Thursday, September 19, 2024

आखिर क्यों ब्रिटिश नहीं बना पाए थे नेपाल को गुलाम? जानिये वो 3 कारण

अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 सालों तक राज किया था। इस दौरान उन्होंने भारत के आसपास कई देशों से विवाद मोल ले लिया था। इन्हीं में से एक था नेपाल। अंग्रेज हमेशा से राज करने की फिराक में रहते थे। ऐसा ही कुछ वे नेपाल के लिए भी सोंचते थे लेकिन नेपाल को कब्जे में कर पाना इतना आसान काम नहीं था।

आज हम आपको उन तीन कारणों के विषय में बताएंगे जिनकी वजह से ब्रिटिश शासक नेपाल पर कभी अपना आदिपत्य जमा सके। उनके हाथ किन कारणों की वजह से हमेशा से बंधे रहे, आइये जानते हैं।

nepal and britishers

युद्ध का नतीजा

हिंदुस्तान पर शासन के दौरान अंग्रेजों ने नेपाल पर भी अपनी कुदृष्टि डाल रखी थी। यही वजह थी कि ब्रिटिशर्स और नेपाल के बीच पहले से ही बॉर्डर को लेकर विवाद छिड़ा हुआ था। इसके अलावा उन दिनों अंग्रेज तिब्बत के साथ नेपाल के रास्ते व्यापार करना चाहते थे लेकिन नेपाल इसमें अपना हिस्सा चाहता था।

यही वजह थी कि 1814-1816 के बीच एंग्लो नेपाल वॉर हुआ था। इसमें नेपाल की हार जरुर हुई थी लेकिन नेपाली गोरखाओं ने ब्रिटिश सैनिकों को उनकी ताकत का एहसास जरुर करवा दिया था।

कहा जाता है कि इस युद्ध के बाद अंग्रेज गोरखाओं की युद्ध नीति से काफी खुश हुए थे। जंग के बाद नेपाल और अंग्रेजों के बीच एक संधि हुई थी जिसके तहत आज का उत्तराखंड और सिक्किम का हिस्सा भारत में शामिल कर लिया गया था। इसका अर्छ ये था कि नेपाल का एक तिहाई हिस्सा अब भारत में शामिल हो गया था।

rana

राणा राजवंश की दोस्ती

युद्ध के बाद कई वर्षों तक अंग्रेजों और नेपाल के बीच शांति व्यवस्था बरकरार रही थी। साल 1846 में राणा राजवंश को नेपाल की गद्दी पर बैठाया गया था। कहा जाता है कि राणा भारत के विरोधी और अंग्रेजों के हितैषी थे। उनके इसी रवैये ने नेपाल को बहुत फायदा पहुंचवाया था।

1853 में जब भारत में पहली बार ट्रेन चलाई गई थी उस वक्त ट्रेन की पटरियों के लिए उपयोग में लाया जाने वाला सारा टिंबर नेपाल से ही लाया जाता था। इस व्यापारिक साझेदारी की वजह से अंग्रेजों और नेपाल के बीच संबंध और प्रगाढ़ हो गए थे।

rana

अंग्रेजों की आवश्यकता

राणा राजवंश ने हमशा अंग्रेजों को दोस्त की तरह माना। इस दोस्ती को मजबूती 1857 में छिड़े भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मिली। दरअसल, जनवरी 1858 में दिल्ली में विद्रोह पूरी तरह शांत हो चुका था। लेकिन अवध और मध्य भारत के कुछ इलाकों में क्रांति की आग अभी भी भभक रही थी। ऐसे में ब्रिटिशर्स ने गोरखाओं की मदद से विद्रोहियों के गढ़ लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया था।

इसके बावजूद नाना साहेब और हजरत महल जैसे तमाम स्वतंत्रता सेनानी शांत नहीं बैठे। वे अपनी जान बचाकर नेपाल के तराई क्षेत्र में जाकर छुप गए। यहीं से एक बार फिर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोहियों ने प्लॉनिंग शुरु की। इस प्लॉनिंग में विद्रोहियों ने नेपाल के लोकर लीडर्स का भी सहारा लिया लेकिन नेपाल के राजा जंग बहादुर को जैसे ही इस बात की भनक लगी उसने तराई क्षेत्र में छिपे सभी विद्रोहियों को या तो जान से मरवा दिया या फिर उन्हें कैद कर लिया।

jung bahadur

रिपोर्ट्स के मुताबिक, जंग बहादुर के इस कृत्य के लिए अंग्रेजों ने उसे सम्मानित भी किया था। अंग्रेज हमेशा से गोरखाओं की युद्ध नीति से प्रभावित रहते थे। साल 1883 में तिब्बत और नेपाल के बीच युद्ध की संभावना बन रही थी। ऐसे में जंग बहादुर ने ब्रिटिश शासकों से हथियारों की डिमांड की।

अंग्रेजों ने उसकी जरुरत का फायदा उठाते हुए उसके सामने एक और शर्त रख दी। अंग्रेजों ने हथियार के बदले जंग बहादुर से गोरखा लड़ाकों की डिमांड की थी। राजा ने उनकी बात मान ली। ऐसे ही लंबे वक्त तक दोनों ने एक-दूसरे का सहयोग किया था।

इतिहासकारों के मुताबिक, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तकरीबन 55 हजार गोरखा लड़ाकों ने ब्रिटेन की तरफ से युद्ध किया था। इसके बदले में 1923 में नेपाल और ब्रिटिशर्स के बीच एक संधि हुई थी जिसमें नेपाल को स्वतंत्र देश की तरह विदेश नीति तय करने का अधिकार दे दिया गया था।

Latest news
Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here