असम में इस्लामिक हस्तक्षेप
असम की आबादी का एक तिहाई भाग मुस्लिम आबादी है | यह एक ऐसा राज्य है जिसमें पिछली जनगणना (2011) में देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गयी है। बांग्लादेश की सीमा के अधिकांश जिलों में मुसलमान पहले ही बहुमत बन गए हैं। चाहे यह विकास माइग्रेशन के कारण हुआ हो या फिर स्थानीय मुसलमानों के कारण | असमी अर्थात स्थानीय लोगों में राज्य में बढती चली जा रही मुस्लिम आबादी के प्रति चिंता एवम् नफरत साफ़ -साफ़ देखी जा रही है | इतिहास इसका गवाह है उहाहरण के लिए 1983 का नीली हत्याकांड और 2012 के दंगे इत्यादि |
वर्तमान में भी राज्य में बढ़ती चली जा रही मुस्लिम आबादी के खिलाफ़ गंभीर चिंताएँ जताई जा रही है | स्थानीय लोगों में अपनी पहचान खोने का संकट राज्य में “इस्लामोफोबिया ” की विचारधारा को पनाह दे रहा है | असमी लोगों के मन में मुस्लिमों के खिलाफ डर व भय लगातार बढता चला जा रहा है और राजनीतिक पार्टियाँ इस भय की आग में घी डालनें का काम कर रही है | जहां स्थानीय पार्टियों ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति को संपोषित किया तो वही वर्तमान सतारूढ़ पार्टी पर भी हिंदुत्ववादी प्रयोगों का नाम लगाया जा रहा है|
“पहचान की राजनीति “और “इस्लामोफोबिया के बीच असम
राज्य की राजनीति “पहचान की राजनीति “और “इस्लामोफोबिया के बीच फंसती चली जा रही है | असम में ईस्लामिक हस्तक्षेप के गंभीर परिणाम देखे जा रहे है |
अब प्रश्न उठता है कि आखिर असम में इतनी उथल -पुथल व अस्थिरता क्यों है ? विद्वानों के अनुसार इसका कारण पहचान की राजनीति और असम को इस्लामिस्तान का भाग बनाए जानें की पड़ोसी देशों(बांग्लादेश और पाकिस्तान)की साजिशें है|
भारत के विभिन्न नगरों पर आतंकवादी हमलें भारत की अस्मिता पर सोची – समझी सा़जिश के तहत प्रहार है |भारतीय शहरों में आतंकी हमलें भारत की सम्प्रभुता पर करारी चोट है | एक ऐसी साजिश जिसकी शुरूआत कई दशक पहले रची गई थी| जिसकी शुरूआत तो जिन्नाह के द्वि -राष्ट्र सिद्धांत के साथ ही हो गई थी | लेकिन हकीकत में यह पूरे भारत वर्ष को इस्लामिस्तान बनाने की साजिश है | इस सपने को साकार करने में हमारें पडो़सी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश हर पल लगे रहते है |
अगर देश की सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से दी गई सूचनाओं पर गौर किया जाए तो हर प्रकार की आतंकी गतिविधियों के तार पाकिस्तान के साथ -साथ बांग्लादेश से भी जुड़ने लगे है | पाकिस्तान , बांग्लादेश की भूमि ,भारत से लगी बांग्लादेश की सीमा और भारत में घुसे बांग्लादेश प्रवासियों आदि इन तीनों को इस्तेमाल कर भारत में आतकंवाद का जाल फैला रहा है | बांग्लादेश ने भारत विरोधी नीति अपना कर अपना असली चेहरा दिखा दिया है | हमारी पूर्वोत्तर सीमा पर स्थित बांग्लादेश ने हमारे देश को खोखला बनाने के लिए एक नया रास्ता चुना है और यह रास्ता है घुसपैठ का | ये घुसपैठियें भारत -बांग्लादेश की खुली सीमा से हमारे देश में घुसपैठ कर रहे है और यहां की अर्थव्यवस्था पर कब्जा जमाते चले जा रहे है जैसे -मजदूरी , रिक्शा चलाना ,सब्जी -फल या मांस बेचना आदि इसी रणनीति का एक हिस्सा है | ताकि इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाया जा सके | केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में ही नही बल्कि भारत के सभी मुख्य नगरों में इन बांग्लादेशी घुसपैठियों का बोलबाला है |
मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति भी जिम्मेवार
बांग्लादेशियों के इस दु:स्साहस के पीछे कहीं -न -कहीं हमारी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति भी जिम्मेवार है | राजनीतिक आश्रय ने भारतीय राज्यों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है | अपने वोट बैंक के हितों को साधने के लिए ये राजनीतिक पार्टियाँ देश की सम्प्रभुता व अखण्डता के साथ समझौता करती रही है और इसी का परिणाम है कि आज भारत में लगभग 3.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियें आ चुके है और पूर्वोत्तर भारत को इस्लामिस्तान का हिस्सा बनाने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं | इसके लिए असम के 11, पश्चिम बंगाल के 9 , बिहार के 6 और झारखण्ड के तीन जिलों में घुसपैठ लगातार हो रही है | असम सीमा पर बसे जिले मुस्लिम बहुल होते रोते जा रहे है | चिकननेक के 80 प्रतिशत भाग पर इन्ही बांग्लादेशी घुसपैठियों का नियंत्रण है |
2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार 12 सीमावर्ती बांग्लादेशी जिलों में 200 आतंकवादी कैम्प चलाए जा रहे है | जिसका उद्देश्य भारत में आतंकी गतिविधियों द्वारा अस्थिरता फैलाना है | भारत में बांग्लादेशी घुसपैठियों का एेसा जाल स्थापित हो चुका है जो कि मवेशी तस्करी , नकली नोट , नशीले पदार्थ , अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्त है और तो और बांग्लादेशी घुसपैठियें क्षेत्रीय वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बनकर राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभा रहे है | ये घुसपैठियें आतंकी समूहों के लिए सूचना इकट्ठा करने का काम करते है | जिसके कारण इन आतंकियों के हमले दिन ब दिन बढ़ते चले जा रहे है|
क्या फिर विभाजन की विभिषिका झेलनी होगी ?
बांग्लादेशी सीमा पर सीमा बलों का नियंत्रण घटता जा रहा है | जिसके कारण स्थानीय लोगों पर इन घुसपैठियों का अत्याचार भी लगातार बढ़ता जा रहा है | बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा स्थानीय लोगों व जनजातियों पर हमले करना आम बात बनती जा रही है | 2008 में असम की बोडो जनजाति पर लगातार 3 बार हमले किए गए | अगर इन गतिविधियों पर लगाम नहीं लगाया गया तो वो दिन दूर नहीं जब दोबारा एक और विभाजन की विभिषिका को झेलना पडे़गा |
नीतिगत खामियों के कारण सीमावर्ती राज्यों में आतंकी हमले बढ़ते चले जा रहे है | सुरक्षा बलों का पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं कराए जाते और यह सब कुछ बस केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए | स्थानीय लोगों के पास पहचान पत्र उपलब्ध नहीं होंगे लेकिन बांग्लादेशियों को सभी सुविधाएँ जल्द से जल्द प्रदान कर दी जाती है | जिसके कारण स्थानीय लोगों में भी इन घुसपैठियों के विरुद्ध विरोध बढ़ता जा रहा है |
जनजागृति कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को घुसपैठियों के विरुद्ध जागृत करने का कार्य किया जा रहा है | विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा जैसे – 1979 का असम आंदोलन , 1981 में राष्ट्रीय सम्मेलन , 1983 में सद्भावना यात्रा , 1983 में शहीद ज्योति यात्रा , गुवहाटी जजेस फील्ड का ऐतिहासिक फैसला (1983) , 1983 असम को बचाओ देश बचाओ आंदोलन , आईएमडीटी (IMDT) काला कानून का लगातार विरोध , 1992 में तीन बीघा जमीन के खिलाफ विरोध , 2005 में घुसपैठ के विरुद्ध छात्र रैलियाँ ,2005-2006 तक राष्ट्र जागरण जैसे अभियान , गुवाहाटी सेमिनार आदि चलाए गए जिन्हे आसु और एबीवीपी का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ |
असम ही नहीं उत्तर पूर्व के अन्य राज्य भी प्रभावित
परन्तु सच्चाई तो यही है कि बांग्लादेश से भारत की ओर इन बांग्लादेशी घुसपैठियों के आगमन को रोकना इतना आसान काम नहीं है और न ही भारत – बांग्लादेश बाँर्डर तो बन्द करना इतना आसान काम है और न ही यह संभव है भारत के लिए अगले 100 वर्षों तक | क्योंकि क्षेत्रीय निवासी भाषाई व धार्मिक समता के कारण इन बांग्लादेशियों को आश्रय प्रदान करते रहते है | जिसके कारण इन घुसपैठियों की गतिविधियों पर लगाम लगाना भारत के लिए लगातार असंभव होता जा रहा है | इसी प्रकार भारत -बांग्लादेश सीमा के आसपास घुसपैठियों को पहचान करना भी मुश्किल कार्य है | जिसकी एक मुख्य वजह है भारत – बांग्लादेश सीमा -पार बस्तियाँ और एन्कलेव्स जहां ये बांग्लादेशी घुसपैठियें आसानी से आश्रय पा लेते है | कमजोर सुरक्षा बल , खुली सीमा , क्षेत्रीय समर्थन और राजनीतिक आश्रय लगातार इन घुसपैठियों को मिलता रहता है | जिसके कारण सीमा पर स्थित असम राज्य के जिले मुस्लिम बहुल जिलों में तब्दील होते जा रहे है |
असम के साथ – साथ उत्तर -पूर्व के अन्य राज्य – मेघालय , नागालैण्ड , मणिपुर और मिजोरम भी इन घुसपैठियों की गतिविधियों से प्रभावित है|
बांग्लादेश का उद्देश्य सीमा के पास स्थित भारतीय राज्यों को मुस्लिम बहुल आबादी में तबदील कर एक इस्लामी राज्य की स्थापना करना है और फिर बांग्लादेश भारत से इन राज्यों को बांग्लादेश में शामिल करने की मांग करेगा जैसा कि पाकिस्तान , कश्मीर में कर रहा है और इस उद्देश्य को अंजाम तक पहुंचाने में पाकिस्तान और पाकिस्तानी इंटर सर्विस इंटेलिजेन्स बांग्लादेश का पू्र्ण समर्थन कर रहे है |
इसके साथ ही उत्तर – पूर्वी राज्यों में स्थित उग्रवादी समूह भी आईएसआई (ISI) और डीजीएफआई(DGFI) को अपना समर्थन प्रदान करते रहे है | डीजीएफआई और आईएसआई दोनों ही भारत के दुश्मन है और भारत विरोधी गतिविधियाँ करते रहते है और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत की ओर धकेलते रहते है | जिसके कारण भारतीय सीमावर्ती राज्यों मुख्यत: असम में व्यापक जनसंख्या परिवर्तन देखने को मिल रहे है |
बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव अब्दुल मोमिन का कहना है कि बांग्लादेश एक छोटा -सा देश है और जिस तरह से बांग्लादेश की जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है उसे देखते हुए हमें अपने लोगों को बसाने के लिए भू- अधिग्रहण की जरूरत है | आगे वे कहते है कि बांग्लादेश ही एक ऐसा देश है जो भारत को श्रम प्रदान कर सकता है | अत : हमें पहाड़ी जनजातियों के साथ शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए |
बोडो बनाम मुस्लिम संघर्ष
इस भू – अधिग्रहण के पीछे पाकिस्तानी इंटर सर्विस इंटेलिजेन्स 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्ध से ही कार्य कर रही है | 1983 की नीली हत्या भी एक सोची – समझी रणनीति थी | उसी प्रकार बांग्लादेशी घुसपैठियें व उग्रवादी समूह बीएसएफ को उकसाते रहते है प्रवासियों के विरूद्ध ताकि क्षेत्र में हिंसा फैलाई जा सके | इस दिशा में बांग्लादेशी उग्रवादी समूह और आईएसआई का आश्रय प्राप्त आतंकी संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जो अपनी जेहादी भावनाओं को अंजाम देने हेतु असम और उत्तर -पूर्व राज्यों में स्थित मस्जिद और मदरसाओं का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं |
अपनी भूमि अधिग्रहण की नीति के साथ बांग्लादेश -असम , मेघालय , नागालैण्ड के जिलों पर अपना प्रभाव जमाता चला जा रहा है जिसमें – चंद्रबंधा , पंचध्वजी गितल- दाह सीमा , चधरीहर , साहेबगंज ,दिनहटा , जलपाईगुरी , तीस्ता सीमा , झावकुटी , सतरासल , असम के 14 जिले और चारलैण्ड आदि इन घुसपैठियों के भारत में प्रवेश के मुख्य मार्ग रहे है |
इसके साथ – साथ 24 परगनाओं में भी ये उग्रवादी और आतंकी समूह अपनी जडे़ मजबूत बनाए हुए है जिसमें मुल्ता (MULTA)और ऑल मुस्लिम युनाइटेड लिबरेशन फ्रन्ट ऑफ असम (AMULFA)को आईएसआई का पूर्ण समर्थन मिल रहा है | अतः बोडो- स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष प्रमोद बोरों का कहना है कि हमें बांग्लादेश के साथ भारत सीमा को बन्द करना चाहिए| यह केवल एक बोडो -मुस्लिम नहीं है बोडो बनाम मुस्लिम संघर्ष है | बल्कि यह स्थानीय निवासियों और बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच एक युध्द है |
असम में धार्मिक ,भाषाई व जनसंख्या परिवर्तन
इंडियन सिक्योरिटी एजेंसी आंकडे़ प्रस्तुत करती है कि बांग्लादेश में लगभग 100 आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र कार्यरत है | बांग्लादेश अपनी जमीन इन आतंकी समूहों को प्रशिक्षण देने के लिए प्रदान करता है | पाकिस्तान के साथ -साथ गल्फ देशों से भी इन आतंकी व उग्रवादी समूहों को पर्याप्त वित्तिय सहायता मिल रही है |
दक्षिण एशिया के सुरक्षा और आतंकवाद एेक्सपर्ट ,जयदीप साईकिया ने 2002 में लिखी अपनी पुस्तक ” Terror Sans Frontiers:Islamic Militancy In Northeast India” में भविष्यवाणी करते है कि किस प्रकार पू्र्वोत्तर भारत में ईस्लामिक आतकंवाद फैल जाएगा ,बल्कि इसके साथ- साथ अलकायदा और आईएसआईएस कि ईस्लामिस्तान की योजना का भी खुलासा किया है | 3 ,सितम्बर 2014 में अल जवाहीरी ने भारतीय उपमहाद्वीप में अलकायदा की स्थापना की घोषणा की थी |
अलकायदा असम में मुस्लिम युवकों को अपने आतंकी संगठन में शामिल होने की योजना चलाता रहता है | आईएसआईएस की योजना केवल ईराक और सीरिया तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपू्र्ण भारतवर्ष पर उसकी नज़र है | इसी प्रकार हिन्दू जनजागरूति समिति ने भी अपनी एक रिपोर्ट में भविष्यवाणी है कि जिस प्रकार से असम में धार्मिक ,भाषाई व जनसंख्या परिवर्तन देखे जा रहे है उस आधार पर असम 2061 तक मुस्लिम बहुल आबादी में तबदील हो जाएगा |
2061 तक असम में हिन्दुओं का प्रतिशत 50 प्रतिशत ये भी कम होगा | इस प्रकार असम नें मुस्लिमों के प्रति भय व डर से इस्लामोफोबिया की विचारधारा गहरी होती जा कही है | चंदन नंदी अपनी पुस्तक “Illegal Immigration From Bangladesh To India : The Emerging Conflicts “में लिखते है कि असम में अगर किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से बदला लेना होता है तो वह उसे बांग्लादेशी करार कर देता है | इस प्रकार असम में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच पहचान की खाई दिन -ब- दिन गहरी होती जा रही है |
-लूसी लोहिया
शोधार्थी
राजनीतिक विज्ञान विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय