Saturday, November 30, 2024

यूपी की पहली मुख्यमंत्री जो बैग में रखती थी सायनाइड की गोली, जानिये क्या थी वजह

आजाद भारत में किसी राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री का सौभाग्य प्राप्त करने वाली सुचेता कृपलानी को भला कौन नहीं जानता। दया और करुणा की मूर्ति कही जाने वाली सुचेता का जन्म 25 जून 1908 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। शरुआती पढ़ाई उन्होंने अंबाला के प्राथमिक विद्यालय की बाद में दिल्ली आ गईं। अब तक वे इतनी बड़ी हो गईं थी कि गुलामी का सही मायनों में मतलब समझ गई थी। मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत और देश को आजाद कराने की चाहत लिए सुचेता लोगों को शिक्षा के माध्यम से गुलामी की बेड़ियों से देश को रिहा कराना चाहती थीं। यही वजह थी कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने प्राध्यापिका के पद पर कई सालों तक कार्य किया। यहां वे संवैधानिक इतिहास पढ़ाया करती थीं।

राजनीति की शुरुआत

राजनीति में निष्क्रियता के बावजूद उनका विवाह सोशलिस्ट लीडर जे बी कृपलानी से करा दिया गया। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा का शुभारंभ हुआ।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुचेता ने गांधी जी के साथ मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। उनके नेतृत्व में कई महिलाओं ने इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगाई थी।

बैग में रखती थीं सायनाइड की गोली

कहते हैं आजादी के वक्त नोआखाली में दंगे हुए थे इस दौरान महात्मा गांधी ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। उनके साथ सुचेता भी पहुंची थीं। सुचेता पर आधारित ग्रेट वुमेन ऑफ इंडिया में इस बात का जिक्र किया गया है कि जब वे नोआखाली पहुंची थीं उस दौरान वहां महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं थीं। वे असुरक्षित थीं यही कारण था कि सुचेता को इन सबसे डर लगता था जिसकी वजह से कई बार उनकी तबियत भी बिगड़ जाती थी। किताब में आगे बताया है कि ऐसे में वे अपने बैग में सायनाइड की गोली लेकर चलती थीं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1952 के लोकसभा चुनावों में सुचेता ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़कर जीत हांसिल की थी। बाद में उन्होंने 1957 के चुनाव में कांग्रेस का दामन थाम लिया और जीत गईं। इस दौरान उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने राज्यमंत्री बना दिया था।

चंद्रभानु गुप्ता ने आसान बनाई राह

कहते हैं कि उस दौर में कांग्रेस अपने कुछ नेताओं के बढ़ते कद से परेशान थी। इनमें सबसे बड़ा नाम चंद्रभानु गुप्ता का था। वे कई बार यूपी में मुख्यमंत्री बन चुके थे, जिसकी वजह से कांग्रेस के कई समर्थक उन्हें पंडित नेहरु से ऊपर मानने लगे थे। यही कारण था कांग्रेस ने एक फरमान जारी किया कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को अपने पद से इस्तीफा देना होगा जिससे की दल को हर राज्य में मजबूत बनाने की योजना पर काम किया जा सके।

मालूम हो, नेतृत्व के इस फैसले के बाद चंद्रभानु गुप्ता को अपना पद छोड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने सुचेता कृपलानी का नाम आगे कर दिया। 1957 में सुचेता ने कांग्रेस की टिकट पर गोंडा से चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजयी हुई। 1962 में सुचेता को यूपी के बस्ती सीट मेंढवाल से खड़ा कर विधानसभा भेजा गया ताकि उन्हें यूपी की कमान सौंपी जा सके। इसके बाद वह 1963 में देश और यूपी की पहली महिला सीएम बनी थीं।

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