Friday, January 24, 2025

अपने हिस्से का जंगल आप खा चुके हैं, नदियों को आप पी चुके हैं..

फेसबुक पूरा सब्जीमय है .जिधर देखो बुद्धिजीवी सब्जियों की महंगाई का रोना रो रहे है ! हाय टमाटर , हाय धनिया हाय गोभी हाय सब्जियां !

ऐसे में इन सब्जीप्रेमियों को नार्थईस्ट की एक लड़की  गीताली सैकिया ने बड़ा करारा  जवाब दिया है ! बिना देरी किये आप भी गीताली सैकिया की ये पोस्ट पढ़िए –

“आप को क्या लगता है कि हम लोग हर समय आलू टमाटर मिक्स खाते हैं…. ऐसा नही है साहब…हम जंगली लोग हैं.
सब्जियों का मौसम से और मौसम का स्वास्थ्य से बहुत कुछ सम्बन्ध है.हम लोग सिर्फ मौसमी सब्जियां ही खाना प्रीफर करते हैं.ये टमाटर, आलू आदि सब्जियां खासकर सर्दियों के लिये हैं.हम लोग इन्हें बाकी मौसम में कम खाते हैं. हमारे यहां ऐसा मानते हैं कि बरसात में ज्यादा आलू खाने से स्किन खराब हो जाती है.

आप सोचोगे फिर क्या खाते हैं ? सिर्फ मांस ? नही साहब …सिर्फ मांस खा सके इतनी अमीरी नही है नार्थईस्ट में

हम खाते हैं अपनी लोकल सब्जियां…जीका, रोंगलौ (pumpkin), तियोह, बेजेना, बंगाज (bambooshoot), कोल्दिल (बनाना फ्लावर), पोचोला(banana shoot) आदि मुख्य सब्जियां हैं जो बारिश में हम लोग खाते हैं. इसके अलावा लौआग, मातीकंदूरी, कालमऊ, खुटौरा, कासुथुरी, ढेकीया, नेफाफू, और भेदाइलोता आदि को साग के रूप में खाते हैं.

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गीताली सैकिया (लेखिका )

ये सब्जियां हमारे आस पास घरों के अगल बगल और जंगलों में मिल जाती हैं. जंगली सब्जियां बाजार में भी मिलती हैं.लेकिन इसके लिए उन्हें जंगलों में घुसकर लाना होता है.हमारे यहां का बच्चा बच्चा इन्हें पहचानता है.आपके आसपास भी न जाने कितनी सब्जियां होती होंगी .सवाल ये है क्या आपको उनको बारे में जानकारी भी है ?
बदलते मौसम में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उस हिसाब से मौसमी सब्जियों का सेवन जरूरी है लेकिन बारहो महीने सिर्फ आलू टमाटर खाने जैसी बेवकूफी सिर्फ हमारे मूर्ख भारतीय ही करते हैं.
अपने आस पास देखिये ! घर के अगल बगल मौसमी सब्जियां लगाइये…..सब्जी मंडी में मौसमी सब्जियां खरीदिये.मंहगाई डिमांड-सप्लाई पर निर्भर करती है….बाकी बारिश में टमाटर खाना है तो खर्च तो करना पड़ेगा….चॉइस आपकी !

हां ! अगर आप की समस्या ये हैं कि आपके घर के आस पास जंगल , जमीन नही है तो भी आपको सब्जियां महंगी लग रही हैं तो सब्जियां मत खाओ,,,कंक्रीट के पकौड़े खाओ, सीमेंट की चटनी खाओ उसके बाद नाले का पानी पी लेना…….क्यों कि अपने हिस्से का जंगल आप खा चुके हैं, नदियों को आप पी चुके हैं..

गीताली सैकिया

ठीक ही कहा है गीताली ने , बेमौसमी सब्जी खाकर आप महंगाई और सरकार को कौसने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते ! वैसे भी देश के अधिकतर हिस्सों को तो हम कंक्रीट और लोहे के जंगलो में बदल चुके है ! धरती के संतुलन को बिगाड़ने का काम जो हम सालो साल से कर रहे है उसपर लगाम लगाने में नाकाम रहे तो वाकई हमे कंक्रीट के पकोड़े और सीमेंट की चटनी ही मिलेगी !

