल बड़े बच्चे ने किसका क्या बिगाड़ दिया होगा जो वह उसकी जान का दुश्मन बन बैठा? उसकी जान ले ली, वह भी स्कूल में?
बच्चे देश का भविष्य होते हैं. बच्चे ये, बच्चे वो… करते क्या हैं आप बच्चों के लिए? न स्वास्थ्य, न शिक्षा, न ही सुरक्षा, कुछ भी ढंग से मुहैया नहीं करवाया जाता है इन्हें. अगर माली हालात थोड़ी भी ठीक है तो हम सबसे सरकारी स्कूल से किनारा करते हैं. वजहें सबको पता है. उन स्कूलों में पढाई और सिक्योरिटी, किसी भी चीज़ की गारंटी नहीं होती. हम निजी स्कूल की ओर भागते हैं. ब्रांडिंग से चकाचौंध मिडल क्लास आजकल सिर्फ निजी तक ही नहीं रह रहा, हम निजी से आगे ‘इंटरनेशनल स्कूल’ तक जाने लगे हैं. इंटरनेशनल स्कूल है तो पढाई बढ़िया होगी, बच्चा अंग्रेजी जल्दी सीखेगा, स्विमिंग, स्पोर्ट्स की एक्स्ट्रा क्लास होगी, हाई-फाई टीचर्स होंगे और सबसे बड़ा फैक्टर ‘सुरक्षा’ आला दर्जे की होगी. त्रयाक्ष को स्कूल में डालते वक़्त मैंने भी इन्हीं चीज़ों पर ध्यान दिया था, लेकिन आज पूरे शरीर में सिहरन है. रयान इंटरनेशनल वालों ने भी तो यही दावा किया होगा न. बेहतरीन सुरक्षा, बेहतरीन व्यक्तित्व-विकास.
कैसी सुरक्षा है यह? डेढ़ साल पहले एक छः साल का बच्चा पानी के टैंक में डूब गया, स्कूल प्रशासन को शाम तक पता नहीं चला. अभी टॉयलेट में प्रदुमन के साथ हादसा हुआ, स्कूल को घंटे भर पता ही नहीं चला. क्या कर रहे थे प्रदुमन के क्लास टीचर? एक घटे तक बच्चा क्लास में नहीं है और आप को भान नहीं? स्कूल का सीसीटीवी कैमरा क्या काम कर रहा था? सीसीटीवी से याद आया, दिल्ली के तमाम रेस्टोरेंट और होटल में सीसीटीवी हैं, कितने स्कूलों में यह उपकरण है? क्या इस मद्देनज़र कोई सरकारी आदेश है कि तमाम स्कूली गतिविधियाँ कैमरे में रिकॉर्ड हों?
हम माँ-बाप भी तो कम बेवक़ूफ़ नहीं. स्कूल की तमाम उलटी-सीधी मांगों को पूरी करते रहते हैं, अपने बच्चे की सुरक्षा के बाबत कितने दफे सवाल उठाते हैं? हम अपने बच्चों के भविष्य का ख़याल कर पीछे हट जाते हैं. डर जाते हैं.
यह ख़याल मुझे अब और डरा रहा है. अख़लाक़, गौरी लंकेश और इस तरह की तमाम हत्याओं से मुझे झटका लगा था, मुझे डर ‘प्रदुमन’ की हत्या से लग रहा है. मेरा भरोसा उठ गया है. मुझे अपने लिए डर लग रहा है. अपने बच्चे के लिए भी. मैं कितनी हिम्मत बटोरूँ कि उसे वापस स्कूल भेज पाऊं? एलन कुर्दी की लाश की तस्वीर अब तक मेरा पीछा नहीं छोड़ रही. इस नए डर के साथ कैसे जी पाऊँगी ?
यह डर सिर्फ मेरा डर नहीं है, तमाम लोगों का जो अपने बच्चे को स्कूल भेजते हैं. साहब कुछ तो कीजिये. बच्चे सुरक्षित नहीं रहेंगे तो आपका देश भी सुरक्षित नहीं रहेगा. बचाइये इन्हें…