आधुनिकता के इस दौर में समय का अंदाज़ा लगाना बेहद ही आसान है। आज हमारे पास इतने संसाधन हैं कि हमें पलभर में सही समय का बोध हो जाता है। लेकिन एक ज़माना ऐसा भी था जब घड़ी नहीं हुआ करती थी और अगर होती भी थी तो आम लोगों की पहुंच से काफी दूर थी। उस दौर में लोग सूर्य की किरणों से समय का अंदाज़ा लगाते थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले के ज़माने में लोग सूर्य की अवस्था से सुबह, दोपहर और शाम का अनुमान लगाते थे। हालांकि, ज़माना बदलता गया और लोग इस तकनीक को पीछे छोड़ते गए।
नहीं लगा कोई सोलर सिस्टम
आज हम आपको एक ऐसी घड़ी के विषय में बताने जा रहे हैं जो कि सूर्य की धूप से सही समय बताती है जबकि इसमें ना ही कोई सोलर पैनल फिट है और ना ही कोई इलेक्ट्रिकल सेल।
यह अनोखी घड़ी रोहतास जिले के डेहरी ऑन सोन के सिंचाई विभाग परिसर में स्थापित है। इस ऐतिहासिक घड़ी को 1871 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा श्रमिकों की सुविधा के लिए स्थापित करवाया गया था।
बता दें, इस ऐतिहासिक घड़ी को धूप घड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग यहां पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक, सिंचाई विभाग में कार्यरत मजदूरों की सुविधा के लिए अंग्रेजों ने इस घड़ी का निर्माण कराया था। इस घड़ी से ही उस ज़माने में लोगों का दिन शुरु होता था और इसीपर खत्म होता था।
कैसे लगता है समय का अंदाज़ा?
मालूम हो, परिसर में स्थापित यह घड़ी एक चबूतरे पर बनी हुई है। इसके बीच में एक पतली सी मेटल की प्लेट लगी है। जिसके आस-पास एंगल के हिसाब से रोमन में नंबर्स अंकित किए गए हैं। इन्हीं नंबर्स पर पड़ने वाली धूप और प्लेट की छाया से सही समय का अंदाजा लगाया जाता है।
जानकारी के मुताबिक, वैज्ञानिकों की भाषा में धूप घड़ी को नोमोन कहा जाता है। यह वर्षों पुरानी एक प्रक्रिया है जिससे लोग समय का अंदाजा लगाते थे।
ऐतिहासिक धरोहर की नहीं हो रही कद्र
गौरतलब है, सिंचाई विभाग परिसर में स्थापित इस ऐतिहासिक धरोहर की हालत बड़ी खस्ता है। इसके रखरखाव का कतई भी ध्यान नहीं रखा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा है तो आने वाले समय में 150 साल पुरानी यह घड़ी अपना अस्तित्व खो देगी, जिसकी वजह से आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में ही धूप घड़ी के विषय में पढ़ पाएंगी।