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विकास के नाम पर उजाड़ी जाती अरावली

विकास के नाम पर कब तक ?

पर्यावरण के प्रति हमारी बेरुखी और लापरवाही ने हमे उस जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है कि हम आत्मनिर्भरता भूल चुके है विकास के नाम पर कंक्रीट का जंगल शहरो का तापमान बढ़ा रहा है , स्वास्थ्य ख़राब हो रहा है | ऐसा नहीं है कि भारत में पर्यावरण संरक्षण को लेकर क़ानून नहीं है , कानून है लेकिन उसका पालन कराना बड़ी टेढ़ी खीर है ! अभी एक दिल्ली एनसीआर से सम्बंधित रिपोर्ट पढ़ी ! रिपोर्ट में था कि पूरे एनसीआर में पिछले 13 -14 सालो में इस कदर लैंड यूज़ बदला गया कि भवन निर्माण में 35 से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई ! खेतीयोग्य जमीन पर नक्शे पास कराकर बड़े बिल्डरों और इंडस्ट्रीज को दे दिया गया ! छोटे -मोटे किसान जो जमीनों पर फसले उगाकर आस पास के शहरी क्षेत्र को सब्जियां मुहैया कराते थे , मुआवजा देकर उनकी जमीने छीन ली गयी !

 

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विनाश के हिस्सेदार

सरकार की एजेंसी नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले 13 सालों में दिल्ली ने अपने कुल क्षेत्रफल का लगभग एक चौथाई ग्रीन एरिया या खेती योग्य जमीन शहरीकरण और विकास के नाम पर स्वाहा कर दी है ! रिमोट सेंसिंग सेंटर ने ये रिपोर्ट उपग्रह से भेजी गयी तस्वीरो का विस्तृत अध्यन करने के बाद दी है ! एनसीआर प्लानिंग बोर्ड जोकि दिल्ली एनसीआर के समुचित विकास के लिए गठित किया गया था उसकी पहल पर इस रिपोर्ट को तेयार किया गया , जिसमे इस भयंकर सच्चाई को उजागर किया गया है !

तो फिर विनाश का ये बीज अगर हमारा खुद का बोया हुआ है तो ये रोना क्यों ? वाकई हम अपने हिस्से का जंगल खा चुके है, हम अपने हिस्से की नदी पी चुके है !

दिल्ली एनसीआर के पास अरावली की पहाडियों का लगातार दोहन आज भी जारी है

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मत

पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ के अनुसार “विकास की अंधी दौड़ में हमने अपनी मूलभूत जरूरतों को कहीं न कहीं दबाया है लाइफस्टाइल में पिछले कुछ दशको में बहुत ज्यादा बदलाव हुआ है हम पैकेज्ड फ़ूड पर निर्भर हो चुके है  बेमौषम फल सब्जी पर ज्यादा फोकस कर रहे है जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदेह है ! जितने भी कंक्रीट के जंगल यानि कथित शहर हमने खड़े किये है इनमे सब्जी या खाध्य जरुरतो का 10 % भी हम पूरा नहीं कर पा रहे है | हमे शहरो का विकास का मॉडल इस तरह बनाना होगा कि कम से कम एक शहर अपनी जरूरतों का एक चौथाई उत्पादन कर सके | हमे स्वास्थ्य पर बढ़ते दुष्प्रभावो को देखते हुए विकास के नये मॉडल की जरुरत है | महानगरो में अभी की बात की जाए तो पानी, हवा और मिटटी भी इतनी विषाक्त  है कि फसले भी विषाक्त होंगी ! इस तरफ भी ध्यान की जरुरत है !

पर्यावरणविद और आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर तंवर के अनुसार शहरों में घटती जमीन और आस पास की खेती योग्य जमीनों को अधिग्रहण  करने से शहर मौसमी फल सब्जियों से दूर होते जा रहे है जिससे स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है ! खाद्य सामग्री दूर से मगाने के कारण कीमतों पर भी असर पड़ता है |

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