अगर हाथ में गोलियों से भरी बंदूक हो तो कोई कायर भी अपनी जान खतरे में देख खुद को बचाने के लिए सामने खड़े दुश्मनों को मार सकता है | लेकिन असल बहादुरी तो उसे कहते हैं जहां जान का खतरा दिखते हुए भी इंसान मौत से लड़ जाए । ये ज़ज़्बा भारतीय सेना के जवानों में कूट कूट कर भरा है और यही बात इन्हें दुनिया के सबसे जाबांज़ सैनिकों में से एक बनाती है ।
हमारे जवानों के सामने संसाधन की कमी भले ही आई हो लेकिन इनके हौसले और हिम्मत में कभी कमी देखने को नहीं मिली । लोगों ने उनकी वीर गाथाएं तो सुनीं जिन्हें मीडिया ने उठाया लेकिन इनके अलावा भी बहुत से ऐसे वॉर हीरो मौजूद हैं हमारे बीच जिनके साहस की गाथाएं आज भी सेना में गर्व से सुनाई जाती हैं ।
1971 की जंग
पाकिस्तान के साथ लड़ी गयी 1971 की जंग भारत के लिए उन गौरवपूर्ण अध्यायों में से है | जिनसे सिद्ध हुआ कि भारत अपने दम पर किसी भी देश को पानी पिला सकता है। लेकिन ये सब करना इतना आसान नहीं था । इसके लिए कई जवानों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा तो कईयों को मौत के सामने सीना तान कर खड़े होना पड़ा ।
इन्हीं साहसी जवानों में एक नाम ऐसा था जिसके बारे में सुनते ही नसों में खून के साथ ग़जब का जोश दौड़ने लगता है । युद्ध था तो बहुत से लोग लड़े भी और अपने प्राण भी गंवाए लेकिन जिस जवान की हम बात कर रहे हैं उसने दुनिया को अपनी हिम्मत की हद दिखा दी ।
सोचिए यदि किसी का पैर बुरी तरह जख़्मी हो जाए तो वह क्या करेगा ? ऊपर से वहां मेडिकल सहायता का भी अभाव हो तो ? शायद वह इंसान दर्द से ही तड़प कर अपनी जान दे देगा । लेकिन जानते हैं इस वीर जवान ने क्या किया ? इसने अपना जख़्मी पैर अपने ही हाथों से काट कर अलग कर दिया और उसके बाद भी लड़ता रहा । सुनने वालों की छोड़िए जो लोग सामने से इस साहसपूर्ण कार्य के गवाह बने एक बार तो उन्हें भी यकीन नहीं हुआ कि कोई सच में ऐसा कर सकता है ।

मेजर जनरल इयान कार्डोजो Ian Cardozo
वो वीर जिसने देश के आगे अपनी जान की बाजी लगाने में एक बार भी नहीं सोचा उन्हें दुनिया मेजर जनरल इयान कार्डोजो के नाम से जानती है । उनके जूनियर उन्हें कारतूस साहेब कह कर भी बुलाते थे । इयान कार्डोजो का नाम भले ही आम लोगों की पहुंच में ना हो लेकिन जब जब 1971 की जंग की बात चलेगी तब तब देश का इतिहास सीना चौड़ा करते हुए ये कहेगा कि उसके पास इयान कार्डोज जैसे जवान हैं।
1931 में जन्में इयान के लिए सेना में भर्ती होना कोई विकल्प नहीं बल्कि उनका बचपन से देखा हुआ सपना था जिसके लिए उन्होंने बहुत पहले से खुद को तैयार करना शुरू कर दिया था । उनके अंदर देश के लिए कुछ कर गुज़रने का जुनून भरा पड़ा था और वो ये बात अच्छे से जानते थे कि अपने देश के लिए उनकी इस तरह की दीवानगी कहां काम आ सकती है । यही कारण था कि कॉलेज खत्म होते ही इयान ने नेशनल डिफेंस एकेडमी में दाख़िला ले लिया । अपने सपने को पूरा करने के लिए इयान ने यहां खूब मेहनत की, हर छोटी बड़ी चीज़ को बड़ी बारीकी से देखा । डिफेंस एकेडमी के बाद इयान ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी का रुख किया तथा यहां से वह सीधे गोरखा राइफल में जगह बनाने में कामयाब रहे । हालांकि इयान का सपना केवल सेना में भर्ती होना ही नहीं था बल्कि उन्हें तो देश के लिए कुछ कर गुज़रना था ।

