आपने अक्सर हरिद्वार और बनारस में कुम्भ मेले के बारे में सुना होगा. जहां हज़ारों की तादात में नागा साधुओं की भीड़ गंगा में स्नान करने आते है. उसके बाद यही नागा साधु कुम्भ के मेले के बाद चले जाते है. क्या आप जानते है कि ये कहां से आते है और कहां गायब हो जाते है.ये वही साधु है जिनकी वजह से आज हमारी संस्कृति और हमारा धर्म बचा हुआ है, और इन्ही की वजह से अपने धर्म का पालन हम खुलकर कर पाते है.
जानते है इनका जीवन क्या है, इतिहास क्या है. आज हम जानेंगे इन्ही नागा साधुओं के बारे में और जानेंगे उस युद्ध के बारे में जो नागा साधुओं ने देश के लिए लड़ा था और दुश्मन उल्टे पांव वापस भाग गया था.
धर्म बचाने के लिए लड़े कई युद्ध, नहीं किसी योद्धा से कम
आपको बता दें की आदि शंकराचार्य ने धर्म को बचाने के लिए देश के चारो कोनों में सन्यासी पीठों की स्थापना की है. धर्म की रक्षा करने के लिए इन नागा साधुओं ने कई युद्ध में बतौर योद्धा भाग लिया है. और न सिर्फ भाग लिया है बल्कि युद्ध में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया है.
जगप्रसिद्ध महाराणा प्रताप जब मुगलो के खिलाफ जंग की घोषणा कर रहे थे, मुगलो के खिलाफ जंग का आगाज़ कर रहे थे, तब उन्हें नागा साधुओं का भरपूर साथ मिला था. वहीँ जब औरंगज़ेब ने बनारस में विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया तब महानिर्वाणी दशनामी अखाड़े के नागा साधुओं ने मुगलो के छक्के छुड़वा दिए थे.
शिव सा आचरण धारण किये है नागा साधु
जब भी आप या हम साधुओं या संतो की बात करते है तो ज़हन में एक छवि निखर के आती है. जिसमे नागा साधु समाधी में लीन नज़र आते है. दुनिया की मोह माया से दूर अपने आराध्य में मगन नज़र आते है. ऐसे में गौर किया जाए तो नागा साधुओं का आचरण भगवान शिव से कम नहीं. गौरतलब है कि भगवान शिव की तरह ही समाधि में लीन , शरीर पर नाम मात्र वस्त्र और अपनी दुनिया में मगन.
यहां अगर शिव की बात हो ही रही है तो शिव के प्रचंड रूप का भी ज़िक्र करना आवश्यक हो जाता है. पापी जब सीमा लांघ जाता है तब शिव भी प्रचंड रूप धारण कर लेते है, और अपने एक वार से संसार का नाश करने की शक्ति रखते है. वहीं नागा साधु भी दुश्मन के द्वारा अति होने के बाद सामने वाले का नाश करने की क्षमता रखते है.एक युद्ध नागा साधुओं का क्रूर अहमदशाह अब्दाली के साथ था जिसमे 2000 साधुओं ने अपनी जान की परवाह किये बिना मुगलों से युद्ध किया था और दुश्मन को अपनी जगह से एक कदम भी आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया था. आइये जानते है विस्तार में
अहमदशाह अब्दाली ने किया था गोकुल पर हमला
जैसा की आपको बताया की दशनामी अखाड़ों को देश और धर्म की रक्षा करने के लिए स्थापित किया गया था, नागा साधुओं ने अपने धर्म और कर्म का उसी तरह पालन भी किया. भारत में जब मुग़ल शासक लगातार हमले कर रहे थे तब सनातन धर्म के सन्यासियों ने सन्यास छोड़ दिया और हथियार उठा लिए थे.
इतिहास में अहमदशाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा पर हमला करते हुए गोकुल की तरफ अग्रसर हो रहा था. रास्ते में लोगो का नसंहार करता हुआ वह न औरतों को न बच्चो को बक्श रहा था. महिलाओं का बलात्कार और बच्चो को दूर देशो में बेच रहा था. देश में ऐसा कत्लेआम देख कर करीब 5000 नागा साधुओं ने इन मुगलो का सामना करने की ठानी. साधुओं ने हथियार उठाये और अहमदशाह अब्दाली से युद्ध किया। इस भयंकर युद्ध में करीब 2000 नागा साधु वीरगति को प्राप्त हुए थे.
हल्के मे लिया था साधुओं को
जब युद्ध शुरू हुआ था तब अहमदशाह अब्दाली साधुओं को संत समझकर उन्हें हल्के में ले रहा था. लेकिन जैसे जैसे युद्ध आगे बढ़ा वैसे वैसे अब्दाली को अंदाज़ा लग चुका था की ये साधु देश के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. युद्ध की ख़ास बात थी कि जिस मुग़ल सेना के सामने बड़े बड़े योद्धा हाथ खड़े कर लेते थे उसी सेना को नागा साधुओं ने एक कदम भी आगे बढ़ाने नहीं दिया, सेना का जो योद्धा जहा था वहीं उसे मौत के घाट उतारा गया.
जोधपुर के लिए सन्यासियों ने छोड़ा था सन्यास
दुनिया भर में खून की होली खेलने के बाद जब मुग़ल शासक जोधपुर की तरफ अपनी बुरी नज़र डालते हुए आगे बढ़ रहे थे तब नागा साधुओं ने समाधी छोड़ देश के लिए त्रिशूल, तलवार उठा लिए थे. मुग़ल शासक भारत में रहकर भारतवासियों को अपने पैरों तले रोंद रहे थे, तब इन्ही सन्यासियों ने अपनी क्षमता से दुगना कड़ा युद्ध करके आक्रांताओं को शिकस्त दी थी.
आज भारत के हर व्यक्ति को यह मालूम होना चाहिए की नागा साधुओं ने कैसे अपनी समाधि और सन्यास छोड़ देश के लिए किसी योद्धा से दुगना पराक्रम अपने दुश्मनों के खिलाफ दिखाया है. जहां हम मुगल शासको की वीरता का बखान करते है वहां ज़रूरी हो जाता है की हम अपने देश के इन गुमनाम योद्धाओं के बारे मे पढें. और जानकारी के लिए लेखक डॉ नित्यानंद की भारतीय संघर्ष का इतिहास ज़रूर पढ़ें.