वक्त ने उन्हें इसके लिए भी ज़्यादा इंतज़ार नहीं करने दिया । ऐसा लग रहा था मानों नियति उनके लिए अपने आप से रास्ते खोल रही है । यही वो समय था जब बांग्लादेश को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया । भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से मुक्त कराने का ज़िम्मा उठाया । और यही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना । 4/5 गोरखा राइफल्स में शामिल इयान के लिए मैदान ए जंग के रास्त अभी भी बंद थे लेकिन उनके लिए नियति ने जो तय किया था उसका रास्ता किसी ना किसी तरह तो खुलना ही था । इयान जंग से दूर थे लेकिन तभी खबर मिली कि एक ऑफिसर युद्ध में शहीद हो गये । शहीद की जगह भेजा गया इयान कार्डोजो को । इसी के साथ वह भारतीय सेना के पहले हेलीकॉप्टर मिशन का भी हिस्सा बन गये ।
हक़ीक़त की ज़मीन ख़वाबों के रंगीन आसमान के बिलकुल विपरीत होती है । जंग सुनने में बहुत आसान शब्द है लेकिन जब सामने से गोलियां और बम के गोले बरसते हैं तो अच्छे अच्छों को अपनी जान की फिक्र पड़ जाती है ।
इयान का स्वागत भी दुश्मन ने कुछ इसी तरह किया । छोटी सी टुकड़ी के साथ इयान को एक बड़ी सेना का मुकाबला करना था । मगर इयान तो पहले ही सिर पर कफन बांध कर आए थे । दुश्मन तो सामने से गोला बारूद बरसा ही रहे थे लेकिन इधर अपने खेमे में भी परिस्थितियां सही नहीं थीं। दरअसल जवानों को कहा गया था कि 48 घंटे में बड़ी पलटन युद्ध सीमा तक पहुंच जाएगा लेकिन 10 दिन बीतने तक भी ना तो कोई पलटन आई और ना ही कोई सहायता । इधर सेना का गोला बारूद और राशन सब लगभग खत्म था । मगर इन परिस्थियों से लड़ते हुए जवान वहां टिके रहे ।

वो घटना जिसमे इयान कार्डोजो ने अपने साहस का परिचय दिया
युद्ध समाप्त होने की कगार पर था लेकिन पाकिस्तान के लिए निश्चित रूप से कुछ भी कहना कभी भी संभव नहीं । कई बार ऐसा हुआ है कि इन्होंने मौका तलाशने के लिए हथियार डाले हैं। यही कारण था कि इस बार भी इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता था । इसी बीच खबर मिली कि बांग्लादेश के कुछ कैदी फंसे हुए हैं तथा इन्हें बाहर निकालने का काम इयान की टुकड़ी को सौंपा गया ।
इयान बीएसएफ़ की टुकड़ी के साथ उस जगह पहुंचे जहां कैदी कैद थे । वैसे तो देखने में वह जगह पूरी तरह से खाली लग रही थी । पता लग रहा था कि पाकिस्तानी सेना ने वहां से अपना सामान समेट लिया है । रास्ता साफ देख कर इयान जवानों के साथ आगे बढ़ने लगे लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ आने वाला कहां था । जो जगह खाली दिख रही थी पाकिस्तानी सेना ने वहां लैंड माइन्स बिछाए हुए थे ।
इयान जैसे ही आगे बैढ़े कि उनका पैर लैंड माइन पर पड़ गया और इसी के साथ एक बड़ा धमाका वहां गूंज उठा । धमाके के कारण इयान दूर जा गिरे । उनका एक पैर विस्फोट के कारण बुरी तरह जख़्मी हो चुका था, आंखों के आगे अंधेरा छा चुका था । लेकिन इयान ने सांसों की डोर मजबूती से थामे रखी थी । बताया जाता है कि तब एक बांग्लादेशी उन्हें उठा कर उनके अन्य सैनिकों तक ले गया । यहां से सेना के जवान उन्हें कैंप में ले गये ।
खुखरी से खुद जख्मी पैर काटा
अब समस्या ये थी कि कैंप में ना तो कोई डॉक्टर था और ना ही कोई ऐसी दवा थी जो इयान के दर्द को कम कर सके । इयान के बचने की उम्मीद कम होती जा रही थी जिसके कारण सब चिंतित थे । लेकिन इयान इतनी जल्दी हार मानने वालों में से कहां थे । उन्हें होश आ गया । लेकिन स्थिति बेहद गंभीर होती जा रही थी ।
विस्फोट के कारण घायल हुआ पैर अब पूरे शरीर में बारूद का ज़हर भर सकता था । इयान को अब एक ही रास्ता सूझा और वो ये कि वह अपना पैर कटवा ले । मगर ये काम करता कौन ? सबने इसके लिए मना किया । अंत में इयान ने वो किया जिसके लिए लोहे का कलेजा चाहिए । उन्होंने खुखरी ली और अपने ही हाथों से अपना पैर काट दिया । उसके बाद उन्होंने साथियों से कहा कि उनके पैर को मिट्टी में दफना आएं । हर कोई इस मंज़र को देख कर हैरान था । कहानी अभी यहीं खत्म नहीं हुई । पैर कटने के बाद वह बैठे नहीं रहे बल्कि तुरंत जंग में कूद पड़े । यहां वह सिर्फ लड़े ही नहीं बल्कि एक पूरी बटालियन को कमांड भी किया । इसी के साथ इयान कार्डोजो इंडियन आर्मी के पहले ऐसे डिसएबल अफसर बने जिन्होंने एक बटालियन को लीड किया।
गंभीर घाव का ऑपरेशन
1971 की जंग खत्म हो गयी । इसी के साथ इतिहास लिखा गया जब मात्र 480 सैनिकों की बटालियन के आगे पाकिस्तान के 7000 सैनिकों, 1500 नागरिकों, 3 ब्रिगेडियर, एक कर्नल, 107 सीनियर ऑफिसर्स तथा 219 जूनियर ऑफिसर्स ने आत्मसमर्पण किया ।
1971 की जंग खत्म हो चुकी थी लेकिन इयान अभी भी अपने घाव से लड़ रहे थे । इस बीच सेना इयान की मदद के लिए पाकिस्तानी सेना के डॉक्टर मेजर मोहम्मद बशीर आगे आए । मगर इयान को ये मंज़ूर नहीं था कि उनकी ज़िंदगी कोई दुश्मन देश का डॉक्टर बचाए । उन्होंने ईलाज कराने से मना कर दिया । लेकिन सेना के जवानों ने उन्हें समझाया कि इस समय कोई भी हेलीकॉप्टर उपलब्ध नहीं है तथा उन्हें जल्द मेडिकल सहायता ना मिली तो उनके लिए ये बड़ा खतरा साबित हो सकता है । समझाने बुझाने के बाद इयान अपने ईलाज के लिए माना ।
इसके बाद मेजर बशीर ने इयान का सफल ऑपरेशन किया । हालांकि इयान मेजर बशीर का शुक्रिया अदा नहीं कर पाए जिसका उन्हें हमेशा मलाल रहा । ऐसी घटना के बाद किसी भी सैन्य अधिकारी के लिए आगे सेवा दे पाना लगभग नामुमकिन है लेकिन यहां बात मेजर इयान कार्डोजो की हो रही है और कार्डोजो नाम रहा है असंभव को संभव कर दिखाने का । वह कभी नहीं चाहते थे कि उन्हें डिमोट हो कर स्टॉफ ड्यूटी करनी पड़े इसके लिए उन्होंने मेहनत की तथा ऐसे फिटनेस टेस्ट पास किए जहां दोनों पैरों वाले ऑफिसरों को भी दिक्कत का सामना करना पड़ा । इयान ने इतिहास तब रचा जब उन्होंने ना केवल एक बटालियन बल्कि एक पूरी ब्रिगेड को कमांड किया ।

अति विशिष्ट सेवा मेडल
मेजर जनरल इयान कार्डोजो Ian Cardozo को सेना की तरफ से 1971 की जंग के लिए अति विशिष्ट सेवा मेडल तथा सेना मेडल के साथ सम्मानित किया गया । इयान कोर्डोजो जैसे जवानों के दम पर ही हम सीना तान कर कह पाते हैं कि हमारा देश दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है । हमारा ये फर्ज बनता है कि हम ऐसे वीर जवानों की गाथाएं युवा तथा आने वाली पीढ़ियों को सुनाएं। हमारा सलाम है 1971 की जंग के हीरो इयान कोर्डोजो तथा उन जैसे वीर जवानों को जिन्होंने देश की सुरक्षा के सामने अपने प्राणों की बाजी लगाने में भी संकोच नहीं किया ।